अध्याय
8
तूफ़ान
मगर तभी तूफ़ान
उठने लगा. तेज़ बारिश! तूफ़ानी हवा! बिजली की चमक! ज़ोर की कड़कड़ाहट! लहरें इतनी
ऊँची-ऊँची हो गईं कि उनकी ओर देखने में भी डर लगता था.
और अचानक त्रा-ता-र-रा-ख़!
भयानक चटख़ने की आवाज़ आई और जहाज़ एक किनारे को झुक
गया.
“क्या हुआ? ये क्या हो गया?” डॉक्टर ने पूछा.
"ज-हा-ज़ टू-ट ग-या!”
तोता चीख़ा. “हमारा जहाज़ चट्टान से टकराया और टूट गया! हम डूब रहे हैं. बचाओ अपने
आप को!”
"मगर मुझे तो
तैरना नहीं आता!” चीची चिल्लाई.
“मुझे भी नहीं आता!” ख्रू-ख्रू चिल्लाया.
और वे
फूट-फूटकर रोने लगे. मगर सौभाग्य से, मगरमच्छ ने उन्हें अपनी चौड़ी पीठ पर बिठा
लिया और लहरों पर तैरते हुए सीधे किनारे की ओर तैरने लगा.
हुर्रे! सब बच
गए! सब सही-सलामत अफ्रीका पहुँच गए. मगर उनका जहाज़ टूट गया. एक बड़ी भारी लहर ने उस
पर हमला करके उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए.
वे घर कैसे
लौटेंगे? उनके पास कोई दूसरा जहाज़ तो है ही नहीं. और नाविक रॉबिन्सन को वे क्या
जवाब देंगे?
अंधेरा हो रहा
था. डॉक्टर और उसके सभी जानवरों को नींद आ रही थी. वे पूरे भीग गए थे, ठण्डक उनकी
हड्डियों तक पहुँच गई थी और वे थक गए थे.
मगर डॉक्टर ने
आराम करने के बारे में सोचा तक नहीं.
:
“जल्दी, जल्दी, आगे बढ़ो! जल्दी करना चाहिए!
बन्दरों को बचाना होगा! बेचारे बन्दर बीमार हैं, और वे बेसब्री से इस बात का
इंतज़ार कर रहे हैं, कि मैं आऊँगा और उन्हें ठीक करूँगा!”
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