सोमवार, 15 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 2.11

अध्याय 11

मुसीबत पे मुसीबत

जानवर चुपचाप जहाज़ पे चढ़ गए, उन्होंने ख़ामोशी से काले पाल उठाए और हौले-हौले लहरों पे निकल पड़े. समुद्री-डाकुओं ने कुछ भी नहीं देखा.

मगर अचानक एक मुसीबत आ गई.

बात ये हुई कि सुअर ख्रू-ख्रू को ज़ुकाम हो गया था.

ठीक उसी समय, जब डॉक्टर चुपचाप समुद्री-डाकुओं के पास से गुज़र जाना चाहता था, ख्रू-ख्रू ज़ोर से छींक पड़ी. एक बार, दो बार, और तीसरी बार.

समुद्री-डाकुओं ने सुन लिया कि कोई छींक रहा है. वे भागकर डेक पर आए और देखा कि डॉक्टर ने उनका जहाज़ हथिया लिया है.

 “रुक जा! रुक जा!” वे चिल्लाए और उसका पीछा करने लगे.

डॉक्टर ने पाल खोल दिए. ऐसा लगा कि समुद्री डाकुओं ने उसका जहाज़ अब पकड़ा, तब पकड़ा. 
मगर वह आगे-आगे बढ़ता रहा, और समुद्री-डाकू उससे थोड़े पीछे हो गए.

 “हुर्रे! हम बच गए!” डॉक्टर चिल्लाया.

मगर तभी सबसे खूँखार समुद्री-डाकू बर्मालेय ने गोली चलाई. गोली त्यानितोल्काय के सीने में लगी. त्यानितोल्काय लड़खड़ाया और पानी में गिर पड़ा.

 “डॉक्टर, डॉक्टर, मदद कीजिए! मैं डूब रहा हूँ!”

 “बेचारा त्यानितोल्काय!” डॉक्टर चीखा. “बस, पानी में थोड़ा-सा बर्दाश्त कर! मैं अभी तेरी मदद करता हूँ.”

डॉक्टर ने अपना जहाज़ रोका और त्यानितोल्काय की ओर रस्सी फेंकी.

त्यानितोल्काय ने अपने दाँतों से रस्सी को पकड़ लिया. डॉक्टर ने ज़ख़्मी जानवर को डेक पर खींच लिया, उसके ज़ख़्म की मरहम-पट्टी की और फिर से आगे बढ़ने लगा. मगर तब तक देर हो चुकी थी: समुद्री-डाकू सारे पाल खोलकर तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे.

 “आख़िरकार हम तुझे पकड़ ही लेंगे!” वे चिल्ला रहे थे. “तुझे भी, और तेरे सारे जानवरों को भी! वहाँ, तेरे मस्तूल पे एक बढ़िया बत्तख़ बैठी है! जल्दी ही हम उसे भूनकर खा जाएँगे!
हा-हा, ये बहुत स्वादिष्ट चीज़ होगी. और सुअर को भी हम भून लेंगे. बहुत दिनों से हमने ‘हैम’ नहीं खाया है! आज रात को हमारे खाने में सुअर के कटलेट्स होंगे. हो-हो-हो! और तुझे, डॉक्टर के बच्चे, समुन्दर में फेंक देंगे - तीक्ष्ण दाँतों वाली शार्क मछलियों के लिए.”

ख्रू-ख्रू ने उनकी बात सुनी और वह रोने लगा.

 “अभागा, मैं अभागा!” उसने कहा. “मैं नहीं चाहता कि डाकू मुझे भूनें और खाएँ!”

अव्वा भी रोने लग – उसे डॉक्टर के लिए अफ़सोस हो रहा था.



 “मैं नहीं चाहता कि उसे शार्क मछलियाँ निगल जाएँ!”

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