अध्याय
16
नई
मुसीबतें और ख़ुशियाँ
उसने बस, इतना
कहा ही था, कि अंधेरे जंगल से बर्मालेय के सेवक भागते हुए निकले और उन्होंने भले
डॉक्टर पर हमला कर दिया. वे काफ़ी दिनों से उसका इंतज़ार कर रहे थे.
“अहा!” वे चिल्लाए. “आख़िर हमने तुम्हें पकड़ ही
लिया! अब तुम हमसे बच नहीं सकते!”
क्या किया जाए?
इन क्रूर दुश्मनों से कहाँ छुपा जाए?
मगर डॉक्टर
परेशान नहीं हुआ. एक ही पल में वह त्यानितोल्काय पे सवार हो गया, और वह सरपट भागने
लगा, जैसे कोई सबसे तेज़ घोड़ा दौड़ता है.
बर्मालेय के
सेवक – उसके पीछे-पीछे.
मगर चूंकि
त्यानितोल्काय के दो सिर थे, वह पीछे से उस पर हमला करने वाले को काट रहा था. और
औरों को सींगों से मार मार के कंटीली झाड़ियों में फेंक रहा था.
बेशक, सभी दुष्टों
का मुक़ाबला करना अकेले त्यानितोल्काय के बस की बात नहीं थी. मगर सौभाग्य से डॉक्टर
की सहायता के लिए फ़ौरन उसके वफ़ादार सेवक और दोस्त भागते हुए आए. जहाँ से भी देखो, मगरमच्छ
भाग कर आता और डाकुओं की नंगी एड़ियाँ पकड़ लेता. कुत्ता अव्वा भयानक गुर्राहट से उन
पर कूदता, उन्हें गिरा देता, और उनके गले में दाँत गड़ा देता. और ऊपर, पेड़ों की
टहनियों से, बन्दरिया चीची कूदते हुए डाकुओं को अखरोटों से मार रही थी.
डाकू गिर रहे
थे, दर्द से कराह रहे थे, और अंत में उन्हें वहाँ से भागना ही पड़ा.
वे शर्मिन्दा
होकर जंगल के भीतर भाग गए.
“हुर्रे!” आयबलित चिल्लाया.
“हुर्रे!” सारे जानवर चिल्लाए.
और सुअर
ख्रू-ख्रू ने कहा:
“अब हम थोड़ा आराम कर सकते हैं. यहाँ घास पर लेट
जाते हैं. हम थक गए हैं. हमें नींद आ रही है.”
“नहीं, मेरे दोस्तों!” डॉक्टर ने कहा. “हमें जल्दी
करना चाहिए. अगर हम सुस्त हो गए, तो बचना मुश्किल हो जाएगा.”
और वे पूरी
रफ़्तार से आगे दौड़े. जल्दी ही त्यानितोल्काय डॉक्टर को समन्दर के किनारे पर ले
आया. वहाँ, खाड़ी में, ऊँची चट्टान के पास एक बड़ा और ख़ूबसूरत जहाज़ खड़ा था. ये
बर्मालेय का जहाज़ था.
“हम बच गए!” डॉक्टर खुश हो गया.
जहाज़ पर एक भी
आदमी नहीं था. डॉक्टर अपने सभी जानवरों के साथ जल्दी से जहाज़ पर चढ़ गया, उसने पाल
चढ़ा दिए और खुले समन्दर में जाने लगा. मगर जैसे ही वह किनारे से दूर हटा, अचानक
जंगल से भागता हुआ बर्मालेय आया.
“रुक जा!” वह चिल्लाया. “रुक जा! मेरा जहाज़ कहाँ
ले जा रहा है? फ़ौरन वापस लौट आ!”
“नहीं!” डॉक्टर ने चिल्लाकर डाकू से कहा. “तेरे पास
वापस लौटना नहीं चाहता.
तू इतना दुष्ट
और क्रूर है. तूने मेरे जानवरों को सताया है. तूने मुझे जेल में बन्द कर दिया था.
तू मुझे मार
डालना चाहता था. तू मेरा दुश्मन है! मैं तुझसे नफ़रत करता हूँ! और मैं तुझसे तेरा
जहाज़ छीनकर ले जा रहा हूँ, जिससे तू समुद्र में और डाके न डाल सके!
जिससे कि
असुरक्षित जहाज़ों को न लूट सके, जो तेरे किनारे से होकर गुज़रते हैं.”
बर्मालेय को
भयानक गुस्सा आया: वह किनारे पर भागता रहा, गालियाँ देता रहा, मुक्के दिखा-दिखाकर
धमकियाँ देता रहा और बड़े-बड़े पत्थर उनपर फेंकता रहा. मगर डॉक्टर आयबलित उस पर
सिर्फ हँसता रहा. बर्मालेय के जहाज़ से वह सीधा अपने देश पहुँचा और कुछ ही दिनों
में अपनी मातृभूमि के किनारे पर उतरा.
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