गुरुवार, 4 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 1.09

अध्याय 9

डॉक्टर मुसीबत में

तभी डॉक्टर के पास बूम्बा उडकर आया और सहमी हुई आवाज़ में बोला:
 “धीरे, धीरे! कोई आ रहा है! मुझे किसी के कदमों की आहट सुनाई दे रही है!”
सब रुक गए और कान देकर सुनने लगे.

जंगल से उलझे बालों वाला, लम्बी सफ़ेद दाढ़ी वाला बूढ़ा बाहर आया और चिल्लाया:
 “तुम यहाँ क्या कर रहे हो? और तुम हो कौन? और यहाँ किसलिए आए हो?”
 “मैं डॉक्टर आयबलित हूँ,” डॉक्टर ने कहा. “मैं बीमार बन्दरों का इलाज करने अफ्रीका आया हूँ.”
 “हा-हा-हा!” उलझे बालों वाला बूढ़ा ठहाका मार कर हँसने लगा. “बीमार बन्दरों का इलाज करने! और क्या तुम जानते हो कि तुम कहाँ आ गए हो?”
 “मालूम नहीं,” डॉक्टर ने कहा. “कहाँ?”
 “डाकू बर्मालेय के यहाँ!”

 “बर्मालेय के यहाँ!” डॉक्टर चहका. “बर्मालेय – पूरी दुनिया में सबसे दुष्ट आदमी है! लेकिन हम मर जाएँगे, मगर अपने आप को डाकू के हवाले नहीं करेंगे! चलो, जल्दी से भागते हैं, उस तरफ़ – हमारे बीमार बन्दरों के पास...वे रो रहे हैं, इंतज़ार कर रहे हैं, और हमें उन्हें ठीक करना है.”

 “नहीं,” बूढ़े ने कहा और वह और भी ज़ोर से हँसने लगा. “तुम यहाँ से कहीं भी नहीं ज सकते! बर्मालेय अपनी क़ैद में आए हर इन्सान को मार डालता है.”

 “भागो!” डॉक्टर चीख़ा. “भागो! हम अपने आप को बचा सकते हैं! हम बच जाएँगे!”

मगर तभी उनके सामने ख़ुद बर्मालेय प्रकट हो गया, और तलवार घुमाते हुए, चीख़ा:
 “ऐ तुम, मेरे विश्वासपात्र सेवकों! इस बेवकूफ़ डॉक्टर को उसके बेवकूफ़ जानवरों के साथ ले चलो और जेल में बन्द कर दो, सलाख़ों के पीछे! कल – मैं उनका फ़ैसला करूँगा!”

बर्मालेय के दुष्ट सेवक भागते हुए आए, उन्होंने डॉक्टर को पकड़ लिया, मगरमच्छ को पकड़ लिया, सभी जानवरों को पकड़ लिया और उन्हें जेलखाने की ओर ले चले. डॉक्टर ने बहादुरी से उनसे छूटने की कोशिश की. जानवरों ने उन्हें काटा, नोंचा, उनके हाथों से छूट-छूट गए, मगर दुश्मन बहुत सारे थे, दुश्मन ताक़तवर थे. उन्होंने अपने क़ैदियों को जेलखाने में डाल दिया, और दरवाज़े पर ताला लगा दिया.

चाभी बर्मालेय को दे दी. बर्मालेय चाभी अपने साथ ले गया और अपने तकिये के नीचे उसे छुपा दिया.

 “बेचारे हम, बेचारे!” चीची बन्दरिया ने कहा. “इस जेलखाने से हम कभी भी निकल नहीं पायेंगे. दीवारें कितनी मज़बूत हैं, दरवाज़े लोहे के हैं. अब हम फिर कभी न सूरज देखेंगे, न फूल, न पेड़-पौधे. बेचारे हम, बेचारे!”


सुअर ख्रू-ख्रू करने लगा, कुत्ता रोने लगा. और मगरमच्छ ऐसे मोटे-मोटॆ आँसू बहाने लगा कि फर्श पर एक बड़ा-सा तालाब बन गया.

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