शनिवार, 13 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 2.06

अध्याय 6

मछुआरे की तलाश जारी

दूसरे दिन सुबह-सुबह अव्वा फिर से पहाड़ पर चढ़ गया और हवा सूँघने लगा. हवा दक्षिण से चल रही थी. अव्वा बड़ी देर तक सूंघता रहा और आख़िरकार बोला:

 “हवा में तोतों की, ताड़ के पेड़ों की, बन्दरों की, गुलाबों की, अंगूर की और छिपकलियों की गंध है, मगर मछुआरे की गंध नहीं है.”

 “और एक बार सूंघ,” बूम्बा ने कहा.

 “जिराफ़ों की, कछुओं की, शुतुरमुर्गों की, गर्म रेत की, पिरामिड़ों की गंध आ रही है...मगर मछुआरे की गंध नहीं है.”

 “तू कभी भी मछुआरे को नहीं  ढूंढ़ सकता!” ख्रू-ख्रू ने ठहाका लगाते हुए कहा. “बेकार में शेखी नहीं मारनी चाहिए थी.”

अव्वा ने कोई जवाब नहीं दिया. मगर अगले दिन सुबह-सुबह वो फिर से पहाड़ पर चढ़ गया और शाम तक हवा को सूंघता रहा.

देर रात को वो डॉक्टर के पास लौटा, जो पेन्ता के साथ सो रहा था.

 “उठो, उठो!” वो चिल्लाया. “उठो! मैंने मछुआरे को ढूंढ़ लिया है! हाँ, उठो भी! बहुत हो गया सोना. तुम सुन रहे हो – मैंने मछुआरे को ढूंढ़ लिया है, मैंने ढूंढ़ लिया है, मैंने मछुआरे को ढूंढ़ लिया! मैं उसकी गंध महसूस कर रहा हूँ. हाँ, हाँ! हवा से तम्बाकू की और हैरिंग मछली की गंध आ रही है!”

डॉक्टर उठा और कुत्ते के पीछे भागा.

 “समुन्दर से पछुआ हवा आ रही है,” कुत्ता चिल्लाया, “और मैं मछुआरे की गंध सूंघ रहा हूँ! वह समुन्दर के पार, उस किनारे पे है. जल्दी, जल्दी से वहाँ चलो!”

अव्वा इतनी ज़ोर-ज़ोर से भौंक रहा था कि सारे जानवर ऊँचे पहाड़ की तरफ़ लपके. सबसे आगे था पेन्ता.

 “जल्दी से भागो नाविक रॉबिन्सन के पास,” अव्वा ने डॉक्टर से चिल्लाकर कहा, “और उससे जहाज़ मांगो! जल्दी, वर्ना देर हो जाएगी!”

डॉक्टर फ़ौरन उस जगह भागा जहाँ रॉबिन्सन का जहाज़ खड़ा रहता था.

 “नमस्ते, नाविक रॉबिन्सन!” डॉक्टर ने चिल्लाकर कहा. “मेहेरबानी करके अपना जहाज़ दो! एक ज़रूरी काम के सिलसिले में मुझे फिर से समुन्दर में जाना है.”

 “शौक से,” नाविक रॉबिन्सन ने कहा, “मगर देखो, समुद्री-डाकुओं के चंगुल में न फंस जाना! समुद्री-डाकू बड़े ख़तरनाक किस्म के दुष्ट होते हैं! वे तुम्हें बन्दी बना लेंगे, और मेरे जहाज़ को डुबा देंगे या जला देंगे...”

मगर डॉक्टर ने नाविक की पूरी बात नहीं सुनी. वह उछल कर जहाज़ में चढ़ा, पेन्ता को और सारे जानवरों को उसमें बिठाया और खुले समुन्दर में चला.

अव्वा डेक पर चढ़ गया और चिल्लाकर डॉक्टर से बोला:

 “ज़ाक्सारा! ज़ास्कारा! क्सू!”

कुत्तों की भाषा में इसका मतलब होता है:

 “मेरी नाक की तरफ़ देखो! मेरी नाक की तरफ़! जिधर मैं अपनी नाक घुमाऊँ, उधर ही तुम अपना जहाज़ भी मोड़ो.”

 डॉक्टर ने पाल खोल दिए, और जहाज़ और तेज़ी से जाने लगा.

 “जल्दी, जल्दी!” कुत्ता चिल्ला रहा था.

जानवर डेक पर खड़े थे और सामने की ओर देख रहे थे, कि कहीं मछुआरा तो दिखाई नहीं दे रहा है.

मगर पेन्ता को विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके पिता मिल सकते हैं. वह सिर लटकाए बैठा था और रो रहा था.

शाम हो गई. अंधेरा हो गया. कीकी बत्तख ने कुत्ते से कहा:

 “नहीं, अव्वा, तू मछुआरे को नहीं ढूंढ़ सकता! बेचारे पेन्ता पर दया आ रही है, मगर कुछ किया नहीं जा सकता – घर वापस लौट जाना चाहिए.”

फिर वह डॉक्टर से बोली:

 “डॉक्टर, डॉक्टर! अपना जहाज़ वापस घुमा लो! हमें यहाँ भी मछुआरा नहीं मिलेगा.”

अचानक बूम्बा उल्लू , जो मस्तूल के ऊपर बैठा था और सामने देख रहा था, चिल्लाया:

 “मुझे अपने सामने एक बड़ी चट्टान दिखाई दे रही है – वहाँ, दूर-काफ़ी दूर!”

 “फ़ौरन वहाँ चलो!” कुत्ता चिल्लाया. “मछुआरा वहाँ, उस चट्टान पर है. मैं उसकी गंध महसूस कर रहा हूँ...वो वहाँ है!”

जल्दी ही उन्होंने देखा कि समुन्दर के भीतर से एक चट्टान बाहर निकल रही है.

डॉक्टर ने जहाज़ सीधा इस चट्टान की ओर मोड़ लिया.

 मगर मछुआरा कहीं नज़र नहीं आ रहा था.      

 “मुझे मालूम ही था कि अव्वा मछुआरे को नहीं ढूंढ़ सकता!” ठहाका लगाते हुए ख्रू-ख्रू ने कहा. “समझ में नहीं आता कि डॉक्टर ने ऐसे शेख़ीमार का विश्वास कैसे कर लिया.”

डॉक्टर चट्टान पर भागा और मछुआरे को पुकारने लगा. मगर किसी ने जवाब नहीं दिया.

 “गिन्-गिन्!” बूम्बा और कीका चिल्लाए.

 “गिन्-गिन्” का मतलब है “आऊ”.

मगर सिर्फ पानी के ऊपर हवा का शोर था, और लहरें गरजते हुए पत्थरों से टकरा रही थीं.

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