अध्याय
4
उकाब
मगर पेन्ता पूरे समय दुखी ही रहा.
त्यानितोल्काय की सवारी भी उसका दिल न बहला सकी. आख़िरकार उसने डॉक्टर
से पूछ ही लिया:
“तुम
मेरे पिता को कैसे ढूंढ़ोगे?”
“मैं
उकाबों को बुलाऊँगा,” डॉक्टर ने कहा. “उकाबों की नज़र इतनी तीक्ष्ण होती है कि वे
दूर-दूर तक देख सकते हैं. जब वे बादलों के ऊपर से उड़ते हैं, वे ज़मीन पर रेंग रहे
छोटे से कीड़े को भी देख सकते हैं. मैं उनसे सारी ज़मीन, सारे जंगल, सारे खेत और
पहाड़, सारे शहर, सारे गाँव देखने की विनती करूँगा – हर जगह तुम्हारे पिता को
ढूँढ़ने के लिए कहूंगा.”
“आह,
तुम कितने होशियार हो!” पेन्ता ने कहा. “ये तुमने बहुत बढ़िया बात सोची है. जल्दी
से बुलाओ उकाबों को!”
डॉक्टर ने उकाबों को बुलाया, और उकाब उड़कर
उसके पास आ गए.
“नमस्ते,
डॉक्टर! हम तुम्हारे लिए क्या करें?”
“चारों
दिशाओं में, धरती के कोने कोने में उड़ जाओ,” डॉक्टर ने कहा, “और लाल बालों और
लम्बी लाल दाढ़ी वाले मछुआरे को ढूंढ़ निकालो.”
“अच्छा,”
उकाबों ने कहा. “हमारे प्यारे डॉक्टर के लिए हम हरसंभव कोशिश करेंगे. हम ऊँचे-ऊँचे
उड़ेंगे और पूरी धरती को देखेंगे, सारे जंगल और खेत, सारे पहाड़, शहर और गाँव देखेंगे
और तुम्हारे मछुआरे को ढूंढ़ने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे.”
और वे ऊँचे, खूब ऊँचे उड़ने लगे जंगलों के ऊपर, खेतों के ऊपर, पहाड़ों के ऊपर. हर उकाब ग़ौर से देख रहा था कि लाल बालों वाला और लाल लम्बी दाढ़ी वाला मछुआरा तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.
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