अध्याय 11
बन्दरों के पुल पर
जब बर्मालेय को
पता चला कि डॉक्टर आयबलित जेल से भाग गया है तो उसे भयानक गुस्सा आया, उसकी आँखें
अंगारों जैसी चमकने लगीं, वह पैर पटकने लगा.
“ऐ तुम, मेरे वफ़ादार सेवकों!” वह चीख़ा. “डॉक्टर का
पीछा करो! उसे पकड़कर यहाँ लाओ!”
सेवक घने जंगल
के भीतर भागे और डॉक्टर आयबलित को ढूँढ़ने लगे. तब तक डॉक्टर अपने सभी जानवरों के
साथ अफ्रीका होते हुए ‘बन्दरों के देश’ तक पहुँच चुका था. वह खूब तेज़ चल रहा था.
सुअर ख्रू-ख्रू, जिसके पैर छोटे-छोटे थे, उसके साथ-साथ नहीं चल पा रहा था. डॉक्टर
ने उसे अपने हाथों में उठा लिया.
सुअर काफ़ी भारी
था, और डॉक्टर भयानक थक गया.
“ओह, काश मैं थोड़ा आराम कर सकता!” उसने कहा. “काश,
हम जल्दी से ‘बन्दरों के देश’ पहुँच जाते!”
चीची एक ऊँचे
पेड पर चढ़ गई और चिल्लाई:
“मैं ‘बन्दरों का देश’ देख रही हूँ! ‘बन्दरों का
देश’ पास ही है! जल्दी, बहुत जल्दी, हम ‘बन्दरों के देश’ में होंगे!”
डॉक्टर प्रसन्नता
से मुस्कुराने लगा और आगे की ओर लपका.
बीमार बन्दरों
ने दूर से ही डॉक्टर को देख लिया और वे ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगे:
“हुर्रे! डॉक्टर आयबलित हमारे यहाँ आ गया है!
डॉक्टर आयबलित फ़ौरन हमें ठीक कर देगा. और हम कल ही बिल्कुल तन्दुरुस्त हो जाएँगे!”
मगर तभी घने
जंगल से बर्मालेय के सेवक भागते हुए निकले और डॉक्टर का पीछा करने लगे.
“पकड़ो उसे! पकड़ो! पकड़ो!” वे चिल्ला रहे थे.
डॉक्टर अपनी
पूरी ताक़त से भाग रहा था. और अचानक – सामने आई नदी. आगे भागना संभव नहीं था. नदी
चौड़ी थी, तैर कर उसे पार करना संभव नहीं था. अभ्भी बर्मालेय के सेवक उसे पकड़
लेंगे!
आह, अगर इस नदी पर एक पुल होता, डॉक्टर पुल से भागता हुआ जाता और सीधे ‘बन्दरों
के देश’ में ही पहुँच जाता!
“ओह, हम,
बेचारे, बिल्कुल बेचारे!” सुअर ख्रू-ख्रू ने कहा. “हम उस किनारे कैसे पहुँचेंगे?
एक मिनट बाद ये दुष्ट हमें पकड़ लेंगे और वापस जेल में डाल देंगे.”
मगर तभी एक
बन्दर चिल्लाया:
“पुल! पुल! पुल बनाओ! फ़ौरन! एक भी पल बरबाद मत
करो! पुल बनाओ! पुल!”
डॉक्टर ने इधर-उधर
देखा. बन्दरों के पास न तो लोहा है, न ही पत्थर. पुल किससे बनाएँगे?
मगर बन्दरों ने
न तो लोहे से, न ही पत्थरों से पुल बनाया, उन्होंने पुल बनाया ज़िन्दा बन्दरों से.
नदी के किनारे पर एक पेड़ था. इस पेड़ को एक बन्दर ने पकड़ लिया, और दूसरे बन्दर ने
इस वाले बन्दर की पूँछ पकड़ ली. इस तरह से सारे बन्दर नदी के दोनों ऊँचे किनारों के
बीच इस तरह खिंचते गए जैसे एक लम्बी श्रृंखला हो.
“ये रहा पुल तुम्हारे लिए. भागो!” वे चिल्लाकर
डॉक्टर से बोले.
डॉक्टर ने
उल्लू बूम्बा को पकड़ा और वह बन्दरों के ऊपर से – उनके सिरों पर, पीठों पर, चेहरों
पर, होते हुए भागा. डॉक्टर के पीछे-पीछे थे – उसके सारे जानवर.
“जल्दी!” बन्दर चिला रहे थे. “जल्दी! जल्दी!”
बन्दरों वाले
ज़िन्दा पुल से होकर भागना मुश्किल था. जानवर डर रहे थे कि अभी फिसल जाएँगे और पानी
में गिर पडेंगे.
मगर नहीं, पुल
काफ़ी मज़बूत था, बन्दरों ने बहुत कसकर एक दूसरे को पकड़ रखा था – और डॉक्टर अपने सभी
जानवरों के साथ, जल्दी-जल्दी भागते हुए दूसरे किनारे पर पहुँच गया.
“जल्दी, जल्दी से आगे बढ़ो!” डॉक्टर चिल्लाया. “ एक
भी मिनट की सुस्ती ठीक न होगी. दुश्मन हमारा पीछा कर रहे हैं. देखो, वे भी बन्दरों
के पुल पर भाग रहे हैं...अभ्भी वे यहाँ आ जाएँगे! जल्दी! जल्दी! ”
मगर ये क्या
हुआ? क्या हो गया? देखो: पुल के बिल्कुल बीचोंबीच एक बन्दर ने अपनी ऊँगलियाँ खोल
दीं, पुल टूट गया, बिखर गया, और बर्मालेय के सेवक इतनी ऊँचाई से सिर के बल सीधे
नदी में गिर गए.
“हुर्रे!” बन्दर चिल्लाए. “हुर्रे! डॉक्टर आयबलित
बच गए! अब उसे किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है! हुर्रे! दुश्मन उसे नहीं पकड़ पाए!
अब वो हमारे मरीज़ों को ठीक कर देगा! वे यहीं हैं, वे पास में ही हैं, वे कराह रहे
हैं, रो रहे हैं!”
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