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जब डैडी ने कुत्ते को सधाया
जब डैडी छोटे थे, तो एक बार उन्हें सर्कस
ले गए. सर्कस की हर चीज़ डैडी के लिए बड़ी दिलचस्प थी. ख़ास तौर से उन्हें जंगली
जानवरों का रिंग-मास्टर बेहद पसन्द आया. उसने बहुत ख़ूबसूरत ड्रेस पहनी थी, उसका
नाम भी बड़ा सुन्दर था, और सारे शेर और सिंह उससे डर रहे थे. उसके पास कोड़ा था, और
पिस्तौलें भी थीं, मगर वह उनका ज़रा भी इस्तेमाल नहीं कर रहा था.
“जंगली जानवर भी मेरी आँखों से डरते हैं,” उसने
अरेना से घोषणा की. “मेरी नज़र – मेरा सबसे तेज़ हथियार है! जंगली जानवर इन्सान की
नज़रों का सामना नहीं कर सकता.”
ऑर्केस्ट्रा बड़ी शानदार धुन बजा रहा था,
दर्शक तालियाँ बजा रहे थे, सब लोग रिंग-मास्टर की ओर देख रहे थे, और उसने सीने पे
हाथ रखकर चारों ओर घूमते हुए झुककर अभिवादन किया. वाह, ये कितना शानदार था! और
डैडी ने फ़ैसला कर लिया कि वो भी रिंग-मास्टर बनेंगे. पहले उन्होंने सोचा कि अपनी
नज़र से किसी ऐसे जानवर को सधाया जाए, जो बहुत जंगली न हो. आख़िर डैडी छोटे ही तो
थे. वह समझ रहे थे कि सिंह और शेर जैसे बड़े-बड़े जानवरों को सधाना उनके बस की बात
नहीं है. शुरूआत कुत्ते से करनी चाहिए, और वो भी, बड़े कुत्ते से नहीं, क्योंकि बड़ा
कुत्ता – छोटे-मोटे सिंह जैसा ही होता है. कोई छोटा कुत्ता उनके लिए बिल्कुल ठीक
रहेगा.
जल्दी ही ऐसा मौक़ा भी आ गया.
छोटे से शहर पाव्लोवो-पसाद में एक छोटा सा
सिटी-पार्क था. अब तो वहाँ एक बड़ा भारी मनोरंजन और विश्राम पार्क है, मगर ये बात
तो बहुत-बहुत पहले की है ना. दादी इस पार्क में छोटे से डैडी को लेकर घूमने गई.
डैडी खेल रहे थे, दादी किताब पढ़ रही थी, और थोड़ी दूर एक सजी-धजी औरत अपने कुत्ते
के साथ बैठी थी. वो औरत भी किताब पढ़ रही थी. उसका कुत्ता छोटा-सा, सफ़ेद-झक्,
बड़ी-बड़ी काली आँखों वाला था. इन बड़ी-बड़ी काली आँखों से वह छोटे से डैडी की ओर इस
तरह देख रहा था, मानो उससे कह रहा हो: “मैं सधना चाहता हूँ! बच्चे, प्लीज़, मुझे
सधाओ. मैं इन्सान की नज़र को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता!”
छोटे डैडी पूरे पार्क को पार करते हुए इस
पिल्ले को सधाने के लिए चल पड़े. दादी किताब पढ़ रही थी, और कुत्ते की मालकिन भी
किताब पढ़ रही थी, और वे कुछ भी नहीं देख रही थीं. कुत्ता बेंच के नीचे लेटा था और
अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों से डैडी को रहस्यमय तरीके से घूर रहा था. डैडी बहुत
धीरे-धीरे चल रहे थे (वो बिल्कुल ही छोटे जो थे) और सोच रहे थे: “ओह, लगता है कि
ये मेरी नज़र बर्दाश्त कर रहा है...हो सकता है, कि शायद शेर से ही शुरू करना अच्छा
होता? लगता है कि इसने सधने का इरादा छोड़ दिया है.”
दिन बेहद गर्म था, और डैडी ने सिर्फ
शॉर्ट्स और सैण्डल्स ही पहने थे. डैडी चल रहे थे, और कुत्ता ख़ामोशी से लेटा था.
मगर जब डैडी उसके बिल्कुल पास पहुँचे तो उसने उछलकर डैडी के पेट पे काट लिया. तब
पार्क में हंगामा होने लगा. डैडी चिल्ला रहे थे. दादी चिल्ला रही थी. कुत्ते की
मालकिन चिल्ला रही थी. और कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंक रहा था. डैडी चिल्ला रहे थे:
“ओय, ओय, इसने मुझे काट लिया!”
दादी चिल्ला रही थी:
“आह, इसने बच्चे को काट लिया!”
कुत्ते की मालकिन चिल्ला रही थी:
“ये उसे चिढ़ा रहा था, मेरा कुत्ता बिल्कुल नहीं
काटता है!”
कुत्ता क्या चिल्ला रहा था, ये आप ख़ुद ही
समझ सकते हैं. कई लोग भागते हुए आए और चिल्लाने लगे:
“क्या बेहूदगी है!”
तब चौकीदार आया और पूछने लगा:
“बच्चे, क्या तूने इसे चिढ़ाया था?”
“नहीं,” डैडी ने कहा, “मैं तो उसे सधा रहा था.”
सब
लोग हँसने लगे, और चौकीदार ने पूछा:
“तू ये कैसे कर रहा था?”
“मैं उसके पास गया और उसकी तरफ़ देखने लगा,” डैडी
ने कहा. “अब मैं देख रहा हूँ कि वो इन्सान की नज़र को बर्दाश्त नहीं कर सकता.”
सब लोग फिर से हँसने लगे.
“देखा,” कुत्ते वाली औरत बोली, “क़ुसूर बच्चे का
ही है. उसे किसीने मेरे कुत्ते को सधाने के लिए नहीं कहा था. और आप पर,” उसने दादी
से कहा, “फ़ाईन लगाना चाहिए, जिससे कि आप अपने बच्चों पर ध्यान दें!”
दादी को इतना आश्चर्य हुआ कि वह कुछ कह ही
नहीं सकी. उसके मुँह से सिर्फ ‘आSS’ निकला .
तब चौकीदार ने कहा:
“देखिए, ये नोटिस लगा है: “कुत्तों को लाना मना
है!”. अगर ऐसा नोटिस लगा होता कि “बच्चों को लाना मना है!”, तो मैं बच्चे वाली
नागरिक पर फ़ाईन लगाता. मगर अभी तो मैं आपसे फ़ाईन लूँगा. आप अपने कुत्ते को लेकर
यहाँ से निकल जाईये, प्लीज़. बच्चा खेलता है, और कुत्ता काटता है. यहाँ खेलने की
इजाज़त तो है, मगर काटना मना है! मगर खेलते हुए भी दिमाग़ ठिकाने रखना चाहिए. कुत्ते
को तो नहीं न मालूम कि तू उसके पास क्यों जा रहा था. हो सकता है, तू ख़ुद ही उसे
काटना चाहता था? उसे तो ये मालूम नहीं है. समझा?”
“समझ गया,” डैडी ने जवाब दिया. अब तो
रिंग-मास्टर बनने का उनका ज़रा सा भी इरादा नहीं था. और उन इंजेक्शनों के बाद तो,
जो उन्हें सावधानी के तौर पे लगाए गए थे, वो इस पेशे से पूरी तरह निराश हो गए.
अब इन्सान की बर्दाश्त न होने वाली नज़र के
बारे में भी उनका अपना ख़याल था. बाद में, जब उनकी मुलाक़ात उस बच्चे से हुई जो एक
बड़े, ख़ूँखार कुत्ते की पलकें उखाड़ना चाहता था, तो डैडी और वो बच्चा एक दूसरे को
अच्छी तरह समझ गए.
इस बात से कोई फ़रक नहीं पड़ता था कि कुत्ते
ने उस बच्चे को पेट पे नहीं, बल्कि एकदम दोनों गालों पे काटा था. और ये, सबको फ़ौरन
नज़र आ रहा था. मगर इंजेक्शन्स तो उसे पेट में ही लगाए गए.
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