शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

Jab Daddy Chhote the - 06


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डैडी और म्यूज़िक 


जब डैडी छोटे थे, तो उनके लिए तरह-तरह के खिलौने खरीदे जाते थे.  छोटी सी गेंद. लोटो. स्किटल. चाभी वाली कार. और एक दिन अचानक पियानो ख़रीद लाए. खिलौने वाला नहीं, बल्कि सचमुच का, बड़ा, ख़ूबसूरत, काली, चमचमाती छत वाला. पियानो ने फ़ौरन आधा कमरा घेर लिया. डैडी ने दादाजी से पूछा:
 “क्या तुम्हें पियानो बजाना आता है?”
 “नहीं, नहीं आता,” दादाजी ने कहा.
तब डैडी ने दादी सो पूछा:
 “और, दादी, क्या तुम्हें पियानो बजाना आता है?”
 “नहीं,” दादी ने कहा, “नहीं आता.”
 “तो फिर इसे कौन बजाएगा?” छोटे डैडी ने पूछा.
तब दादा और दादी ने बड़े प्यार से कहा:
 “तू!”
 “मगर, मुझे भी तो बजाना नहीं आता,” डैडी ने कहा.
 “तुझे म्यूज़िक सिखाने वाले हैं,” दादाजी ने घोषणा की.
और दादी ने पुश्ती जोड़ी:
 “तेरी म्यूज़िक-टीचर का नाम है नादेझ्दा फ्योदोरोव्ना.”

अब डैडी समझ गए कि ये उन्हें बहुत बड़ी गिफ्ट मिली है. इससे पहले कभी भी किसी टीचर को नहीं बुलाया गया था. नए नए खिलौनों से खेलना वो ख़ुद ही सीखते थे.

म्यूज़िक-टीचर – नादेझ्दा फ़्योदोरोव्ना आ गई. वो शांत स्वभाव की, अधेड़ उम्र की महिला थी. उसने डैडी को दिखाया कि पियानो कैसे बजाते हैं. वो डैडी को ‘नोट्स’ सिखाने लगी. डैडी ने ‘नोट्स’ सीख लिए. वे सात थे: ‘दो’, ‘रे’, ‘मी’, ‘फ़ा’, ‘सोल्’, ‘ल्या’, की. डैडी ने उन्हें बहुत जल्दी याद कर लिया. ये उन्होंने ऐसे किया: एक पेन्सिल ली और एक कागज़ लिया. फिर बोले:
 “ ‘दो’ – कौए का घोंसला.” उन्होंने एक पेड़ बनाया, पेड़ पर घोंसला बनाया, घोंसले में पिल्ले, और बगल में कौआ बनाया. “ ‘रे’ आँगन में कुत्ते.” और उन्होंने आँगन बनाया, आँगन में एक बूथ, और बूथ में एक कुत्ता बनाया. फिर डैडी ने ‘मी’ बनाया – नाव में बैठे लोग, ‘फ़ा’ – शहर ऊफ़ा, ‘सोल्’ – सोल् (नमक) , ‘ल्या’ – राजा की बेटी, और ‘सी’ – ‘करासी’ नदी. डैडी को ये सब बहुत अच्छा लगा. मगर वो जल्दी ही समझ गए कि पियानो बजाना उतना आसान नहीं है. एक ही एक चीज़ दस-दस बार बजाना उन्हें अच्छा नहीं लगता, और वैसे भी पियानो बजाने के मुकाबले में पढ़ना, घूमना, और कुछ भी न करना ज़्यादा दिलचस्प था. दो हफ़्तों में ही डैडी म्यूज़िक से इस कदर ‘बोर’ हो गए कि अब वो पियानो की ओर देख भी नहीं सकते थे. नादेझ्दा फ़्योदोरोव्ना, जो पहले डैडी की तारीफ़ करती थी, अब सिर्फ सिर हिला देती.
 “क्या तुझे ये अच्छा नहीं लगता?” वह डैडी से पूछती.
  “नहीं,” डैडी जवाब देते और हर बार सोचते कि अब वह गुस्सा हो जाएगी और उन्हें म्यूज़िक सिखाना बन्द कर देगी. मगर ऐसा नहीं हुआ.
दादा और दादी छोटे डैडी पर बहुत गुस्सा करते:
 “देख तो,” वे कहते, “कितना बढ़िया पियानो ख़रीदा है तेरे लिए. म्यूज़िक-टीचर भी आती है तेरे लिए...क्या तू म्यूज़िक सीखना ही नहीं चाहता? क्या तुझे शरम नहीं आती!”
और दादाजी कहते:
 “अभी ये म्यूज़िक सीखना नहीं चाहता. फिर वो स्कूल जाकर पढ़ना नहीं चाहेगा. फिर वो कहीं काम करना नहीं चाहेगा. ऐसे आलसियों से तो बचपन में ही कड़ी मेहनत करवानी चाहिए! देखता हूँ कि तू पियानो कैसे नहीं सीखता!”
दादी ने पुश्ती जोड़ी:
 “अगर मुझे कोई बचपन में पियानो बजाना सिखाता, तो मैं उसे ‘थैन्क्यू’ कहती.”
तब छोटे डैडी ने कहा:
 “मेनी थैन्क्स, मगर मैं और म्यूज़िक सीखना नहीं चाहता.”

और, जब नादेझ्दा फ़्योदोरोव्ना आई, तो डैडी ग़ायब हो गए. उन्हें पूरे घर में ढूँढ़ा गया, घर के बाहर ढूँढ़ा गया. पूरा घण्टा भर ढूँढ़ते रहे, मगर डैडी कहीं भी नहीं मिले. ठीक घण्टे भर बाद छोटे डैडी ख़ुद ही पलंग के नीचे से बाहर आ गए और बोले:
 “बाय, बाय, नादेझ्दा फ़्योदोरोव्ना.”
तब दादाजी बोले:
 “ मैं इसे सज़ा दूँगा!”
दादी ने भी पुश्ती जोड़ी:
 “मैं भी उसे अलग से सज़ा दूँगी!”
तब छोटे डैडी ने कहा:
 “जो चाहे वो सज़ा दीजिए, मगर मुझे पियानो बजाने पर मजबूर न कीजिए.”
और वो रोने लगे. आख़िर वो छोटे ही तो थे. और उन्हें पियानो बजाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. म्यूज़िक-टीचर नादेझ्दा फ़्योदोरोव्ना ने कहा:
 “म्यूज़िक से लोगों को ख़ुशी मिलनी चाहिए. मेरा कोई भी स्टूडेन्ट मुझ से भागकर पलंग के नीचे नहीं छुपता है. लड़कियाँ भी नहीं छुपतीं. अगर बच्चे को घण्टा भर पलंग के नीचे पड़े रहना ज़्यादा अच्छा लगता है, तो इसका मतलब ये हुआ कि वह म्यूज़िक नहीं सीखना चाहता. और अगर वो नहीं चाहता – तो उस पर ज़बर्दस्ती नहीं करेंगे. जब वह थोड़ा बड़ा हो जाएगा, तो हो सकता है कि वह ख़ुद ही अफ़सोस करेगा कि उसने म्यूज़िक क्यों नहीं सीखा. नमस्ते! गुड बाय! मैं उन बच्चों के पास जाऊँगी जो मुझे देखते ही पलंग के नीचे नहीं छुपते.”

और वह चली गई. फिर कभी नहीं आई. दादाजी ने फिर भी छोटे डैडी को सज़ा तो दी ही दी. दादी ने भी अलग से सज़ा दी. छोटे डैडी काफ़ी दिनों तक बड़े पियानो की तरफ़ गुस्से से देखा करते.
जब छोटे डैडी थोड़े से बड़े हुए तो उन्हें पता चला कि म्यूज़िक के लिए उनके मन में कोई रुचि नहीं है. आज तक वो कोई भी गाना ठीक तरह से नहीं गा सकते. बेशक, अगर म्यूज़िक सीखने पर उन्हें मजबूर किया जाता, तो वो पियानो बहुत ही बुरा बजाते होते.

हाँ, शायद, सारे बच्चों के लिए पियानो बजाना ज़रूरी नहीं है.

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