डॉक्टर आयबलित
भाग 2
पेन्ता और समुद्री
डाकू
अध्याय 1
गुफ़ा
डॉक्टर आयबलित को सैर करना बहुत पसन्द था.
हर रोज़ शाम को काम के बाद वह छतरी लेता और
अपने जानवरों के साथ कहीं जंगल में या खेत में चला जाता.
उसकी बगल में चलता त्यानितोल्काय, सामने
भागती बत्तख कीका, पीछे – कुत्ता अव्वा और सुअर ख्रू-ख्रू, और डॉक्टर के कंधे पर बैठता बूढ़ा उल्लू बूम्बा.
वे काफ़ी दूर निकल जाते, और, जब डॉक्टर
आयबलित थक जाता, तो वह त्यानितोल्काय की पीठ पर बैठ जाता, और वो ख़ुशी-ख़ुशी उसे पहाड़ियों
और घास के मैदानों से ले जाता.
एक बार घूमते हुए उन्होंने समुन्दर के
किनारे पर एक गुफ़ा देखी. वे भीतर जाना चाहते थे, मगर गुफ़ा का दरवाज़ा बन्द था.
दरवाज़े पर बड़ा भारी ताला लगा था.
“क्या
ख़याल है,” अव्वा ने कहा, “इस गुफ़ा में क्या छुपाया गया है?”
“हो
सकता है, हनी-केक्स हों,” त्यानितोल्काय ने कहा, जिसे दुनिया में सबसे ज़्यादा अगर
कोई चीज़ पसन्द थी, तो वह हनी-केक ही था.
“नहीं,”
कीका ने कहा. “वहाँ फलों के टुकड़े और अखरोट हैं.”
“नहीं,”
ख्रू-ख्रू ने कहा. “वहाँ सेब हैं, बलूत के फल हैं, मूली है, गाजर है...”
“चाभी
ढूँढ़नी होगी,” डॉक्टर ने कहा. “जाओ, जाकर
चाभी ढूंढ़ो.”
जानवर चारों ओर भागे और गुफ़ा की चाभी
ढूंढ़ने लगे. उन्होंने हर पत्थर के नीचे देखा, हर झाड़ी के नीचे देखा, मगर चाभी कहीं
भी नहीं मिली.
तब वे फिर से बन्द दरवाज़े के पास इकट्ठा
हो गए और सूराख से भीतर देखने लगे. अचानक उल्लू बूम्बा ने कहा:
“धीरे,
धीरे! मुझे लगता है कि गुफ़ा में कोई ज़िन्दा चीज़ है. वहाँ या तो कोई इन्सान है या
कोई जानवर.”
सब लोग कान देकर सुनने लगे, मगर उन्हें
कुछ भी सुनाई नहीं दिया.
डॉक्टर आयबलित ने उल्लू से कहा:
“मेरा
ख़याल है कि तुम गलत हो. मुझे तो कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है.”
“लो,
कर लो बात!” उल्लू ने कहा. “तुम सुन भी नहीं सकते. तुम सबके कान मेरे कानों से
बुरे हैं.”
“हाँ,”
जानवरों ने कहा. “हमें कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है.”
“मगर
मैं सुन रहा हूँ,” उल्लू ने कहा.
“तुम
क्या सुन रहे हो?” डॉक्टर आयबलित ने पूछा.
“मैं
सुन रहा हूँ कि किसी बच्चे ने अपनी जेब में हाथ डाला है.”
“कैसी
अचरज भरी बात है!” डॉक्टर ने कहा. “मुझे तो मालूम ही नहीं था कि तेरी सुनने की
ताक़त इतनी सूक्ष्म है. फिर से सुनकर बताओ, कि अब तुम क्या सुन रहे हो?”
“मैं
सुन रहा हूँ कि इस इन्सान के गाल पे कैसे आँसू लुढ़क रहा है.”
“आँसू?”
डॉक्टर चिल्लाया. “आँसू! कहीं उस दरवाज़े के पीछे कोई रो तो नहीं रहा है! इस इन्सान
की मदद करनी चाहिए. हो सकता है कि वह बड़ी मुसीबत में हो. जब कोई रोता है, तो मुझे
अच्छा नहीं लगता. मुझे कुल्हाड़ी दो. मैं इस दरवाज़े को तोड़ दूंगा.
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