शनिवार, 13 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित -2.07

अध्याय 7

मिल गए!

मछुआरा चट्टान पर नहीं था. अव्वा जहाज़ से चट्टान पर कूदा और उस पर आगे-पीछे भागने लगा, भागते हुए वह हर दरार को सूंघ रहा था. अचानक वह ज़ोर से भौंका.

“किनेदेले! नोप!” वो चिल्लाया. “किनेदेले! नोप!”

जानवरों की भाषा में इसका मतलब है:

 “इधर! इधर! डॉक्टर, मेरे पीछे, मेरे पीछे!”

डॉक्टर कुत्ते के पीछे भागने लगा.

चट्टान की बगल में एक छोटा सा टापू था. अव्वा वहाँ कूद गया. डॉक्टर उससे एक भी क़दम पीछे न रहा. अव्वा आगे-पीछे भाग रहा था और अचानक एक गढ़े की ओर लपका. गढ़े में अंधेरा था. डॉक्टर गढ़े में उतरा और उसने अपनी टॉर्च जलाई. और क्या? गढ़े में, खाली ज़मीन पर कोई लाल बालों वाला आदमी लेटा था, भयानक रूप से दुबला और ठण्ड़ा.

ये थे पेन्ता के पिता.

डॉक्टर ने उसकी कमीज़ की बाँह पकड़ कर उसे झकझोरा और कहा:

 “उठिए, प्लीज़. हम आपको इतनी देर से ढूंढ़ रहे हैं! हमें आपकी बेहद बेहद, ज़रूरत है!”

उस आदमी ने सोचा कि ये कोई समुद्री-डाकू है, उसने मुट्ठियाँ तानीं और कहा:

 “मुझसे दूर हट, डाकू! मैं खून की आख़िरी बूंद तक अपनी रक्षा करता रहूँगा!”

मगर तभी उसने देखा कि डॉक्टर का चेहरा कितना दयालु है, और बोला:

 “मैं देख रहा हूँ कि आप समुद्री-डाकू नहीं हैं. मुझे कुछ खाने को दीजिए. मैं भूख के मारे मरा जा रहा हूँ.”

डॉक्टर ने उसे ब्रेड और चीज़ दिया. वह आदमी पूरी ब्रेड खा गया और फिर अपने पैरों पे खड़ा हो गया.

 “आप यहाँ कैसे आए?” डॉक्टर ने पूछा.

 “दुष्ट समुद्री-डाकू मुझे यहाँ फेंक गए, खून के प्यासे, क्रूर लोग! उन्होंने मुझे खाना नहीं दिया, पानी भी नहीं दिया. उन्होंने मेरे प्यारे बेटे को भी मुझसे छीन लिया और उसे न जाने कहाँ ले गए. क्या आपको मालूम है कि मेरा बेटा कहाँ है?”

 “तुम्हारे बेटे का क्या नाम है?” डॉक्टर ने पूछा.

 “उसका नाम पेन्ता है,” मछुआरे ने जवाब दिया.

 “मेरे पीछे आईये,” डॉक्टर ने कहा और मछुआरे को गढ़े से बाहर निकलने में मदद की.

कुत्ता अव्वा आगे-आगे भाग रहा था.

पेन्ता ने जहाज़ से देखा कि उसके पिता उसके पास आ रहे हैं, और वह मछुआरे की ओर लपका:

 “मिल गए! मिल गए! हुर्रे!” वह चिल्लाया.

 “सब हँस रहे थे, ख़ुश हो रहे थे, तालियाँ बजा रहे थे और गा रहे थे.

 “ सलाम तुझे, तेरा शुक्रिया,

   ऐ बहादुर, अव्वा!”

  बस, सिर्फ ख्रू-ख्रू एक कोने में खड़ी थी और दुख से आहें भर रही थी.

 “मुझे माफ़ करना, अव्वा,” उसने कहा, “मैंने तेरा मज़ाक उड़ाया और तुझे शेखीमार कहा. इसके लिए मुझे माफ़ कर दे.”

 “अच्छा,” अव्वा ने जवाब दिया. “मैं तुझे माफ़ करता हूँ. मगर , यदि तूने दुबारा मेरा अपमान किया तो मैं तेरी पूँछ काट लूंगा.”

डॉक्टर लाल बालों वाले मछुआरे और उसके बेटे को घर ले चला, उस गाँव में, जहाँ वे रहते थे.
जब जहाज़ किनारे से लगा, तो डॉक्टर ने देखा कि किनारे पर एक औरत खड़ी है और दूर नज़र गड़ाए है. ये थी मछुआरन, पेन्ता की माँ. बीस दिन-रात वह किनारे पर खड़ी-खड़ी समुन्दर में दूर-दूर नज़र डाल रही थी: उसका बेटा घर तो नहीं आ रहा है?
उसका पति घर तो नहीं आ रहा है?

पेन्ता को देखते ही वह उसकी ओर लपकी और उसे चूमने लगी.

उसने पेन्ता को चूमा, लाल बालों वाले मछुआरे को चूमा, डॉक्टर को चूमा; वह अव्वा की इतनी शुक्रगुज़ार थी कि उसे भी चूमना चाहती थी.

मगर अव्वा झाड़ियों में भाग गया और गुस्से से बुदबुदाया:

 “क्या बेवकूफ़ी है! मैं चूमा-चूमी बर्दाश्त ही नहीं कर सकता! अगर उसे इतना ही शौक है चूमने का, तो ख्रू-ख्रू को चूम ले.”

मगर अव्वा सिर्फ गुस्से का नाटक कर रहा था. असल में तो वह भी बेहद ख़ुश था.

शाम को डॉक्टर ने कहा:

 “तो, अलबिदा! हमें घर लौटना चाहिए.”

 “नहीं, नहीं,” मछुआरन चीखी, “आप को हमारे मेहमान बनके रहना पड़ेगा! हम मछ्लियाँ पकडेंगे, केक बनाएंगे और त्यानितोल्काय को हनी-केक देंगे.”

 “मैं तो ख़ुशी-ख़ुशी एक और दिन रुक जाता,” त्यानितोल्काय ने दोनों मुँहों से मुस्कुराते हुए कहा.

 “मैं भी!” कीका चिल्लाई.

 “मैं भी!” बूम्बा ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई.

 ”ये तो अच्छी बात है,” डॉक्टर ने कहा, “ उस हालत में मैं भी आपका मेहमान बन कर रह जाता हूँ.”


और वो अपने सभी जानवरों के साथ मछुआरे और मछुआरन के घर की ओर चला.    

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