मंगलवार, 3 अक्टूबर 2023

Chuk & Gek - 10

 

 

10

दो दिन बीत गए, तीसरा आ गया, मगर वाचमैन जंगल से नहीं लौटा, और उस छोटे-से, बर्फ से ढंके घर को भय ने घेर लिया.

खासकर शाम को और रात में बहुत डर लगता था. वे दालान, दरवाज़े पक्के बंद कर लेते और, ताकि रोशनी से जानवरों को आकर्षित न करें, खिड़कियों को कम्बल से पूरी तरह ढांक देते, हाँलाकि इससे बिल्कुल विपरीत करना चाहिए था, क्योंकि जानवर – इन्सान नहीं है और वह आग से डरता है. भट्टी के पाईप के ऊपर, जैसा कि स्वाभाविक था, हवा शोर मचा रही थी, और जब बर्फीला तूफ़ान दीवारों और खिड़कियों पर नुकीले बर्फ के टुकड़ों की मार करता, तो सबको ऐसा लगता, मानो बाहर से कोई धकेल रहा है और खुरच रहा है.

वे भट्टी के ऊपर सोने के लिए चढ़ गये, और वहाँ मम्मा ने उन्हें कई सारी कहानियां और परीकथाएँ सुनाईं. आखिरकार वह ऊंघने लगी.

“चुक,” गेक ने पूछा, “अलग अलग कहानियों और परीकथाओं में जादूगर क्यों होते हैं? और, यदि वे असली ज़िंदगी में भी होते तो क्या होता?

“और जादूगरनियाँ और चुड़ैलें भी होतीं, तो?” चुक ने पूछा.

“अरे नहीं,” गेक ने तैश से हाथ हिलाए, “चुड़ैलों की ज़रुरत नहीं है. उनका क्या फ़ायदा है? हम जादूगर से कहते कि वह उड़कर पापा के पास जाए और उनसे कहे, कि हम कब के आ चुके हैं.”

“और वह किस पर बैठकर उड़ता, गेक?

“अरे, किस पर...हाथ हिलाते हुए जाता या किसी और तरह से. वो खुद ही जानता है.”

“आजकल हाथों को हिलाने से ठंड लगती है,” चुक ने कहा. “मेरे पास देख, कैसे हाथमोज़े और दस्ताने हैं, मगर फिर भी, जब मैं लट्ठा घसीट रहा था, तो मेरी उंगलियाँ पूरी तरह जम गईं थीं.”      

“नहीं, तुम बताओ, चुक, फिर भी अच्छा ही होता ना?

“मैं नहीं जानता,” चुक हिचकिचाया. “याद है, हमारे कम्पाऊंड में, नीचे बेसमेंट में, जहाँ मीश्का क्र्यूकव रहता है, कोई अपाहिज आदमी रहता था. कभी वह गोल ब्रेड बेचता, कभी उसके पास हर तरह की औरतें, बूढ़ियाँ आतीं, और वह उन्हें भविष्य बताता, किसका जीवन सुखी होगा और किसका दुःख भरा.”

“क्या वह सही बताता था?

“मुझे नहीं पता. मुझे सिर्फ इतना मालूम है कि बाद में पुलिस आई, उसे पकड़ कर ले गई और उसके क्वार्टर से काफ़ी सारा औरों का माल ले गई.”

“अच्छा, तो, वह जादूगर नहीं, बल्कि बदमाश था. तू क्या सोचता है?

“बेशक, बदमाश था,” चुक ने सहमति दर्शाई. “और, मैं ये सोचता हूँ, कि सभी जादूगर बदमाश होते हैं. अच्छा, बता, उसे काम करने की क्या ज़रुरत है, जबकि वह हर छेद में घुस सकता है? उतना ही लो, जितने की ज़रुरत हो...अच्छा है, कि तुम सो जाओ, गेक, वैसे भी मैं तुमसे अब बातें नहीं करूंगा.”

“क्यों?

“क्योंकि तुम हर बेवकूफी वाली बात करते हो, और रात को तुम्हें उसके सपने आते हैं, तुम कुहनियों से और घुटनों से मारने लगते हो. क्या ख़याल है, क्या कल तुमने मेरे पेट में अच्छी तरह मुक्का मारा था? चल, मैं भी तुझ पर मुक्के बरसाता हूँ...”

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