अध्याय 6
अबाबील
एक बार शाम को
बूम्बा उल्लू ने कहा:
“धीरे, धीरे! दरवाज़े के पीछे ये कौन खुरच रहा
है? शायद कोई चूहा है.”
सबने कान लगाकर
सुना, मगर किसी को कुछ सुनाई नहीं दिया.
“दरवाज़े के पीछे कोई भी नहीं है,” डॉक्टर ने
कहा. “तुझे बस, ऐसा लगा था.”
“नहीं, लगा-वगा नहीं” उल्लू ने प्रतिरोध किया.
“मैं सुन रहा हूँ कि कोई खुरच रहा है. या तो ये चूहा है या कोई पंछी. आप मेरा यक़ीन
कीजिए. हम, उल्लू, इन्सानों से ज़्यादा अच्छा सुन सकते हैं.”
बूम्बा ने गलत
नहीं कहा था.
बन्दरिया ने
दरवाज़ा खोला और देहलीज़ पर देखा अबाबील को.
अबाबील –
सर्दियों में! कितने आश्चर्य की बात ! अबाबीलें तो बर्फ बर्दाश्त नहीं कर सकतीं,
और जैसे ही शिशिर का आगमन होता है, गर्म अफ्रीका की ओर उड़ जाती हैं. बेचारी, कितनी
ठण्ड लग रही है उसे! वह बर्फ पे बैठी है और थरथरा रही है.
“अबाबील!” डॉक्टर चिल्लाया. “कमरे में आ जा और भट्टी
के पास गर्मा ले.”
पहले तो अबाबील
को भीतर आने से डर लगा. उसने देखा कि कमरे में मगरमच्छ लेटा है, और सोचा कि वह उसे
खा जाएगा. मगर बन्दरिया चीची ने उससे कहा कि मगरमच्छ बहुत भला है. तब अबाबील उड़कर
कमरे में आई, चारों ओर देखा और पूछा:
”चिरूतो,
किसाफ़ा, माक?”
जानवरों की
भाषा में इसका मतलब हुआ:
“क्या मशहूर डॉक्टर आयबलित यहीं रहते हैं?”
“मैं ही आयबलित हूँ” डॉक्टर ने कहा.
“मैं आपके पास बहुत बड़ी विनती करने आई हूँ,”
अबाबील ने कहा. “आपको फ़ौरन अफ़्रीका जाना होगा. मैं ख़ास तौर से अफ्रीका से उड़कर आई
हूँ – आपको बुलाने के लिए. वहाँ, अफ्रीका में, बन्दर रहते हैं, और अब ये बन्दर
बीमार हैं.”
”उन्हें क्या
तकलीफ़ है?” डॉक्टर ने पूछा.
“उनके पेट में दर्द है,” अबाबील ने कहा. “वे
ज़मीन पर लोटपोट करते हुए रो रहे हैं. एक ही आदमी है, जो उन्हें बचा सकता है - और
वो हैं आप. अपने साथ दवाएँ ले लीजिए, और हम फ़ौरन अफ्रीका के लिए निकलेंगे. अगर आप
अफ्रीका नहीं जाएँगे तो सारे बन्दर मर जाएँगे.”
“आह,” डॉक्टर ने कहा, “मैं तो बड़ी ख़ुशी से
अफ्रीका चलता! मुझे बन्दर अच्छे लगते हैं, और ये सुनकर मुझे अफ़सोस हुआ कि वो बीमार
हैं. मगर मेरे पास जहाज़ नहीं है. अफ्रीका जाने के लिए जहाज़ की ज़रूरत पड़ेगी ना.”
“बेचारे बन्दर!” मगरमच्छ ने कहा. अगर डॉक्टर
अफ्रीका नहीं जाएँगे, तो वे सब मर जाएँगे. सिर्फ वही अकेले उन्हें ठीक कर सकते
हैं.”
और मगरमच्छ
इतने मोटे-मोटे आँसू बहाने लगा कि फर्श पर दो छोटी-छोटी नदियाँ बन गईं.
अचानक डॉक्टर
आयबलित चिल्लाया:
“फिर भी, मैं अफ्रीका जाऊँगा! फिर भी, मैं बीमार
बन्दरों का इलाज करूँगा! मुझे याद आया, कि मेरी पहचान के एक बूढ़े नाविक, रॉबिन्सन
के पास, जिसकी मैंने जान बचाई थी, एक बढ़िया जहाज़ है.”
उसने अपनी हैट
उठाई और नाविक रॉबिन्सन के पास गया.
“नमस्ते, नाविक रॉबिन्सन!” उसने कहा. “ मेहेरबानी
करके मुझे अपना जहाज़ दो. मुझे अफ्रीका जाना है. वहाँ, सहारा रेगिस्तान से थोड़ी दूर
शानदार ‘बन्दरों का देश’ है”.
“ठीक है,” नाविक रॉबिन्सन ने कहा. “मैं बड़ी ख़ुशी
से तुम्हें जहाज़ दे दूँगा. आख़िर तुमने मेरी जान बचाई है, और तुम्हारी सेवा करने
में मुझे ख़ुशी होगी.”
मगर देखो, मेरा
जहाज़ वापस ज़रूर ले आना, क्योंकि मेरे पास कोई दूसरा जहाज़ नहीं है.”
“ज़रूर लाऊँगा,” डॉक्टर ने कहा. “घबराओ मत. मुझे
बस अफ्रीका ही जाना है.”
“ले लो, ले लो!” रॉबिन्सन ने दुहराया. “मगर देखो,
वो पानी के अन्दर के पत्थरों से न टकराए!”
“डरो मत, नहीं टकराएगा,” डॉक्टर ने कहा और नाविक
रॉबिन्सन को धन्यवाद देकर अपने घर भागा.
“जानवरों, तैयारी करो!” वह चिल्लाया. “कल हम
अफ्रीका जा रहे हैं!”
जानवर बहुत ख़ुश
हो गए, वे उछलने लगे और तालियाँ बजाने लगे. सबसे ज़्यादा ख़ुश थी बन्दरिया चीची.
“जाऊँगी, जाऊँगी,
अफ्रीका जाऊँगी,
मेरे देस
जाऊँगी!
अफ्रीका,
अफ्रीका,
मेरी अपनी अफ्रीका!”
“मैं सारे जानवरों को अफ्रीका नहीं ले जाऊँगा,” डॉक्टर
आयबलित ने कहा. “साही, चमगादड़ और खरगोश यहीं रहेंगे, मेरे घर में. उनके
साथ घोड़ा भी रहेगा. अपने साथ मैं ले जाऊँगा मगरमच्छ को, बन्दरिया चीची को, और तोते
कारूदो को क्योंकि वे सब अफ्रीका के ही हैं: वहाँ उनके माँ-बाप, भाई और बहन रहते
हैं. इनके अलावा मैं अपने साथ अव्वा को, कीकू को, बूम्बा को, और सुअर ख्रू-ख्रू को
ले जाऊँगा”.
“और हम?” तान्या और वान्या चिल्लाए. “क्या हम
तुम्हारे बगैर यहाँ रहेंगे?”
“हाँ,” डॉक्टर ने कहा, और कस कर उनसे हाथ मिलाया.
“अलबिदा, प्यारे दोस्तों! तुम लोग यहाँ रहोगे और मेरे बाग की और किचन-गार्डन की
देखभाल करोगे.
हम बहुत जल्दी
वापस लौटेंगे! और मैं तुम्हारे लिए अफ्रीका से ख़ूबसूरत तोहफ़ा लाऊँगा.”
तान्या और
वान्या ने मुँह लटका लिए. मगर फिर कुछ सोचकर बोले:
“कुछ नहीं कर सकते: हम अभी छोटे हैं. शुभ यात्रा!
मगर जब हम बड़े हो जाएँगे, तो ज़रूर तुम्हारे साथ सफ़र पे जाएँगे.”
“सवाल ही नहीं!”
डॉक्टर आयबलित ने कहा. “तुमको बस थोड़ा सा बड़ा होना है.”
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