बुधवार, 10 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित- 1.17

अध्याय 17

त्यानितोल्काय और वरवारा


अव्वा, बूम्बा, कीका और ख्रू-ख्रू बहुत ख़ुश थे कि घर वापस लौट आए हैं.

किनारे पर उन्होंने तान्या और वान्या को देखा जो ख़ुशी के मारे उछल रहे थे, नाच रहे थे.
उनके पास ही नाविक रॉबिन्सन खड़ा था.

 “नमस्ते, नाविक रॉबिन्सन!” डॉक्टर आयबलित ने जहाज़ से ही चिल्लाकर कहा.

 “नमस्ते, नमस्ते, डॉक्टर!” नाविक रॉबिन्सन ने जवाब दिया. “तुम्हारी यात्रा अच्छी तो रही ना? क्या तुमने बीमार बन्दरों का इलाज कर दिया? और ये तो बताओ, कि मेरा जहाज़ तुमने कहाँ छुपा दिया?”

 “आह,” डॉक्टर ने जवाब दिया, “तेरा जहाज़ ख़त्म हो गया! वह ठीक अफ्रीका के किनारे पर पत्थर से टकराकर टूट गया. मगर मैं तुम्हारे लिए नया जहाज़ लाया हूँ, ये तुम्हारे वाले जहाज़ से ज़्यादा अच्छा है.”

“धन्यवाद!” रॉबिन्सन ने कहा. “मैं देख रहा हूँ, कि ये बढ़िया जहाज़ है. मेरा जहाज़ भी अच्छा ही था, मगर ये – देखने की चीज़ है : इत्ता बड़ा और ख़ूबसूरत!”

डॉक्टर ने रॉबिन्सन से बिदा ली, त्यानितोल्काय पर बैठा और शहर की सड़कों से होता हुआ सीधे अपने घर चला. हर सडक पर उसके सामने कलहंस, बिल्लियाँ, टर्कीज़, कुत्ते, सुअर के पिल्ले, गायें, घोड़े भागकर आते और वे सब ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते:

”मालाकूचा! मालाकूचा!”

जानवरों की भाषा में इसका मतलब होता है:

 “स्वागत है, डॉक्टर आयबलित!”

पूरे शहर के पंछी उड़-उड़कर आए: वे डॉक्टर के सिर के ऊपर उड़ रहे थे और उसके लिए ख़ुशी के गीत गा रहे थे.

डॉक्टर बहुत ख़ुश था कि अपने घर लौट आया है.

डॉक्टर के कमरे में पहले ही की तरह साही, ख़रगोश और गिलहरियाँ रहते थे. पहले तो वे घबरा गए, मगर फिर उन्हें उसकी आदत हो गई और वे उससे प्यार करने लगे.

और तान्या और वान्या ने जैसे ही त्यानितोल्काय को देखा, ख़ुशी के मारे वे हँसने लगे, चिल्लाने लगे, तालियाँ बजाने लगे. वान्या ने उसे एक तरफ़ से गले लगा लिया, और तान्या ने दूसरी तरफ़ से. पूरा एक घण्टा वे उसे सहलाते रहे, पुचकारते रहे. और फिर उन्होंने एक दूसरे के हाथ पकड़ कर ख़ुशी से ‘त्केल्ला’ नृत्य शुरू कर दिया जो उन्हें चीची ने सिखाया था. 

“देख रहे हो,” डॉक्टर आयबलित ने कहा, “मैंने अपना वादा पूरा किया और अफ्रीका से तुम्हारे लिए यह आश्चर्यजनक तोहफ़ा ले आया, जैसा आज तक बच्चों को किसी ने नहीं दिया था.

मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि यह तुम्हें पसन्द आ गया.”

पहले-पहले तो त्यानितोल्काय लोगों से घबराता रहा, वह ऐटिक में या गोदाम में छुप जाता. मगर फिर उसे लोगों की आदत हो गई और वह बाहर बाग में निकलने लगा, उसे अच्छा भी लगता कि लोग भाग-भागकर उसे देखने आते और प्यार से उसे ‘कुदरत का करिश्मा’ कहकर पुकारते.

एक महीना भी नहीं बीता कि वह तान्या और वान्या के साथ बेधड़क शहर की सारी सड़कों पर घूमने लगा. तान्या और वान्या उससे कभी अलग नहीं होते थे.. बच्चे अक्सर उसके पास आते और उससे विनती करते कि वह उन्हें घुमा लाए. वह किसी को भी मना नहीं करता था: फ़ौरन घुटनों के बल बैठ जाता, बच्चे और बच्चियाँ उसकी पीठ पर चढ़ जाते, और वह ख़ुशी से अपने दोनों सिर हिलाते हुए उन्हें पूरे शहर में घुमाता, समुन्दर तक.

और तान्या और वान्या ने उसकी लम्बी अयाल में ख़ूबसूरत, रंगबिरंगी रिबन्स लपेट दीं, और हर गर्दन में चांदी की एक एक घण्टी लटका दी. घण्टियाँ ज़ोर से बजती थीं, और जब त्यानितोल्काय शहर में जा रहा होता तो वे दूर से ही सुनाई देती : दिन्-दिन्, दिन्-दिलेन्! दिन्-दिलेन्! और घण्टियों की आवाज़ सुनते ही इस आश्चर्यजनक जानवर को देखने के लिए कर सारे लोग रास्ते पर भाग कर आ जाते.

दुष्ट वरवारा भी त्यानितोल्काय पर घूमना चाहती थी. वह उसकी पीठ पर चढ़ गई और लगी उसे छत्री  से मारने:

 “भाग जल्दी, तू दो-मुँहे गधे!”

त्यानितोल्काय को गुस्सा आ गया, वह ऊँचे पहाड़ पर चढ़ गया और वहाँ से वरवारा को नीचे समुन्दर में फेंक दिया.

 “मदद करो! बचाओ!” वरवारा चिल्लाई.

मगर कोई भी उसे बचाना नहीं चाहता था. वरवारा डूबने लगी.

 “अव्वा, अव्वा, प्यारी अव्वा! किनारे तक पहुँचने में मेरी मदद कर!” वह चिल्लाई.

 मगर अव्वा ने कहा, “र्-र्-र्र! ...”

जानवरों की भाषा में इसका मतलब होता है:

 “मैं तुझे बचाना नहीं चाहती, क्योंकि तू दुष्ट और गन्दी है!”

पास ही में बूढ़ा नाविक रॉबिन्सन अपने जहाज़ पर जा रहा था. उसने वरवारा की ओर रस्सी फेंकी और उसे पानी से बाहर निकाला. इसी समय डॉक्टर आयबलित अपने जानवरों के साथ किनारे से गुज़र रहा था. उसने नाविक रॉबिन्सन से चिल्लाकर कहा:

 “इसे कहीं बहुत दूर ले जा! मैं नहीं चाहता कि वो मेरे घर में रहे और मेरे प्यारे जानवरों को सताए, और मारे!”

और नाविक रॉबिन्सन उसे दूर-बहुत दूर ले गया, एक ऐसे टापू पर जहाँ कोई भी नहीं रहता था, जहाँ वह किसी का भी अपमान न कर सके.

और डॉक्तर आयबलित अपने छोटे से घर में सुख से रहने लगा और सुबह से शाम तक पंछियों और जानवरों का इलाज करता रहा, जो उसके पास दुनिया के हर कोने से आते थे.


इस तरह तीन साल बीत गए. और सब सुख से रह रहे थे.  

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