11
जब
डैडी ने अंकल वीत्या को सड़क पर छोड़ दिया
जब डैडी छोटे थे, तब उनका भाई उनसे भी
छोटा था.
अब इस भाई का नाम है अंकल वीत्या, वो इंजीनियर
है, उसका भी एक बेटा है, बेटे का नाम भी वीत्या है.
मगर उस समय ये बिल्कुल नन्हा बच्चा था. उसने
अभी-अभी चलना सीखा था. कभी-कभी वह अपने हाथों-पैरों से रेंगता भी था.
कभी सिर्फ ज़मीन
पर बैठा ही रहता था, इसलिए उसे अकेला नहीं छोड़ा जाता था. इत्ता छोटा था वो.
एक बार छोटे डैडी,
और बिल्कुल छोटे अंकल वीत्या कम्पाऊण्ड में खेल रहे थे. एक मिनट के लिए उन्हें अकेला
छोड़ा गया था. ठीक उसी समय उनकी गेंद लुढ़कती हुई गेट से बाहर निकल गई. गेंद के पीछे-पीछे
भागे डैडी. और डैडी के पीछे-पीछे चले अंकल वीत्या.
गेट के बाहर था
एक टीला. गेंद टीले से नीचे लुढ़कने लगी. उसके पीछे डैडी भी टीले से नीचे भागे. और डैडी
के पीछे-पीछे चलने लगे अंकल वीत्या.
टीले के नीचे
था रास्ता. वहाँ जाकर गेंद रुक गई, और छोटे डैडी ने उसे पकड़ लिया. और बिल्कुल छोटे
अंकल वीत्या ने डैडी को पकड़ लिया.
गेंद, हालाँकि सबसे
छोटी थी, मगर बिल्कुल नहीं थकी. छोटे डैडी थोड़ा सा थक गए. मगर अंकल वीत्या पूरी तरह
थक गए – उन्होंने तो हाल ही में चलना सीखा था! – इसलिए वो धम् से रास्ते पर बैठ गए.
इसी समय रास्ते
पर धूल के बादल उड़ने लगे, गाना गरजने लगा और घुड़सवार दिखाई दिए. वे तेज़ी से आगे बढ़
रहे थे. ये बहुत-बहुत पहले की बात है. युद्ध हाल ही में समाप्त हआ था.
छोटे डैडी को
अच्छी तरह मालूम था कि युद्ध ख़तम हो गया है. मगर फिर भी वो घबरा गए. उन्होंने गेंद
फेंक दी, अंकल वीत्या को वहीं रास्ते पर छोड़ दिया और घर की तरफ़ भागे.
नन्हे अंकल वीत्या
ज़मीन पर बैठे थे और गेंद से खेल रहे थे. वे घोड़ों से और सैनिकों से ज़रा भी नहीं घबराए.
वैसे भी वो किसी से भी नहीं डरते थे. वो बहुत-बहुत छोटे जो थे.
घुड़सवार अंकल वीत्या
के नज़दीक आए. सामने था उनका कमाण्डर - सफ़ेद घोड़े पर सवार.
“स्टॉप!” उसने आज्ञा दी, वह घोड़े से उतरा और उसने
अंकल वीत्या को अपने हाथों में उठा लिया. उसने उन्हें ऊपर उछाला, पकड़ लिया और हँसने
लगा:
“तो, कैसी चल रही है ज़िन्दगी?” उसने पूछा. अंकल वीत्या
भी हँसने लगे और उन्होंने उसकी ओर गेंद बढ़ा दी. टीले से दादाजी, दादा और छोटे डैडी
भागते हुए आ रहे थे.
दादी चिल्लाई:
“मेरा बच्चा कहाँ है?”
दादाजी चीखे:
“चिल्लाओ मत!”
छोटे डैडी ज़ोर-ज़ोर
से रो रहे थे. तब कमाण्डर ने कहा:
“ये रहा आपका बच्चा! बहादुर जवान: न तो लोगों से
डरता है, न ही घोड़ों से!”
कमाण्डर ने आख़िरी
बार अंकल वीत्या को ऊपर उछाला और उसे दादी को सौंप दिया. दादाजी को उसने गेंद थमा दी.
फिर उसने छोटे डैडी की तरफ़ देखा और कहा:
“हारून भागा हिरन से तेज़...”
इस पर सब लोग हँसने लगे. फिर घुड़सवार आगे निकल
गए. दादाजी, दादी, छोटे डैडी और बिल्कुल छोटे अंकल वीत्या घर की ओर चल पड़े. दादाजी
ने छोटे डैडी से कहा:
“हारून
भागा हिरन से तेज़, क्योंकि वह था डरपोक. ये लेर्मोंतोव की कविता है. थोड़ी शर्म कर!”
छोटे डैडी को बड़ी शर्म आई. जब वो बड़े हो गए
और उन्होंने लेर्मोंतोव की सारी कविताएँ पढ़ लीं, तो इन शब्दों को पढ़ते हुए उन्हें हमेशा
शरम आती थी.
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