गुरुवार, 18 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 2.13


अध्याय 13

पुराने दोस्त


अचानक पानी की सतह पर शार्क्स दिखाई दीं – भीमकाय, डरावनी मछलियाँ अपने तीक्ष्ण दाँतों और चौड़े खुले जबड़ों के साथ.

उन्होंने समुद्री डाकुओं का पीछा किया और जल्दी ही सबको निगल लिया.

 “उनका यही हश्र होना था!” डॉक्टर ने कहा. “उन्होंने निर्दोष लोगों को लूटा, उन्हें सताया और मार डाला है. उन्हें अपने बुरे कामों का फल भुगतना पड़ गया.”

डॉक्टर तूफ़ानी समुन्दर में बड़ी देर तक सफ़र करता रहा. और अचानक उसने सुना कि कोई चिल्ला रहा है:

 “बोएन! बोएन! बरावेन! बावेन!”
जानवरों की भाषा में इसका मतलब है:
 “डॉक्टर, डॉक्टर, अपना जहाज़ रोको!”

डॉक्टर ने पाल गिरा दिए. जहाज़ रुक गया, और सबने तोते कारूदो को देखा. वो तेज़ी से समुन्दर के ऊपर उड़ रहा था.

 “कारूदो, तुम?” डॉक्टर चीखा, “तुझे देखकर कितनी खुशी हो रही है! आ जा, यहाँ आ जा!”

कारूदो जहाज़ के निकट आया, ऊँचे मस्तूल पर बैठ गया और चिल्लाया:

 “ज़रा देखो तो, मेरे पीछे कौन तैर कर आ रहा है! वहाँ, ठीक क्षितिज के पास, पश्चिम में!”

डॉक्टर ने समुन्दर की ओर नज़र दौड़ाई और देखा कि दूर, बहुत दूर, समुन्दर में मगरमच्छ तैर रहा है. और मगरमच्छ की पीठ पर बन्दरिया चीची बैठी है. वह खजूर के पेड़ का पत्ता हिला रही है और मुस्कुरा रही है.          

डॉक्टर ने फ़ौरन अपना जहाज़ मगरमच्छ और चीची की ओर मोड़ा और उनके लिए जहाज़ से रस्सी फेंकी.

वे रस्सी पे चढ़ते हुए डेक पर पहुँचे, डॉक्टर की ओर लपके और उसके होठों को, गालों को, दाढ़ी को, आँखों को चूमने लगे.

 “तुम समुन्दर के बीच में कैसे आए?” डॉक्टर ने उनसे पूछा.

अपने पुराने दोस्तों को देखकर वो बहुत ख़ुश था.

 “आह, डॉक्टर!” मगरमच्छ ने कहा. “तुम्हारे बिना हम अपनी अफ्रीका में इत्ते ‘बोर’ हो गए! कीकी के बिना, अव्वा के बिना, बूम्बा के बिना, प्यारे ख्रू-ख्रू के बिना हमारा दिल ही नहीं लगता था! वापस तुम्हारे घर जाने को बहुत दिल चाहता था, जहाँ अलमारी में गिलहरियाँ रहती हैं, दीवान पर – काँटों वाली साही, और दराज़ों में – ख़रगोश और उनके पिल्ले. हमने फ़ैसला कर लिया कि अफ्रीका छोड़ देंगे, सारे समुन्दरों को पार करके ज़िन्दगी भर तुम्हारे साथ रहेंगे.”

 “शौक से!” डॉक्टर ने कहा. “मैं बेहद ख़ुश हूँ.”

 “हुर्रे!” बूम्बा चिल्लाया.

”हुर्रे!” सारे जानवर चिल्लाए.

और फिर वे एक दूसरे का हाथ पकड़कर मस्तूल के चारों ओर नाचने लगे.

 “शीता, रीता, तीता, द्रीता!
शिवान्दादा, शिवान्दा!
प्यारे अपने आयबलित को,
छोड़ेंगे हम कभी ना!”

सिर्फ बन्दरिया चीची एक कोने में बैठकर दुख से आहें भर रही थी.

 “तुझे क्या हुआ है?” त्यानितोल्काय ने पूछा.

 “आह, मुझे दुष्ट वरवारा की याद आ गई! वो फिर से हमारा अपमान करेगी और हमें सताएगी!”

 “घबरा मत,” त्यानितोल्काय चिल्लाया. “वरवारा हमारे घर में नहीं है! मैंने उसे समुन्दर में फेंक दिया था, और अब वह एक निर्जन टापू पे रहती है.”

 “निर्जन टापू पे?”
 “हाँ!”

चीची, और मगरमच्छ, और कारूदो - सब बड़े ख़ुश हो गए : वरवारा निर्जन टापू पे रहती है!”

 “त्यानितोल्काय – ज़िन्दाबाद!” वे चिल्लाए और फिर से डांस करने लगे:

 “शिवान्दारी, शिवान्दारी!
फुन्दुक्लेय और दुन्दुक्लेय!
अच्छा है जो वहाँ नहीं है वरवारा बुरी-बुरी!
बिन वरवारा के बड़ी ख़ुशी!’

त्यानितोल्काय अपने दोनों सिरों से उनका अभिवादन कर रहा था, और उसके दोनों मुँह मुस्कुरा रहे थे.

जहाज़ अपनी पूरी गति से जा रहा था, और शाम होते होते बत्तख कीका ने, जो ऊँचे मस्तूल पर चढ़ गई थी, अपने शहर के किनारे को देखा.

 “पहुँच गए!” वह चिल्लाई. “बस, एक घण्टा और, फिर हम होंगे घर में!. वो रहा हमारा शहर – पिन्देमोन्ते. मगर, ये क्या? देखिए, देखिए! आग! पूरा शहर आग से घिर गया है! कहीं हमारा घर तो नहीं जल रहा है? आह, कितना भयानक! कितना बड़ा दुर्भाग्य!”

पिन्देमोन्ते शहर के ऊपर खूब उजाला था.

 “जितनी जल्दी हो सके, किनारे पर पहुँचो!” डॉक्टर ने आज्ञा दी. “हमें इन लपटों को बुझाना होगा! बाल्टियाँ लेंगे और उस पर पानी डालेंगे!”

मगर तभी कारूदो उड़कर मस्तूल पर गया. उसने दूरबीन से देखा और इतनी ज़ोर से ठहाका मार कर हँसा कि सब अचरज से उसकी ओर देखने लगे.

 “आपको ये लपटें बुझाने की कोई ज़रूरत नहीं है,” उसने कहा और दुबारा ठहाके लगाने लगा, “क्योंकि ये कोई आग-वाग नहीं लगी है.”

 “तो फिर वो क्या है?” डॉक्टर आयबलित ने पूछा.

 “रो-श-नी!” कारूदो ने जवाब दिया.

 “वो क्या होता है?” ख्रू-ख्रू ने पूछा. “मैंने तो ये अजीब-सा लब्ज़ कभी नहीं सुना.”

 “अभी पता चल जाएगा,” तोते ने कहा. “दस मिनट सब्र कर ले.”

दस मिनट बाद, जब जहाज़ किनारे कि नज़दीक पहुँचा, तो सभी फ़ौरन समझ गए कि रोशनी क्या होती है. सभी घरों पर और मीनारों पर, किनारे के पास वाली चट्टानों पर, पेड़ों के शिखरों पर – हर जगह रंगबिरंगे फ़ानूस जल रहे थे : लाल, हरे, पीले, और किनारे पर अलाव जल रहे थे,जिनकी चमकदार लपटें आसमान को छू रही थीं.

औरतें, आदमी और बच्चे त्यौहारों वाली, ख़ूबसूरत पोशाकों में इन आलावों के चारों ओर थिरक रहे थे  और खुशी के गीत गा रहे थे.

जैसे ही उन्होंने देखा कि जहाज़ किनारे पर लग गया है, जिसमें डॉक्टर आयबलित अपनी यात्रा से लौट आया है, वे तालियाँ बजाने लगे, हँसने लगे, और सब के सब एक सुर में उसका स्वागत करने लगे:

 “स्वागत है, डॉक्टर आयबलित!” वे चिल्लाए. “डॉक्टर आयबलित की जय हो!”

डॉक्टर भौंचक्का रह गया. उसे ऐसे स्वागत की उम्मीद नहीं थी. उसने सोचा था कि बस तान्या और वान्या ही उससे मिलने आएँगे, और, हो सकता है, बूढ़ा नाविक रॉबिन्सन भी आ जाए, मगर यहाँ तो पूरा शहर उसका स्वागत कर रहा है फ़ानूसों से, संगीत से, ख़ुशनुमा गानों से! बात क्या है? उसका इतना सम्मान आख़िर किसलिए हो रहा है? उसकी वापसी का इतना जश्न क्यों मनाया जा रहा है?”
वो त्यानितोल्काय पर बैठकर अपने घर जाना चाहता था, मगर भीड़ ने उसे पकड़ लिया और हाथों पर उठाकर – सीधे समुन्दर के किनारे वाले चौक पर ले आए.

सभी खिड़कियों से लोग बाहर झाँक रहे थे और डॉक्टर पर फूलों की वर्षा कर रहे थे.

डॉक्टर मुस्कुरा सहा था, झुक कर अभिवादन कर रहा था – और अचानक उसने देखा, कि भीड़ को चीरते हुए तान्या और वान्या उसके पास आ रहे हैं.

जब वे उसके क़रीब पहुँचे, तो उसने उन्हें बाँहों में भर लिया, उनका चुम्बन लिया और पूछा:

 “तुम लोगों को कैसे पता चला, कि मैंने बर्मालेय को हरा दिया है?”

 “हमें इस बारे में पेन्ता से पता चला,” तान्या और वान्या ने जवाब दिया. “पेन्ता हमारे शहर में आया और उसने हमें बताया कि तुमने उसे ख़ौफ़नाक कैद से छुड़ाया है, और उसके पिता को डाकुओं से बचाया है.”

अब कहीं जाकर डॉक्टर ने देखा कि दूर, टीले पर पेन्ता खड़ा है और अपने पिता का रूमाल हिलाकर उसका स्वागत कर रहा है.

 “नमस्ते, पेन्ता!” डॉक्टर ने चिल्लाकर उससे कहा.

मगर तभी बूढ़ा नाविक रॉबिन्सन मुस्कुराते हुए उसके पास आया, उसने गर्मजोशी से डॉक्टर से हाथ मिलाया और इतनी ऊँची आवाज़ में बोलना शुरू किया कि चौक पर उपस्थित सब लोग उसकी बात सुन सकें:

 “हम सबके प्यारे, दुलारे आयबलित! हम तुम्हारे इतने शुक्रगुज़ार हैं कि तुमने पूरे समुन्दर से घिनौने समुद्री-डाकुओं का सफ़ाया कर दिया है, जो हमारे जहाज़ छीन लिया करते थे. आज तक हम समुन्दर में दूर तक जाने की हिम्मत नहीं कर सकते थे, क्योंकि समुद्री-डाकू हमें धमकाते थे. मगर अब, समुन्दर साफ़ हो गया है, और हमारे जहाज़ों को कोई ख़तरा नहीं है. हमें गर्व है कि ऐसा बहादुर ‘हीरो’ हमारे शहर में रहता है. हमने तुम्हारे लिए एक बढ़िया जहाज़ बनाया है, और इजाज़त दो कि हम तुम्हें तोहफ़े में वो जहाज़ दें.”

 “हमारे प्यारे, हमारे निडर डॉक्टर आयबलित की जय हो!” भीड़ एक सुर में चिल्लाई. “शुक्रिया, शुक्रिया, तेरा शुक्रिया!”

डॉक्टर ने झुककर भीड़ का अभिवादन किया और कहा:

 “इस प्यारे स्वागत के लिए शुक्रगुज़ार हूँ! मैं ख़ुशनसीब हूँ कि आप लोग मुझे प्यार करते हैं. मगर, मैं कभी भी, कभी भी समुद्री डाकुओं का ख़ात्मा नहीं कर सकता था, अगर मेरे वफ़ादार दोस्तों ने, मेरे जानवरों ने मेरी मदद न की होती. ये यहाँ हैं, मेरे साथ, और मैं तहे दिल से उनका स्वागत करना चाहता हूँ, उनकी निःस्वार्थ दोस्ती के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ!”

 “हुर्रे!” भीड़ चिल्लाई. “आयबलित के निडर जानवरों की जय हो!”

इस समारोह के बाद डॉक्टर त्यानितोल्काय पे सवार होकर अपने जानवरों के साथ अपने घर के दरवाज़े की ओर चला.

उसके आने से ख़रगोश, गिलहरियाँ, साही और चमगादड़ - सभी ख़ुश हुए!

मगर अभी वह उनसे मिल भी नहीं पाया था कि आसमान में शोर सुनाई दिया. डॉक्टर ड्योढ़ी में भागा और देखा कि बहुत सारे सारस उड़कर आ रहे हैं. वे उसके घर तक पहुँचे और, एक भी शब्द बोले बिना, बेहतरीन फलों की बड़ी टोकरी उसे थमा दी. टोकरी में थे: खजूर, सेब, नाशपाती, केले, आडू, अंगूर, संतरे!  

 “डॉक्टर, ये तुम्हारे लिए है, बन्दरों के देश से!”

डॉक्टर ने उन्हें धन्यवाद दिया, और वे फ़ौरन वापस उड़ गए.  

और, एक घण्टॆ बाद डॉक्टर के यहाँ शानदार दावत हुई. रंगबिरंगे फ़ानूसों की रोशनी में लम्बी-लम्बी बेंचों पे, लम्बी मेज़ पे, आयबोलित के सारे दोस्त बैठ गए: तान्या, और वान्या, और पेन्ता, और बूढ़ा नाविक रॉबिन्सन, और अबाबील, और ख्रू-ख्रू, और चीची, और कीका, और कारूदो, और बूम्बा, और त्यानितोल्काय, और अव्वा, और गिलहरियाँ, और साही, और चमगादड़.

डॉक्टर ने उन्हें शहद, फलों के टुकड़े, हनी-केक्स दिए, और वे सबसे स्वादिष्ट फल भी दिए जो ‘बन्दरों के देश’ से भेजे गए थे.

दावत बड़ी शानदार रही. सब लोग मज़ाक कर रहे थे, हँस रहे थे और गा रहे थे, और फिर सब उठकर वहीं बाग में, रंग-बिरंगे फानूसों की रोशनी में डान्स करने लगे.


****

सोमवार, 15 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 2.12

अध्याय 12

डॉक्टर बच गया!


सिर्फ उल्लू बूम्बा को समुद्री-डाकुओं का कोई डर नहीं था. उसने बड़े सुकून से अव्वा और ख्रू-ख्रू से कहा:
 “कैसे बेवकूफ़ हो तुम! किस बात का डर है? क्या तुमको नहीं मालूम कि वो जहाज़ जिस पर डाकू हमारा पीछा कर रहे हैं, जल्दी ही डूबने वाला है? याद करो कि चूहे ने क्या कहा था? उसने कहा था कि जहाज़ आज ज़रूर डूब जाएगा. उसमें काफ़ी चौड़ी दरार पड़ गई है, और वो पानी से भर चुका है. और, जहाज़ के साथ-साथ समुद्री-डाकू भी डूब जाएँगे.
तुम किस बात से डर रहे हो? समुद्री-डाकू डूब जाएँगे, और हम सही-सलामत बच जाएँगे.”

मगर ख्रू-ख्रू रोता रहा.

 “जब तक समुद्री-डाकू डूबेंगे, वे मुझे और कीका को भून भी चुके होंगे!” उसने कहा.

इस बीच समुद्री-डाकू नज़दीक आते जा रहे थे.

सामने, जहाज़ की नोक पे उनका मुखिया बर्मालेय खड़ा था. वह तलवार घुमाते हुए ज़ोर से चिल्लाया:

 “ ऐ, तू बन्दरों के डॉक्टर! बन्दरों का इलाज करने का बहुत कम वक़्त बचा है तेरे पास – जल्दी ही हम तुझे समुन्दर में फेंक देंगे! वहाँ शार्क्स तुझे निगल जाएँगी.”

डॉक्टर ने जवाब में चिल्लाकर कहा:

 “सावधान, बर्मालेय, कहीं शार्क्स तुझे ही न निगल जाएँ! तेरे जहाज़ में पानी भर रहा है, और तुम लोग जल्दी ही समुन्दर के पेंदे की ओर जाओगे!”

 “बकवास करता है!” बर्मालेय चिल्लाया. “अगर मेरा जहाज़ डूब रहा होता, तो इसमें से चूहे भाग जाते!”

 “चूहे तो कब के भाग गए, और जल्दी ही अपने सारे डाकुओं के साथ तू समुन्दर के पेंदे में होगा!”

तभी डाकुओं ने देखा कि उनका जहाज़ धीरे-धीरे पानी में डूब रहा है. वे डेक पर भाग-दौड़ करने लगे, रोने लगे, चीखने लगे:

 “बचाओ!”

मगर कोई भी उन्हें बचाना नहीं चाहता था.

जहाज़ पानी में गहरे-गहरे डूबता जा रहा था. जल्दी ही समुद्री डाकू भी पानी में डूब गए.

वे लहरों पर हाथ-पैर मार रहे थे, और लगातार चिल्लाए जा रहे थे:

 “मदद करो, मदद करो, हम डूब रहे हैं!”

बर्मालेय तैरते हुए डॉक्टर वाले जहाज़ के पास आया और रस्सी पकड़ कर डेक पर चढ़ने लगा. मगर 

कुत्ते अव्वा ने अपने दाँत निकाले और गरजते हुए कहा:
”र्-र्-र्र--!...” बर्मालेय डर गया, चीख़ा और सिर के बल वापस पानी में गिर गया.



 “मदद करो!” वो चिल्ला रहा था. “बचाओ! मुझे पानी से बाहर निकालो!”

डॉक्टर आयबलित - 2.11

अध्याय 11

मुसीबत पे मुसीबत

जानवर चुपचाप जहाज़ पे चढ़ गए, उन्होंने ख़ामोशी से काले पाल उठाए और हौले-हौले लहरों पे निकल पड़े. समुद्री-डाकुओं ने कुछ भी नहीं देखा.

मगर अचानक एक मुसीबत आ गई.

बात ये हुई कि सुअर ख्रू-ख्रू को ज़ुकाम हो गया था.

ठीक उसी समय, जब डॉक्टर चुपचाप समुद्री-डाकुओं के पास से गुज़र जाना चाहता था, ख्रू-ख्रू ज़ोर से छींक पड़ी. एक बार, दो बार, और तीसरी बार.

समुद्री-डाकुओं ने सुन लिया कि कोई छींक रहा है. वे भागकर डेक पर आए और देखा कि डॉक्टर ने उनका जहाज़ हथिया लिया है.

 “रुक जा! रुक जा!” वे चिल्लाए और उसका पीछा करने लगे.

डॉक्टर ने पाल खोल दिए. ऐसा लगा कि समुद्री डाकुओं ने उसका जहाज़ अब पकड़ा, तब पकड़ा. 
मगर वह आगे-आगे बढ़ता रहा, और समुद्री-डाकू उससे थोड़े पीछे हो गए.

 “हुर्रे! हम बच गए!” डॉक्टर चिल्लाया.

मगर तभी सबसे खूँखार समुद्री-डाकू बर्मालेय ने गोली चलाई. गोली त्यानितोल्काय के सीने में लगी. त्यानितोल्काय लड़खड़ाया और पानी में गिर पड़ा.

 “डॉक्टर, डॉक्टर, मदद कीजिए! मैं डूब रहा हूँ!”

 “बेचारा त्यानितोल्काय!” डॉक्टर चीखा. “बस, पानी में थोड़ा-सा बर्दाश्त कर! मैं अभी तेरी मदद करता हूँ.”

डॉक्टर ने अपना जहाज़ रोका और त्यानितोल्काय की ओर रस्सी फेंकी.

त्यानितोल्काय ने अपने दाँतों से रस्सी को पकड़ लिया. डॉक्टर ने ज़ख़्मी जानवर को डेक पर खींच लिया, उसके ज़ख़्म की मरहम-पट्टी की और फिर से आगे बढ़ने लगा. मगर तब तक देर हो चुकी थी: समुद्री-डाकू सारे पाल खोलकर तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे.

 “आख़िरकार हम तुझे पकड़ ही लेंगे!” वे चिल्ला रहे थे. “तुझे भी, और तेरे सारे जानवरों को भी! वहाँ, तेरे मस्तूल पे एक बढ़िया बत्तख़ बैठी है! जल्दी ही हम उसे भूनकर खा जाएँगे!
हा-हा, ये बहुत स्वादिष्ट चीज़ होगी. और सुअर को भी हम भून लेंगे. बहुत दिनों से हमने ‘हैम’ नहीं खाया है! आज रात को हमारे खाने में सुअर के कटलेट्स होंगे. हो-हो-हो! और तुझे, डॉक्टर के बच्चे, समुन्दर में फेंक देंगे - तीक्ष्ण दाँतों वाली शार्क मछलियों के लिए.”

ख्रू-ख्रू ने उनकी बात सुनी और वह रोने लगा.

 “अभागा, मैं अभागा!” उसने कहा. “मैं नहीं चाहता कि डाकू मुझे भूनें और खाएँ!”

अव्वा भी रोने लग – उसे डॉक्टर के लिए अफ़सोस हो रहा था.



 “मैं नहीं चाहता कि उसे शार्क मछलियाँ निगल जाएँ!”

डॉक्टर आयबलित - 2.10

अध्याय 10

चूहे क्यों भाग गए?


अपने पीछे-पीछे उस भारी जहाज़ को खींचना सारसों के लिए आसान नहीं था. कुछ घण्टों बाद वे इतने थक गए कि बस समुन्दर में गिरते-गिरते बचे. तब उन्होंने जहाज़ को किनारे तक घसीटा, डॉक्टर से बिदा ली और अपने प्यारे दलदली घर में चले गए.   

मगर तभी उसके पास उल्लू बूम्बा आया और बोला:

”ज़रा उधर देखो. देख रहे हो – वहाँ डेक पर हैं चूहे! वे जहाज़ से बाहर, सीधे समुन्दर में कूद रहे हैं और फिर एक के बाद एक तैरकर किनारे पर जा रहे हैं!”

 “ये तो अच्छी बात है!” डॉक्टर ने कहा. “चूहे तो दुष्ट होते हैं, क्रूर होते हैं, और मुझे वे अच्छे नहीं लगते.”

 “नहीं, ये बड़ी चिंता की बात है!” गहरी साँस लेकर बूम्बा ने कहा. “चूहे तो नीचे, जहाज़ के पेटे में रहते हैं, और जैसे ही जहाज़ की तली में पानी घुसने लगता है, वे इस छेद को सबसे पहले देखते हैं, पानी में कूद जाते हैं और सीधे किनारे की ओर तैरने लगते हैं. मतलब, हमारा जहाज़ डूब रहा है. तुम ख़ुद ही सुनो, चूहे आपस में क्या बातें कर रहे हैं.”

इसी समय पेटे से दो चूहे बाहर आए. बूढ़ा चूहा जवान चूहे से कह रहा था:

 “कल शाम को मैं अपने बिल में जा रहा था तो देखा कि दरार से पानी पूरे ज़ोर से अन्दर आ रहा है. तो, मेरा ख़याल है, कि भागना चाहिए. कल ये जहाज़ डूब जाएगा. और इससे पहले कि देर हो जाए, तू भी भाग जा.”

और दोनों चूहे पानी में कूद गए.

 “हाँ, हाँ,” डॉक्टर चीखा, “मुझे याद आ गया! जब जहाज़ डूबने लगता है, तो चूहे सबसे पहले भाग जाते हैं. हमें फ़ौरन जहाज़ से भाग जाना चाहिए, वर्ना हम सब भी जहाज़ के साथ ही डूब जाएँगे! जानवरों, मेरे पीछे आओ! जल्दी! जल्दी!”

उसने अपनी चीज़ें इकट्ठा कीं और फ़ौरन किनारे पे भागा. जानवर उसके पीछे लपके.

वे बड़ी देर तक रेतीले किनारे पर चलते रहे और बेहद थक गए.

”कुछ देर बैठकर सुस्ता लेते हैं,” डॉक्टर ने कहा. “और ये भी सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए.”

 “कहीं हमें पूरी ज़िन्दगी यहीं तो नहीं रहना पड़ेगा?” त्यानितोल्काय ने कहा और वह रोने लगा.
उसकी चारों आँखों से आँसू टप्-टप् गिर रहे थे.

सारे जानवर उसीके साथ-साथ रोने लगे, क्योंकि सबको घर लौटने की ख़्वाहिश थी.

मगर, अचानक अबाबील उड़कर उनके पास आई.

 “डॉक्टर,डॉक्टर!” वो चिल्लाई. “बहुत बुरी बात हुई है:

समुद्री-डाकुओं ने तुम्हारे जहाज़ पर कब्ज़ा कर लिया है!”

डॉक्टर उछलकर खड़ा हो गया.

 “वो मेरे जहाज़ पे क्या कर रहे हैं?” उसने पूछा.

 “वे उसे लूटना चाहते हैं,” अबाबील ने जवाब दिया. “जल्दी भागो और उन्हें वहाँ से भगाओ!”

 “नहीं,” डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, “उन्हें भगाने की कोई ज़रूरत नहीं है.

उन्हें मेरे जहाज़ पर सफ़र करने दो. दूर तक नहीं जा पाएँगे, देख लेना! बेहतर है कि हम यहाँ से चलें और उनकी नज़र में पड़े बिना, हमारे जहाज़ के बदले उनके जहाज़ पर कब्ज़ा कर लें. चलो, डाकुओं का जहाज़ पकड़ते हैं!”

और डॉक्टर किनारे पर लपका. उसके पीछे – त्यानितोल्काय और बाकी के जानवर चले.

ये रहा समुद्री-डाकुओं का जहाज़.

उस पर कोई नहीं है! सारे समुद्री-डाकू आयबलित के जहाज़ पर हैं!

 “धीरे, धीरे, शोर मत करो!” डॉक्टर ने कहा.



 “चुपचाप समुद्री-डाकुओं के जहाज़ पर चढ़ जाते हैं, जिससे कि कोई हमें देख न ले!”

रविवार, 14 सितंबर 2014

डॉक्टर आयबलित - 2.09

अध्याय 9

समुद्री-डाकू


जहाज़ तेज़ी से लहरों पर भागा जा रहा था. तीसरे दिन यात्रियों ने एक निर्जन टापू देखा. टापू पर न पेड़ दिखाई दे रहे थे, न जानवर, न ही इन्सान – सिर्फ रेत और बड़े-बड़े पत्थर ही थे. मगर वहाँ, पत्थरों के पीछे, खूँखार समुद्री डाकू छुपे बैठे थे. जब कोई जहाज़ उनके टापू के पास से गुज़रता तो वे उस जहाज़ पर हमला कर देते, लोगों को लूटते और उनको मार डालते, और जहाज़ को समुद्र में डुबो देते. समुद्री-डाकू डॉक्टर पे इसलिए बेहद गुस्सा थे, क्योंकि उसने लाल बालों वाले मछुआरे और पेन्ता को उनसे चुरा लिया था, और वह काफ़ी समय से उस पर घात लगाए बैठे थे.

समुद्री-डाकुओं के पास बड़ा जहाज़ था, जिसे उन्होंने चौड़ी चट्टान के पीछे छुपा दिया था.

डॉक्टर ने न तो डाकुओं को देखा, न ही उनके जहाज़ को. वह अपने जानवरों के साथ डेक पर घूम रहा था. मौसम बड़ा सुहावना था, सूरज चमक रहा था. डॉक्टर स्वयम् को बेहद भाग्यशाली महसूस कर रहा था. अचानक सुअर ख्रू-ख्रू ने कहा:

 “देखो तो, वहाँ वो कैसा जहाज़ है?”

डॉक्टर ने देखा कि टापू के पीछे से काले पाल वाला एक काला जहाज़ उनकी ओर आ रहा है – स्याही जैसा, काजल जैसा काला.

”मुझे ये पाल अच्छे नहीं लगते!” सुअर ने कहा. “वे सफ़ेद क्यों नहीं हैं, बल्कि काले क्यों हैं? सिर्फ समुद्री-डाकुओं के जहाज़ों पे काले पाल होते हैं.”

ख्रू-ख्रू ने भाँप लिया : काले पालों के नीचे खूँखार समुद्री-डाकू आ रहे हैं. वे डॉक्टर आयबलित को पकड़कर उससे भयानक बदला लेना चाहते थे, क्योंकि उसने उनसे मछुआरे को और पेन्ता को चुरा लिया था.

 “जल्दी! जल्दी!” डॉक्टर चीखा. “सारे पाल खोल दो!”

मगर समुद्री-डाकू पास-पास आ रहे थे.

 “वे हमें पकड़ लेंगे!” कीका चिल्लाई. “वे नज़दीक आ गए हैं. मैं उनके भयानक चेहरे देख रही हूँ! कैसी दुष्ट आँखें हैं उनकी! हमें क्या करना चाहिए? किस तरफ़ भागें? अभ्भी वे हम पर हमला कर देंगे और हमें समुन्दर में फेंक देंगे!”

 “देख,” अव्वा ने कहा, “ये पीछे वाले हिस्से में कौन खड़ा है? क्या पहचानती नहीं है? ये तो वो ही है, दुष्ट बर्मालेय! उसके एक हाथ में तलवार है, और दूसरे में है – पिस्तौल. वो हमें मार डालना चाहता है, गोलियाँ चला कर नष्ट कर देना चाहता है!”

मगर डॉक्टर मुस्कुराया और बोला:

”घबराओ मत, मेरे प्यारों, वो इसमें कामयाब नहीं होगा! मैंने एक अच्छा प्लान सोचा है.
उस अबाबील को देख रहे हो, जो लहरों के ऊपर उड़ रही है? वो हमें डाकुओं से बचाने में मदद करेगी.” और वह ऊँची आवाज़ में चिल्लाया: “ना-ज़ा-से! ना-ज़ा-से! काराचुय! काराबून!”
जानवरों की भाषा में इसका मतलब होता है:

 “अबाबील, अबाबील! हमारे पीछे समुद्री-डाकू लगे हैं. वे हमें मारकर समुन्दर में फेंक देना चाहते हैं!”

अबाबील उसके जहाज़ पर उतरी.

 “सुन, अबाबील, तुझे हमारी मदद करनी होगी!” डॉक्टर ने कहा. “कराफू, मराफू, दूक!”

जानवरों की भाषा में इसका अर्थ होता है:

 “फ़ौरन उड़कर जा और सारसों को बुला ला!”

अबाबील उड़ गई और एक मिनट बाद सारसों के साथ लौटी.

 “नमस्ते, डॉक्टर आयबलित!” सारस चिल्लाए. “दुखी न हो, हम अभी तुझे मुसीबत से निकालते हैं!”

डॉक्टर ने जहाज़ की सामने वाली नोक पर रस्सी बांध दी, सारसों ने उस रस्सी को पकड़ लिया और जहाज़ को आगे खींचने लगे.

 सारस बहुत सारे थे, वे बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे और अपने पीछे जहाज़ को खींच रहे थे. जहाज़ तीर की तरह उड़ रहा था. डॉक्टर ने अपनी कैप भी पकड़ रखी थी, जिससे वह उड़कर पानी में न गिर जाए.

 जानवरों ने देखा – काले पाल वाला डाकुओं का जहाज़ काफ़ी पीछे रह गया था.

 “धन्यवाद, सारसों!” डॉक्टर ने कहा. “आपने हमें समुद्री-डाकुओं से बचाया.


अगर आप न होते तो हम सब समुद्र के तल में पड़े होते.”