रविवार, 8 अक्टूबर 2023

Chuk & Gek - 14

 

 

14

 

एकोर्डियन वाले अंकल उसका साथ दे रहे थे, और उसने सबके लिए गाना गाया. कौन सा – ये तो मुझे अब याद नहीं है. इतना याद है, कि ये बहुत अच्छा गाना था, क्योंकि उसे सुनते हुए सारे लोग शांत हो गए थे. और जब गेक रुका, ताकि सांस ले सके, तो सुनाई से रहा था कि कैसे मोमबत्तियां चटचटा रही हैं, और खिड़की के पीछे हवा गरज रही है.

और जब गेक ने गाना ख़त्म कि या तो सब लोग शोर मचाने लगे, चिल्लाने लगे, गेक को हाथों में उठाकर उसे उछालने लगे. मगर मम्मा ने फ़ौरन गेक को उनसे छुडा लिया, क्योंकि वह डर रही थी कि मस्ती में उसे गर्म छत से न टकरा दें.

“अब बैठिये,” घड़ी देखते हुए पापा ने कहा. “अब सबसे महत्वपूर्ण बात होने वाली है. उन्होंने रेडियो चालू किया. सब बैठ गए और खामोश हो गए. पहले तो खामोशी थी. मगर फिर शोर , हो-हल्ला, बीप-बीप सुनाई दी. फिर कहीं कुछ खटखट हुई, फुसफुसाहट हुई और कहीं दूर से सुरीली आवाज़ सुनाई दी.

छोटी और बड़ी घंटियाँ इस तरह बज रही थीं:

त्रि-लील्-लीली-डॉन !

त्रि-लील्-लीली-डॉन !

 

चुक और गेक ने एक दूसरे को देखा. वे समझ गए कि ये क्या है. ये दूर-बहुत दूर मॉस्को में स्पास्काया टॉवर पर क्रेमलिन की सुनहरी घड़ी घंटे बजा रही थी.

और ये गूँज – नए साल से पहले – इस समय लोग सुन रहे थे – शहरों में, और पहाड़ों में, स्टेपी में, तायगा में, नीले समुन्दर में.

और, बेशक, बख्तरबंद ट्रेन का संजीदा कमांडर भी, वही, जो बिना थके दुश्मनों पर हमला करने के लिए वरशिलोव की कमांड की प्रतीक्षा कर रहा था, यह धुन सुन रहा था.

और तब सब लोग उठ गए, एक दूसरे को नए साल की बधाइयां देने लगे और सबके लिए खुशहाली की कामना करने लगे.

खुशी क्या है – ये हर कोई अपने-अपने तरीके से समझ रहा था. मगर सभी लोग एक साथ ये जानते थे और समझते थे, कि ईमानदारी से जीना चाहिए, खूब मेहनत करना चाहिए और शिद्दत से प्यार करना चाहिए और इस महान, खुशहाल धरती की हिफाज़त करना चाहिए, जिसे सोवियत देश कहते हैं.   

     

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