गुरुवार, 11 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 2.03

अध्याय 3

डेल्फिनें

बत्तख़ किनारे की ओर भागी और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी:
 “डेल्फिनों, डेल्फिनों, तैर कर यहाँ आओ! डॉक्टर आयबलित तुम्हें बुला रहा है.”

डेल्फिनें फ़ौरन तैरती हुई किनारे तक आईं.

 “नमस्ते, डॉक्टर!” वे चिल्लाईं. “आप के लिए हम क्या कर सकते हैं?”

 “मुसीबत टूट पड़ी है,” डॉक्टर ने कहा. “कल सुबह समुद्री-डाकुओं ने एक मछुआरे पर हमला कर दिया, उसे खूब मारा और, शायद, समुन्दर में फेंक दिया. मुझे डर है कि वो कहीं डूब न गया हो. प्लीज़, पूरा समुन्दर छान मारो. क्या आप उसे समुन्दर की गहराई में ढूंढोगी?”

 “वो कैसा है?” डेल्फिनों ने पूछा.

 “लाल बालों वाला,” डॉक्टर ने जवाब दिया. “उसके बाल लाल हैं और बड़ी, खूब लम्बी लाल दाढ़ी है. प्लीज़, उसे ढूंढ़िए!”

 “अच्छा,” डेल्फिनों ने कहा. “हमें अपने प्यारे डॉक्टर की ख़िदमत करके बहुत ख़ुशी होगी. हम पूरा समुन्दर छान मारेंगे, हम सभी केंकड़ों से और मछलियों से पूछेंगे. अगर लाल बालों वाला मछुआरा डूब गया है तो हमे उसे ढूंढ़ लेंगे और कल ही तुम्हें बताएँगे.”

डेल्फिनें फ़ौरन समुन्दर में चली गईं और मछुआरे को ढूंढ़ने लगीं. उन्होंने पूरा समुन्दर खंगाल लिया, ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ, वे ठेठ समुन्दर के तल तक गईं, उन्होंने हर पत्थर के नीचे देखा, उन्होंने सभी केंकड़ों और मछलियों से पूछा, मगर डूबा हुआ मछुआरा उन्हें नहीं मिला.

सुबह वे किनारे पर आईं और डॉक्टर आयबलित से बोलीं:

 “हमें तुम्हारा मछुआरा कहीं भी नहीं मिला. हमने पूरी रात ढूंढ़ा, मगर समुन्दर की गहराई में वो नहीं है.”

जब लड़के ने डेल्फिनों की बात सुनी तो वह बहुत ख़ुश हो गया.

 “मतलब, मेरे पिता ज़िन्दा हैं! ज़िन्दा हैं! ज़िन्दा हैं! “ वह चिल्लाया और उछला, और तालियाँ बजाने लगा.

 “बेशक, ज़िन्दा है! ” डॉक्टर ने कहा. “हम उसे ज़रूर ढूंढ़ लेंगे!”


उसने लड़के को त्यानितोल्काय की पीठ पर बिठाया और समुन्दर के रेतीले किनारे पर बड़ी देर तक उसे घुमाता रहा.

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