बुधवार, 3 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित -1.07

अध्याय 7

अफ्रीका की ओर

जानवरों ने जल्दी-जल्दी सामान रख लिया और वे निकल पड़े.

घर पे रह गए सिर्फ ख़रगोश और साही और चमगादड़.

समन्दर के किनारे पर आने के बाद जानवरों को दिखाई दिया एक ख़ूबसूरत जहाज़. वहीं, टीले पर खड़ा था नाविक रॉबिन्सन. वान्या और तान्या ने बन्दरिया चीची और सुअर ख्रू-ख्रू के साथ डॉक्टर को दवाईयों के बक्से जहाज़ पर ले जाने में मदद की. सारे जानवर जहाज़ पर चढ़ गए और वो चलने ही वाले थे कि अचानक डॉक्टर ज़ोर से चिल्लाया:
”रुको, रुको, प्लीज़!”
 “क्या हुआ?” मगरमच्छ ने पूछा.
 “रुकिए! रुकिए!” डॉक्टर चिल्लाया. “मगर मुझे तो मालूम ही नहीं है कि अफ्रीका कहाँ है! जाकर पूछना पड़ेगा.”

मगरमच्छ हँसने लगा.

”मत जाओ! इत्मीनान रखो! अबाबील तुम्हें रास्ता दिखाएगी. वह कई बार अफ्रीका गई है. अबाबीलें हर साल शिशिर ऋतु में अफ्रीका जाती हैं.”

 “बेशक!” अबाबील ने कहा. “मैं बड़ी ख़ुशी से तुम्हें वहाँ का रास्ता दिखाऊँगी.

और वो, डॉक्टर आयबलित को रास्ता दिखाते हुए जहाज़ के आगे-आगे उड़ने लगी.
वह अफ्रीका की ओर उड़ रही थी, और डॉक्टर आयबलित ने जहाज़ को उसके पीछे मोड़ दिया.
जहाँ अबाबील, वहीं जहाज़ जाने लगा.

रात में अंधेरा छा गया, और अबाबील दिखाई देना बन्द हो गया.

तब उसने एक लैम्प जलाया, उसे अपनी चोंच में पकड़ लिया और लैम्प के साथ उड़ने लगी, जिससे डॉक्टर रात को भी देख सकता था कि उसे अपना जहाज़ किस दिशा में ले जाना है.

वे जा रहे थे, जा रहे थे, अचानक क्या देखते हैं – उनके पास उड़ते हुए एक सारस आ रहा है.

 “मुझे बताईये, प्लीज़, कहीं आपके जहाज़ में मशहूर डॉक्टर आयबलित तो नहीं है?”
 “हाँ”, मगरमच्छ ने जवाब दिया. “मशहूर डॉक्टर आयबलित हमारे ही जहाज़ पर हैं.”
 “डॉक्टर से कहिए, प्लीज़, कि वो जल्दी-जल्दी जहाज़ चलाए, - क्योंकि बन्दरों की हालत बदतर होती जा रही है. वे बड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे हैं.”
 “घबराओ मत!” मगरमच्छ ने कहा. “हमने सारे पाल चढ़ा दिए हैं. बन्दरों को ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा.”

ये सुनकर सारस बहुत ख़ुश हो गया और वापस उड़ चला, बन्दरों को ये बताने के लिए कि डॉक्टर आयबलित नज़दीक ही है.

जहाज़ लहरों पर तेज़ी से भागा जा रहा था. मगरमच्छ डेक पर बैठा था, अचानक उसने देखा कि जहाज़ की तरफ़ खूब सारी डेल्फ़िन्स आ रही हैं.

 “प्लीज़ बताईये,” डेल्फिन्स ने पूछा, “इस जहाज़ पे मशहूर डॉक्टर आयबलित तो नहीं है?”
 “हाँ,” मगरमच्छ ने जवाब दिया. “मशहूर डॉक्टर आयबलित इसी जहाज़ पर है.”
 “मेहेरबानी करके, डॉक्टर से कहिए कि वो और तेज़ी से जहाज़ चलाए, क्योंकि बन्दरों की हालत बिगड़ती जा रही है.”
 “घबराओ नहीं!” मगरमच्छ ने जवाब दिया. “हमने सारे पाल चढ़ा दिए हैं. बन्दरों को ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा.”

सुबह डॉक्टर ने मगरमच्छ से कहा:
 “वो सामने क्या है? धरती का कोई बहुत बड़ा टुकड़ा है. मेरा ख़याल है कि ये अफ्रीका है.”
 “हाँ, ये अफ्रीका है!” मगरमच्छ ख़ुशी से चिल्लाया. “अफ्रीका! अफ्रीका! जल्दी ही हम अफ्रीका में होंगे! मैं शुतुरमुर्ग देख रहा हूँ! मैं गैण्डे देख रहा हूँ! मैं ऊँट देख रहा हूँ! मैं हाथी देख रहा हूँ!

अफ्रीका, अफ्रीका!
धरती प्यारी, प्यारी!
अफ्रीका, अफ्रीका!


मातृभूमि मेरी!”

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