अध्याय
3
डॉक्टर
आयबलित का दिन
डॉक्टर आयबलित
के पास हर रोज़ इलाज के लिए जानवर आते : लोमड़ियाँ, ख़रगोश, सील मछलियाँ, गधे, ऊँटों
के पिल्ले. किसी का पेट दर्द करता, किसी का दांत. डॉक्टर हरेक को दवा देता, और वे
सब फ़ौरन अच्छे हो जाते.
एक बार आयबलित
के पास पूंछ-कटा बकरी का पिल्ला आया, और डॉक्टर ने उसकी पूंछ सी दी.
और फिर दूर
जंगल से, आँसुओं में डूबी, भालू-माँ आई. वह बड़ी पीड़ा से कराह रही थी, रिरिया रही थी:
उसकी हथेली में एक बड़ी छिपटी चुभ गई थी. डॉक्टर ने छिपटी को खींचकर बाहर निकाला,
घाव को धोया और उस पर अपना जादुई मलहम लगा दिया.
भालू-माँ का
दर्द फ़ौरन रफ़ूचक्कर हो गया.
“चाका!” भालू-माँ ने चिल्लाकर कहा और ख़ुशी ख़ुशी
अपनी मांद की ओर, अपने नन्हे पिल्लों के पास भाग गई.
फिर डॉक्टर के
पास घिसटता हुआ ख़रगोश आया, जिसे कुत्तों ने क़रीब-क़रीब मार ही डाला था.
इसके बाद आया
बड़ा-भारी भेड़ा, जिसे ज़बर्दस्त ज़ुकाम हो गया था, वह ख़ांस रहा था. फिर दो चूज़े आए,
वे अपने साथ टर्की को लाए थे, जिसे कुकुरमुत्ते खाने से विषबाधा हो गई थी.
हरेक को, हरेक
को डॉक्टर ने दवा दी, और सभी देखते-देखते अच्छे हो गए, और हरेक ने डॉक्टर “चाका” कहा.
और फिर, जब सारे मरीज़ चले गए, तो डॉक्टर आयबलित ने सुना कि जैसे दरवाज़े के बाहर
कोई सरसराहट हो रही है.
“अन्दर आ जाओ!”
डॉक्टर ने चिल्लाकर कहा.
और उसके पास आई
एक तितली दयनीय-सी:
“मोमबत्ती के ऊपर मैंने जला लिया है पंख.
मदद करो, मेरी मदद
करो, डॉक्टर आयबलित.
दुख रहा है मेरा
ज़ख़्मी पंख!”
डॉक्टर आयबलित
को तितली पर दया आई. उसने उसे अपनी हथेली पर रखा और बड़ी देर तक जले हुए पंख को
देखता रहा. फिर वह मुस्कुराया और ख़ुशी से तितली से बोला:
”दुखी न हो, ऐ
तितली तू!
इस करवट पे जा तू
लेट:
सी दूँगा मैं तुझे
दूसरा, रेशमी, नीला,
नया,
बढिया
पंख!”
और डॉक़्टर बगल
वाले कमरे में गया और वहाँ से ख़ूब सारी चिंधियाँ उठा लाया – मखमली, सैटिन की,
कैम्ब्रिक की, रेशमी. चिंधियाँ रंगबिरंगी थीं: नीली, हरी, काली.
डॉक्टर बड़ी देर
तक उनमें ढूंढ़ता रहा, आख़िर में उसने एक टुकड़ा उठाया – चटख़-नीला लाल डॉट्स वाला. और
फ़ौरन कैंची से उसमें से बढ़िया पंख के आकार का कपड़ा काट लिया, जो उसने तितली के ऊपर
सी दिया.
हँसने लगी
तितली
तैर गई घास के
ऊपर
और उड़ चली बर्च
वृक्षों पर
तितलियों के
साथ और मधुमक्खियों के साथ.
और आयबलित
प्रसन्नता से चिल्लाकर उससे कहता है:
”अच्छा, अच्छा,
ख़ुशी मना ले,
बचके रह तू मगर
शमा से!”
इस तरह डॉक्टर
अपने मरीज़ों के साथ सुबह से देर रात तक व्यस्त रहता था.
रात को वह दीवान
पर लेटा और मीठी-मीठी नींद ने उसे घेर लिया, और उसके सपनों में आने लगे सफ़ेद भालू,
रैंडियर, मछुआरे.
अचानक फिर से
किसी ने दरवाज़े पर टक्-टक् की..
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