सोमवार, 15 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 2.10

अध्याय 10

चूहे क्यों भाग गए?


अपने पीछे-पीछे उस भारी जहाज़ को खींचना सारसों के लिए आसान नहीं था. कुछ घण्टों बाद वे इतने थक गए कि बस समुन्दर में गिरते-गिरते बचे. तब उन्होंने जहाज़ को किनारे तक घसीटा, डॉक्टर से बिदा ली और अपने प्यारे दलदली घर में चले गए.   

मगर तभी उसके पास उल्लू बूम्बा आया और बोला:

”ज़रा उधर देखो. देख रहे हो – वहाँ डेक पर हैं चूहे! वे जहाज़ से बाहर, सीधे समुन्दर में कूद रहे हैं और फिर एक के बाद एक तैरकर किनारे पर जा रहे हैं!”

 “ये तो अच्छी बात है!” डॉक्टर ने कहा. “चूहे तो दुष्ट होते हैं, क्रूर होते हैं, और मुझे वे अच्छे नहीं लगते.”

 “नहीं, ये बड़ी चिंता की बात है!” गहरी साँस लेकर बूम्बा ने कहा. “चूहे तो नीचे, जहाज़ के पेटे में रहते हैं, और जैसे ही जहाज़ की तली में पानी घुसने लगता है, वे इस छेद को सबसे पहले देखते हैं, पानी में कूद जाते हैं और सीधे किनारे की ओर तैरने लगते हैं. मतलब, हमारा जहाज़ डूब रहा है. तुम ख़ुद ही सुनो, चूहे आपस में क्या बातें कर रहे हैं.”

इसी समय पेटे से दो चूहे बाहर आए. बूढ़ा चूहा जवान चूहे से कह रहा था:

 “कल शाम को मैं अपने बिल में जा रहा था तो देखा कि दरार से पानी पूरे ज़ोर से अन्दर आ रहा है. तो, मेरा ख़याल है, कि भागना चाहिए. कल ये जहाज़ डूब जाएगा. और इससे पहले कि देर हो जाए, तू भी भाग जा.”

और दोनों चूहे पानी में कूद गए.

 “हाँ, हाँ,” डॉक्टर चीखा, “मुझे याद आ गया! जब जहाज़ डूबने लगता है, तो चूहे सबसे पहले भाग जाते हैं. हमें फ़ौरन जहाज़ से भाग जाना चाहिए, वर्ना हम सब भी जहाज़ के साथ ही डूब जाएँगे! जानवरों, मेरे पीछे आओ! जल्दी! जल्दी!”

उसने अपनी चीज़ें इकट्ठा कीं और फ़ौरन किनारे पे भागा. जानवर उसके पीछे लपके.

वे बड़ी देर तक रेतीले किनारे पर चलते रहे और बेहद थक गए.

”कुछ देर बैठकर सुस्ता लेते हैं,” डॉक्टर ने कहा. “और ये भी सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए.”

 “कहीं हमें पूरी ज़िन्दगी यहीं तो नहीं रहना पड़ेगा?” त्यानितोल्काय ने कहा और वह रोने लगा.
उसकी चारों आँखों से आँसू टप्-टप् गिर रहे थे.

सारे जानवर उसीके साथ-साथ रोने लगे, क्योंकि सबको घर लौटने की ख़्वाहिश थी.

मगर, अचानक अबाबील उड़कर उनके पास आई.

 “डॉक्टर,डॉक्टर!” वो चिल्लाई. “बहुत बुरी बात हुई है:

समुद्री-डाकुओं ने तुम्हारे जहाज़ पर कब्ज़ा कर लिया है!”

डॉक्टर उछलकर खड़ा हो गया.

 “वो मेरे जहाज़ पे क्या कर रहे हैं?” उसने पूछा.

 “वे उसे लूटना चाहते हैं,” अबाबील ने जवाब दिया. “जल्दी भागो और उन्हें वहाँ से भगाओ!”

 “नहीं,” डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, “उन्हें भगाने की कोई ज़रूरत नहीं है.

उन्हें मेरे जहाज़ पर सफ़र करने दो. दूर तक नहीं जा पाएँगे, देख लेना! बेहतर है कि हम यहाँ से चलें और उनकी नज़र में पड़े बिना, हमारे जहाज़ के बदले उनके जहाज़ पर कब्ज़ा कर लें. चलो, डाकुओं का जहाज़ पकड़ते हैं!”

और डॉक्टर किनारे पर लपका. उसके पीछे – त्यानितोल्काय और बाकी के जानवर चले.

ये रहा समुद्री-डाकुओं का जहाज़.

उस पर कोई नहीं है! सारे समुद्री-डाकू आयबलित के जहाज़ पर हैं!

 “धीरे, धीरे, शोर मत करो!” डॉक्टर ने कहा.



 “चुपचाप समुद्री-डाकुओं के जहाज़ पर चढ़ जाते हैं, जिससे कि कोई हमें देख न ले!”

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