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जब डैडी ने अपना व्यवसाय चुना
जब डैडी छोटे थे तो उनसे हमेशा एक ही सवाल
पूछा जाता. सब लोग उनसे पूछते: “बड़ा होकर तू क्या बनेगा?” और डैडी हमेशा बिना
सोचे-समझे इस सवाल का जवाब दे देते. मगर हर बार उनका जवाब अलग होता. पहले डैडी
नाईट-वाचमैन बनना चाहते थे. उन्हें ये बात बहुत अच्छी लगती थी कि सब लोग सो रहे
होते हैं, मगर वाचमैन नहीं सोता. फिर उन्हें वो डंडा भी अच्छा लगता था, जिससे
वाचमैन ठक्-ठक् करता है. डैडी को बहुत मज़ा आता था कि जब सब लोग सो रहे हों, तब शोर
करना संभव है. उन्होंने पक्का इरादा कर लिया कि बड़े होकर वो नाईट-वाचमैन ही
बनेंगे. मगर तभी प्रकट हुआ आईस्क्रीम बेचने वाला, अपनी ख़ूबसूरत, हरी-हरी गाड़ी के
साथ. गाड़ी को चलाया भी जा सकता था! बेचए-बेचते आईस्क्रीम खाई भी जा सकती है!
' एक आईस्क्रीम बेचूँगा, दूसरी – खाऊँगा!’
डैडी ने सोचा. ‘और छोटे बच्चों को आईस्क्रीम मुफ़्त में दिया करूँगा.’
छोटे डैडी के मम्मी-पापा को ये जानकर बेहद
आश्चर्य हुआ कि उनका बेटा आईस्क्रीम वाला बनेगा. वे बहुत दिनों तक उन पर हँसते
रहे. मगर डैडी ने बड़ी दृढ़ता से इस ख़ुशनुमा और स्वादिष्ट व्यवसाय को चुन लिया था.
मगर, एक बार छोटे डैडी ने रेल्वे-स्टेशन पर एक अजीब आदमी को देखा. ये आदमी इंजन से और रेलगाड़ी के डिब्बों से खेल रहा था.
अरे, खिलौने वाले डिब्बों से नहीं, बल्कि सचमुच के! वो प्लेटफॉर्म पर उछलता,
डिब्बों के नीचे लेट जाता और पूरे वक़्त कोई लाजवाब खेल खेल रहा था.
“ये कौन है?” डैडी ने पूछा.
“ये रेल के डिब्बों को जोड़ने वाला ‘कप्लर’ है,”
उन्हें समझाया गया. आख़िरकार छोटे डैडी समझ गए कि वो क्या बनेंगे.
ज़रा सोचिए! रेलगाड़ी के डिब्बों को जोड़ना
और अलग करना! इससे ज़्यादा बढ़िया बात दुनिया में और क्या हो सकती है? बेशक, इससे
ज़्यादा बढ़िया बात कोई और हो ही नहीं सकती. जब डैडी ने घोषणा कर दी कि वो रेलगाड़ी
के ‘कप्लर’ बनेंगे, तो उनकी पहचान के किसी ने कहा:
“तो फिर आईस्क्रीम का क्या हुआ?”
अब डैडी सोच में पड़ गए. उन्होंने तो ‘कप्लर’
बनने का पक्का इरादा कर लिया था. मगर वो आईस्क्रीम से भरी हरी-हरी गाड़ी से भी
इनकार नहीं करना चाहते थे. तब छोटे डैडी ने एक रास्ता खोज लिया.
“मैं ‘कप्लर’ भी बनूँगा और आईस्क्रीमवाला भी!”
उन्होंने कहा.
सबको बड़ा आश्चर्य हुआ. मगर छोटे डैडी ने
उन्हें समझाया. उन्होंने कहा:
“ये
बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है. सुबह मैं आईस्क्रीम लेकर घूमूँगा. घूमूँगा, घूमूँगा, और
फिर स्टेशन भागूँगा. वहाँ डिब्बों को जोडूँगा और फिर वापस आईस्क्रीम की ओर भागूँगा.
फिर से स्टेशन पर, डिब्बों को खोलूँगा और दुबारा आईस्क्रीम की ओर भागूँगा. पूरा समय
ऐसा ही करूँगा. गाड़ी को स्टेशन के पास ही खड़ा रखूँगा, जिससे कि डिब्बे जोड़ने और खोलने
के लिए ज़्यादा दूर न भागना पड़े.
सब लोग खूब हँसे. तब छोटे डैडी को गुस्सा आ
गया और उन्होंने कहा:
“अगर
आप लोग इसी तरह से हँसते रहे, तो मैं नाईट-वाचमैन का काम भी कर लूँगा. रात को तो मैं
ख़ाली ही रहूँगा न. डंडे से खट्-खट् करना तो मैंने अच्छी तरह सीख लिया है. एक वाचमैन
ने कोशिश करने के लिए अपना डंडा दिया था...
इस तरह से डैडी ने हर चीज़ पक्की कर ली. मगर
जल्दी ही वो पायलेट बनने की इच्छा करने लगे. फिर वे आर्टिस्ट बनने और स्टेज पर एक्टिंग
करने के बारे में सोचने लगे. फिर एक बार वो दादाजी के साथ एक फैक्ट्री गए और
उन्होंने फ़ैसला कर लिया कि अब तो वो ‘टर्नर’ ही बनेंगे. इसके अलावा उनका दिल चाहने
लगा कि जहाज़ पर कैबिन-बॉय बन जाऊँ. या फिर, कम से कम गड़रिया बन जाऊँ और दिन भर गायों
के साथ घूमते हुए ज़ोर-ज़ोर से चाबुक लहराऊँ. मगर एक दिन उनके मन में ज़िन्दगी की सबसे
बड़ी इच्छा पैदा हुई – उनका दिल हुआ कि कुत्ता बन जाऊँ. पूरे दिन वे चौपायों पर भागते,
अजनबियों पर भौंकते और एक बार तो उन्होंने अधेड़ उम्र की एक औरत को काटने की कोशिश भी
की, जो उनके सिर पर हाथ फेरना चाह रही थी. छोटे डैडी बहुत अच्छी तरह भौंकना सीख गए
थे, मगर पैर से कान के पीछे खुजाने की कला वो नहीं सीख पाए, हालाँकि इसके लिए वो अपना
पूरा ज़ोर लगा रहे थे. ज़्यादा अच्छी तरह से ऐसा करने के लिए वो बाहर आँगन में आकर तूज़िक
के पास बैठ गए. रास्ते पर एक अनजान फ़ौजी जा रहा था. वह रुक गया और डैडी की ओर देखने
लगा. देखा, देखा, और फिर पूछने लगा:
“बच्चे,
ये तू क्या कर रहा है?”
“मैं
कुत्ता बनना चाहता हूँ,” छोटे डैडी ने कहा. तब अनजान फ़ौजी ने पूछा:
“और,
तू इन्सान बनना नहीं चाहता?”
“मैं
तो कब का इन्सान ही हूँ!” डैडी ने कहा.
“तू
कहाँ का इन्सान है,” फ़ौजी ने कहा, “अगर तू कुत्ता तक नहीं बन सकता? क्या इन्सान ऐसा
होता है?”
“तो फिर कैसा होता है?” डैडी ने पूछा.
“ज़रा तू ही सोच?” फौजी ने कहा और चला गया.
वह बिल्कुल भी नहीं हँसा, न ही मुस्कुराया. मगर छोटे डैडी को न जाने क्यों बहुत शर्म आई. और वो सोचने लगे. वो सोचते रहे, सोचते रहे, और जितना ज़्यादा सोचा उतनी ही ज़्यादा उन्हें शर्म आती रही. फ़ौजी ने उन्हें कुछ भी नहीं समझाया था. मगर वो ख़ुद ही फ़ौरन समझ गए कि हर रोज़ नया-नया व्यवसाय नहीं चुनना चाहिए. और ख़ास बात ये कि अभी वो छोटे हैं और उन्हें ख़ुद को ही नहीं मालूम कि वो क्या बनेंगे. अब जब उनसे इस बारे में पूछा जाता तो उन्हें फ़ौजी की याद आ जाती और वो कहते:
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