मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

Jab Daddy Chhote the - 14


14

जब डैडी स्कूल गए
    

जब डैडी छोटे थे तब वो खूब ज़्यादा बीमार रहते थे. बच्चों की ऐसी कोई भी बीमारी नहीं थी, जो उन्हें न हुई हो. उन्हें खसरा हो चुका था, गलसुए हो चुके थे, और काली खाँसी भी हो चुकी थी. हर बीमारी के बाद कॉम्प्लिकेशन्स हो जाते थे. और जब तक वे दूर होते, छोटे डैडी को नई बीमारी हो जाती.

जब उन्हें स्कूल जाना था, तब भी छोटे डैडी बीमार पड़े थे. जब वो ठीक हुए और पहली बार स्कूल गए, तब तक सारे बच्चों ने बहुत कुछ सीख लिया था. वे सब एक दूसरे को अच्छी तरह पहचानते थे, और टीचर भी उन सबको अच्छी तरह जानती थी.

मगर छोटे डैडी को कोई नहीं जानता था. सारे बच्चे उनकी ओर देख रहे थे. ये बहुत अजीब लग रहा था. ऊपर से कुछ बच्चे जीभ निकाल कर उन्हें चिढ़ा भी रहे थे.

एक लड़के ने उनके रास्ते में अपनी टाँग अड़ा दी. छोटे डैडी गिर पड़े. मगर वो रोए नहीं. उन्होंने उठकर उस बच्चे को धक्का दिया. वह भी गिर पड़ा. फिर उसने भी उठकर छोटे डैडी को धक्का दिया. छोटे डैडी दुबारा गिर पड़े. वो फिर भी नहीं रोए. उन्होंने उस बच्चे को फिर से धक्का दिया. इस तरह, शायद, दिन भर वे एक दूसरे को धक्के ही मारते रहते. मगर तभी घंटी बजी. सब बच्चे क्लास में गए और अपनी अपनी सीट पे बैठ गए. मगर छोटे डैडी की तो कोई सीट ही नहीं थी. तो, उन्हें एक लड़की के पास बिठाया गया. पूरी क्लास हँसने लगी. वो लड़की भी हँसने लगी.

छोटे डैडी का रोने का मन होने लगा. मगर फ़ौरन उन्हें भी ये बड़ा मज़ाहिया लगा, और वो ख़ुद भी हँसने लगे. तब टीचर भी हँसने लगी. उसने कहा:
 “शाबाश! मुझे तो डर था कि तू रोने लगेगा.”
 “मैं भी डर गया था,” डैडी ने कहा.

  सब लोग फिर से हँसने लगे.
 “बच्चों, याद रखो,” टीचर ने कहा, “जब तुम्हारा रोने का मन करे, तो मुस्कुराने की कोशिश करना. ये तुम्हें ज़िन्दगी भर के लिए मेरी सलाह है! तो, चलो, अब पढ़ाई करते हैं.”

उस दिन छोटे डैडी को पता चला कि वो क्लास में सबसे अच्छा पढ़ते हैं. मगर साथ ही ये भी पता चला कि उनकी लिखाई सबसे बुरी है. जब ये पता चला कि वो क्लास में सबसे ज़्यादा बातें भी करते हैं, तो टीचर ने ऊँगली से उन्हें धमकाया.

वह बहुत अच्छी टीचर थीं. वो सख़्त भी थी और ख़ुशमिजाज़ भी थी. उनकी क्लास में पढ़ना बेहद दिलचस्प था. उनकी सलाह छोटे डैडी ने ज़िन्दगी भर याद रखी. ये उनका स्कूल का पहला दिन था. फिर तो ऐसे बहुत सारे दिन आए. और, छोटे डैडी के स्कूल में कित्ती सारी मज़ेदार, और दुखभरी, अच्छी और बुरी घटनाएँ हुईं! मगर ये सब किसी दूसरी किताब में आएगा. हो सकता है, मैं कभी उसे लिखूँ.



अलबिदा, बच्चों!

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

Jab Daddy Chhote the - 13


13

जब डैडी ने ताक़त आज़माई

जब डैडी छोटे थे तो उनके बहुत सारे साथी थे. वे हर रोज़ एक साथ खेलते. कभी-कभी झगड़ा भी करते, मार-पीट भी करते. बाद में समझौता कर लेते. सिर्फ एक बच्चा ऐसा था जो कभी किसी से नहीं लड़ता था. उसका नाम था लेन्या नज़ारोव. ये औसत ऊँचाई का ताक़तवर बच्चा था. उसके पिता सोवियत- मार्शल बुद्योन्नी की फ़ौजी टुकड़ी में रह चुके थे. लेन्या को मार्शल सिम्योन मिखाइलोविच बुद्योन्नी के बारे में बतलाना बहुत अच्छा लगता था. वह वर्णन करता कि कैसे उन्होंने श्वेत-गार्डों को हराया और कैसे वह किसी से भी डरते नहीं थे: न किसी जनरल से, न कमाण्डर से, न बन्दूक की गोली से, न तलवार से. लेन्या को मालूम था कि बुद्योन्नी का घोड़ा कैसा था, उसकी तलवार कैसी थी. और, वह हमेशा कहता:
 “मैं बड़ा होकर बुद्योन्नी जैसा बनूँगा!”

छोटे डैडी को लेन्या के घर जाना बहुत अच्छा लगता था. वहाँ हमेशा ख़ुशी भरा वातावरण होता था. लेन्या को घर में कई काम करने होते थे: वो ब्रेड लाने के लिए भागता, और लकड़ियाँ काटता, और फ़र्श पर झाडू मारता, और बर्तन भी धोता. छोटे डैडी देखते थे कि लेन्या को घर में सब लोग प्यार करते हैं. लेन्या के डैडी अक्सर उससे यूँ बात करते, जैसे बड़े आदमी से कर रहे हों:
 “लेन्या, सण्डे को किस-किस को घर पे बुलाएँगे?”
 “लेन्या, हमारी लकड़ियों की क्या पोज़िशन है, क्या बसंत तक चल जाएँगी?”
और लेन्या के पास सभी सवालों के जवाब होते थे.

अगर लेन्या के पास कोई मेहमान आता, तो उसे फ़ौरन डाईनिंग-टेबल पर बिठाकर उसकी आवभगत की जाती. फिर सब लोग खेलते. छोटे डैडी को यही अफ़सोस रहता कि उनके घर में ऐसा नहीं है. उनकी लेन्या से बहुत दोस्ती थी. वो सिर्फ एक बात नहीं समझ पाते थे: लेन्या कभी भी मार-पीट नहीं करता था. छोटे डैडी उससे अक्सर पूछते:
“तू मार-पीट क्यों नहीं करता? डरता है?”
लेन्या का हमेशा एक ही जवाब होता:
 “मैं अपनों से ही क्यों झगड़ा करूँ?”

एक बार सारे बच्चे इकट्ठे होकर बहस करने लगे कि उनमें सबसे ज़्यादा ताक़तवर कौन है. एक लड़का बोला:
 “मैं बड़े लड़कों से नहीं डरता, और तुम सबको उठाकर बिल्ली के पिल्लों जैसे फेंक दूँगा. मेरे मसल्स देखो – व्वो!”
दूसरे ने कहा:
 “मैं इत्ता ज़्यादा ताक़तवर हूँ, कि मुझे ख़ुद को भी हैरानी होती है. ख़ास तौर से बायाँ हाथ. एकदम फ़ौलाद जैसा है.”
तीसरा बोला:
 “वैसे तो मैं ताक़तवर नहीं हूँ, मुझे गुस्सा दिलाना पड़ता है. और, जो गुस्सा आ गया – तो फिर मेरे सामने न आना! तब मैं अपने होश में नहीं रहता.”
छोटे डैडी ने कहा:
 “मैं बहस नहीं करूँगा. मुझे वैसे भी मालूम है, कि मैं तुम सबसे ज़्यादा ताक़तवर हूँ.”

सभी लोग डींगें मार रहे थे. मगर लेन्या नज़ारोव सिर्फ उनकी बातें सुन रहा था और ख़ामोश था. तब एक लड़के ने कहा:
 “चलो, लड़ाई करते हैं. जो सबको हरा देगा वो सबसे ताक़तवर होगा.”

लड़के मान गए. लड़ाई शुरू हो गई. सब लड़के लेन्या नज़ारोव के साथ लड़ाई करना चाहते थे: वो कभी भी मार-पीट नहीं करता था, इसलिए सब सोचते थे कि वह कमज़ोर है.

शुरू में तो लेन्या का मन नहीं था, मगर जब एक लड़के ने उसे अपने बाएँ फ़ौलादी हाथ से पकड़ा, तो लेन्या को गुस्सा आ गया और उसने फ़ौरन उस लड़के को अपने दोनों पंजों पर उठा लिया. फिर उसने उस लड़के को ज़मीन पर फेंक दिया जो सबको बिल्ली के पिल्लों जैसा उठाकर फेंक देना चाहता था. उसने बड़ी तेज़ी से उसे भी हरा दिया, जिसे गुस्सा दिलाना पड़ता था. ये सही है कि वह, पीठ के बल गिरे हुए चिल्ला रहा था कि उसे अच्छी तरह से गुस्सा नहीं दिलाया गया है. मगर लेन्या ने किसी बात का इंतज़ार नहीं किया और आराम से छोटे डैडी को अपने पंजों पर उठा लिया. दोस्ती की ख़ातिर वह ऐसा दिखा रहा था जैसे उन्हें उठाना सबसे ज़्यादा कठिन था.
तब सबने कहा:
 “लेन्का, तू सबसे ज़्यादा ताक़तवर है! तू चुप क्यों था?”
लेन्या हँस पड़ा और बोला:
 “मैं डींगें क्यों मारूँ?”

लड़कों ने कोई जवाब नहीं दिया. मगर अब उन्होंने भी अपनी ताक़त के बारे में डींग मारना छोड़ दिया. तब से छोटे डैडी समझ गए कि डींग मारने वाला ही ताक़तवर नहीं होता. और वे अपने दोस्त लेन्या नज़ारोव से और भी प्यार करने लगे.

कई साल बीत गए. छोटे डैडी बड़े हो गए. वो दूसरे शहर चले गए. उन्हें नहीं मालूम कि अब लेन्या कहाँ है. शायद, वह एक अच्छा इन्सान बन गया हो.

रविवार, 26 अप्रैल 2015

Jab Daddy Chhote the - 12


12

डैडी और उनकी गर्ल-फ्रेंड


जब डैडी छोटे थे तो एक लड़की से उनकी दोस्ती हुई. उसका नाम था माशा. वो भी छोटी थी. वो दोनों बड़ी अच्छी तरह से खेलते थे. वो रेत पर ख़ूबसूरत सा घर बनाते. वो बड़े से डबरे में छोटे-छोटे जहाज़ तैराते. इस डबरे में वे मछलियाँ भी पकड़ते. हालाँकि वे कुछ भी नहीं पकड़ पाते, मगर वे बहुत ख़ुश रहते थे.

छोटे डैडी को इस लड़की के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था. वो उनके साथ कभी भी झगड़ा नहीं करती थी, उन पर कंकड़ नहीं फेंकती थी और उनके रास्ते में पैर अड़ाकर उन्हें गिराती नहीं थी. 

अगर छोटे डैडी की पहचान के सभी लड़के ऐसे ही होते तो उन्हें बहुत ख़ुशी होती. मगर वो तो अलग ही तरह के थे. वे छोटे डैडी को चिढ़ाते कि उनकी एक लड़की से दोस्ती है. वो गाते:


टिली-टिली टूला!
दुल्हन और दूल्हा!


वे पूछते:
 “शादी कब हो रही है?”

वे छोटे डैडी से जानबूझकर इस तरह से बात करते जैसे किसी छोटी लड़की से बात कर रहे हों. वे उनसे पूछते:
 “तू आ गई? कहाँ थी तू?”

उनका ख़याल था कि किसी लड़के को लड़कियों से दोस्ती करने में शरम आनी चाहिए.

छोटे डैडी को उन लड़कों पे बेहद गुस्सा आता, वो रो भी देते.

मगर छोटी बच्ची माशा सिर्फ मुस्कुरा देती. वह कहती:
 “चिढ़ाने दो!”

इसलिए माशा को चिढ़ाने में लड़कों को कोई मज़ा नहीं आता. तो, सारे लड़के सिर्फ छोटे डैडी को चिढ़ाते. माशा की तरफ़ वे ध्यान ही नहीं देते.

मगर एक दिन कम्पाऊण्ड में एक बड़ा कुत्ता भागता हुआ आया. अचानक कोई चिल्लाया:
 “पागल कुत्ता है!”

सबसे बहादुर लड़के भी सिर पे पाँव रखकर भागे. छोटे डैडी अपनी जगह पे मानो जम गए. कुत्ता एकदम पास में था. तब माशा डैडी के पास जाकर खड़ी हो गई और कुत्ते के सामने अपना हाथ  हिला-हिलाकर उसे भगाने लगी:
 “चल भाग!” उसने कहा.

अब सबने देखा कि पागल कुत्ता पूंछ दबाकर कम्पाऊण्ड से भाग गया. सब समझ गए कि वह पागल नहीं था. वह गलती से दूसरों के कम्पाऊण्ड में आ गया था. और कुत्ते अपने और दूसरों के कम्पाऊण्ड अच्छी तरह पहचानते हैं. दूसरों के कम्पाऊण्ड में सबसे खूँखार कुत्ता भी कम भौंकता है.

जब सब लड़कों ने देखा कि कुत्ता पागल नहीं है तो वे उसे पत्थरों से और डंडों से भगाने लगे. मगर इसके लिए भी बड़ी बहादुरी की ज़रूरत थी. ये बात कुत्ता भी समझता था. वह उछल कर बाहर रास्ते पर आ गया, वहाँ पर रुका और गुर्राने लगा. अब सारे लड़के अपने कम्पाऊण्ड में लौट आए और छोटे डैडी को चिढ़ाने लगे.

 “सबसे ज़्यादा तू डरा था,” वे बोले, “भाग भी नहीं सका...कैसा है रे तू!”

मगर छोटे डैडी ने जवाब दिया:

 “हाँ, मैं डर गया था. और, तुम सब भी डर गए थे. सिर्फ माशा नहीं डरी.”

अब सारे लड़के चुप हो गए. उन्हें बहुत शर्म आ रही थी. मगर माशा ने कहा:
 “नहीं, मैं भी डर गई थी.”



अब सब लोग हँसने लगे. इसके बाद किसी ने भी छोटे डैडी को कभी नहीं चिढ़ाया. छोटी लड़की माशा से उनकी दोस्ती लम्बे समय तक बनी रही.

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

Jab Daddy Chhote the - 11


11

जब डैडी ने अंकल वीत्या को सड़क पर छोड़ दिया
     


जब डैडी छोटे थे, तब उनका भाई उनसे भी छोटा था.

अब इस भाई का नाम है अंकल वीत्या, वो इंजीनियर है, उसका भी एक बेटा है, बेटे का नाम भी वीत्या है.

मगर उस समय ये बिल्कुल नन्हा बच्चा था. उसने अभी-अभी चलना सीखा था. कभी-कभी वह अपने हाथों-पैरों से रेंगता भी था.            

कभी सिर्फ ज़मीन पर बैठा ही रहता था, इसलिए उसे अकेला नहीं छोड़ा जाता था. इत्ता छोटा था वो.

एक बार छोटे डैडी, और बिल्कुल छोटे अंकल वीत्या कम्पाऊण्ड में खेल रहे थे. एक मिनट के लिए उन्हें अकेला छोड़ा गया था. ठीक उसी समय उनकी गेंद लुढ़कती हुई गेट से बाहर निकल गई. गेंद के पीछे-पीछे भागे डैडी. और डैडी के पीछे-पीछे चले अंकल वीत्या.

गेट के बाहर था एक टीला. गेंद टीले से नीचे लुढ़कने लगी. उसके पीछे डैडी भी टीले से नीचे भागे. और डैडी के पीछे-पीछे चलने लगे अंकल वीत्या.

टीले के नीचे था रास्ता. वहाँ जाकर गेंद रुक गई, और छोटे डैडी ने उसे पकड़ लिया. और बिल्कुल छोटे अंकल वीत्या ने डैडी को पकड़ लिया.

गेंद, हालाँकि सबसे छोटी थी, मगर बिल्कुल नहीं थकी. छोटे डैडी थोड़ा सा थक गए. मगर अंकल वीत्या पूरी तरह थक गए – उन्होंने तो हाल ही में चलना सीखा था! – इसलिए वो धम् से रास्ते पर बैठ गए.

इसी समय रास्ते पर धूल के बादल उड़ने लगे, गाना गरजने लगा और घुड़सवार दिखाई दिए. वे तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे. ये बहुत-बहुत पहले की बात है. युद्ध हाल ही में समाप्त हआ था.

छोटे डैडी को अच्छी तरह मालूम था कि युद्ध ख़तम हो गया है. मगर फिर भी वो घबरा गए. उन्होंने गेंद फेंक दी, अंकल वीत्या को वहीं रास्ते पर छोड़ दिया और घर की तरफ़ भागे.

नन्हे अंकल वीत्या ज़मीन पर बैठे थे और गेंद से खेल रहे थे. वे घोड़ों से और सैनिकों से ज़रा भी नहीं घबराए. वैसे भी वो किसी से भी नहीं डरते थे. वो बहुत-बहुत छोटे जो थे.

घुड़सवार अंकल वीत्या के नज़दीक आए. सामने था उनका कमाण्डर - सफ़ेद घोड़े पर सवार.
 “स्टॉप!” उसने आज्ञा दी, वह घोड़े से उतरा और उसने अंकल वीत्या को अपने हाथों में उठा लिया. उसने उन्हें ऊपर उछाला, पकड़ लिया और हँसने लगा:
 “तो, कैसी चल रही है ज़िन्दगी?” उसने पूछा. अंकल वीत्या भी हँसने लगे और उन्होंने उसकी ओर गेंद बढ़ा दी. टीले से दादाजी, दादा और छोटे डैडी भागते हुए आ रहे थे.
दादी चिल्लाई:
 “मेरा बच्चा कहाँ है?”
दादाजी चीखे:
 “चिल्लाओ मत!”
छोटे डैडी ज़ोर-ज़ोर से रो रहे थे. तब कमाण्डर ने कहा:
 “ये रहा आपका बच्चा! बहादुर जवान: न तो लोगों से डरता है, न ही घोड़ों से!”
कमाण्डर ने आख़िरी बार अंकल वीत्या को ऊपर उछाला और उसे दादी को सौंप दिया. दादाजी को उसने गेंद थमा दी. फिर उसने छोटे डैडी की तरफ़ देखा और कहा:
 “हारून भागा हिरन से तेज़...”

इस पर सब लोग हँसने लगे. फिर घुड़सवार आगे निकल गए. दादाजी, दादी, छोटे डैडी और बिल्कुल छोटे अंकल वीत्या घर की ओर चल पड़े. दादाजी ने छोटे डैडी से कहा:
 “हारून भागा हिरन से तेज़, क्योंकि वह था डरपोक. ये लेर्मोंतोव की कविता है. थोड़ी शर्म कर!”



छोटे डैडी को बड़ी शर्म आई. जब वो बड़े हो गए और उन्होंने लेर्मोंतोव की सारी कविताएँ पढ़ लीं, तो इन शब्दों को पढ़ते हुए उन्हें हमेशा शरम आती थी.

Jab Daddy Chhote the - 10




10

जब डैडी ने लिखना सीखा


डैडी ने छुटपन में पढ़ना तो बहुत जल्दी सीख लिया था.  उन्हें सिर्फ इतना बताना काफ़ी था कि ये है ‘अ’, ये रहा ‘ब’. और वो वर्णमाला के सारे अक्षर सीख गए. उन्हें इसमें बहुत मज़ा आता था. वो छोटी-छोटी किताबें पढ़ने लगे, तस्वीरें देखने लगे. मगर लकीरें खींचना उन्हें बिल्कुल पसन्द नहीं था. छोटे डैडी हाथ में ठीक तरह से कलम पकड़ना ही नहीं चाहते थे. गलत तरह से पकड़ना भी नहीं चाहते थे. उन्हें बस पढ़ना पसन्द था, लिखना पसन्द नहीं था. पढ़ना दिलचस्प था, लिखना – ‘बोरिंग’.

मगर छोटे डैडी के मम्मी-पापा उनसे कहते:
 “अगर लिखेगा नहीं – तो पढ़ेगा भी नहीं!”
और आगे कहते:
 “सीधी लकीरें बना!”

पूरे दिन, सुबह से शाम तक, छोटे डैडी के कानों में ये ही शब्द गूंजते रहते. हर रोज़ बड़ी बेदिली से वो सीधी लकीरें बनाते.

ये लकीरें बड़ी भयानक होती थीं. वे आड़ी-टेढ़ी, कूबड़ वाली होती थीं. वे किसी डरावने लूले-लंगड़े की तरह दिखती थीं. छोटे डैडी को भी उनकी ओर देखने से घिन आती थी.

हाँ, लकीरें उनसे नहीं बनती थीं. मगर धब्बे लाजवाब बन जाते थे. इतने बड़े-बड़े और इतने ख़ूबसूरत धब्बे तो आज तक किसीने नहीं बनाए थे. इस बात से सभी सहमत थे. अगर धब्बों के द्वारा लिखना सिखाया जाता तो छोटे डैडी दुनिया में सबसे अच्छा लिख रहे होते.

छोटे डैडी को शर्मिन्दा किया जाता, डाँटा जाता, सज़ा भी दी जाती. उन्हें पाठ को दो-दो, तीन-तीन बार लिखने को कहा जाता. मगर जितना ज़्यादा वो लिखते, उतनी ही बुरी लकीरें और उतने ही बढ़िया धब्बे बनते थे.

उन्हें समझ में नहीं आता था कि उन्हें क्यों परेशान किया जाता है. उन्होंने अक्षर तो सीख ही लिए थे. लिखना भी वो अक्षर ही चाहते थे. उनसे कहा जाता कि बिना लकीरों के अक्षर नहीं बनेंगे. मगर वो इस पर विश्वास नहीं करते थे. और, जब वो स्कूल जाने लगे, तो सबको इतना आश्चर्य हुआ कि वो पढ़ते कितना अच्छा हैं और लिखते कितना बुरा हैं. क्लास में सबसे बुरी हैंडराईटिंग थी उनकी.

कई साल बीत गए. छोटे डैडी बड़े हो गए. आज तक उन्हें पढ़ना पसन्द है, मगर लिखना अच्छा नहीं लगता. उनकी हैंडराईटिंग इतनी बुरी और बदसूरत है कि कई लोगों को ऐसा लगता है कि वो मज़ाक कर रहे हैं.

डैडी को अक्सर इस बात से शर्म आती है, अटपटा लगता है.

कुछ ही दिन पहले डैडी से पोस्ट-ऑफ़िस में पूछा गया:
 “आप, क्या कम पढ़े-लिखे हैं?”
डैडी बुरा मान गए.
 “नहीं, क्या कह रहे हैं, मैं पढ़ा-लिखा हूँ!” उन्होंने कहा.
 “और, आपने ये कौनसा अक्षर लिखा है?” उनसे पूछा गया.
 “ये है ‘यू’,” हौले से डैडी ने कहा.
 ‘यू’? ऐसा ‘यू’ कौन लिखता है?”
 “मैं”, डैडी ने धीरे से कहा.

सब लोग हँसने लगे.


आह, अब कितना दिल चाहता है डैडी का कि सुन्दर अक्षरों में लिखें, साफ़-सुथरी, बढ़िया हैंडराईटिंग में, बिना धब्बों के. कितना दिल चाहता है कलम को सही ढंग से पकड़ने का! कितना अफ़सोस होता है उन्हें कि वो बुरी लकीरें बनाया करते थे! मगर, अब कुछ भी नहीं किया जा सकता. क़ुसूर उन्हीं का है.

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

Jab Daddy Chhote the - 09

9


जब डैडी ने गलती की


जब डैडी छोटे थे तब वो दूध, पानी, चाय और कॉडलिवर ऑइल पिया करते थे.

सबसे फ़ायदेमन्द होता था कॉडलिवर ऑइल. मगर वो इतना बुरा होता था. छोटे डैडी सोचते थे कि कॉडलिवर ऑइल से ज़्यादा बुरी चीज़ दुनिया में और कोई नहीं है. मगर पता चला कि ऐसा नहीं है.

एक बार गर्मियों में छोटे डैडी बाहर कम्पाऊण्ड में खेल रहे थे. उस दिन बेहद गर्मी थी. छोटे डैडी खूब दौड़ रहे थे, इसलिए उन्हें ज़ोर की प्यास लग आई. वह घर के अन्दर लपके. घर में सब लोग बहुत व्यस्त थे. वहाँ पेस्ट्रियाँ बन रही थीं, खाने की मेज़ सजाई जा रही थी, मेहमानों का इंतज़ार हो रहा था.

किसी ने भी ध्यान नहीं दिया कि छोटे डैडी ने काँच की सुराही से अपने लिए एक ग्लास पानी भर लिया है. उन्हें मालूम था कि इस सुराही में हमेशा उबला हुआ पानी होता है. वो फ़ौरन आधा ग्लास पानी गटक गए. गटक तो गए, मगर तभी उनकी साँस रुक गई. वो समझ ही नहीं पाए कि ये पानी को क्या हो गया था.

छोटे डैडी को ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्होंने ज़िन्दा साही को निगल लिया हो. फिर उन्होंने सोचा कि हो सकता है, पानी अच्छा ही हो, मगर उनके भीतर ही कोई चीज़ बिगड़ गई है. वो बहुत घबरा गए और उन्होंने सोचा कि अब वो मरने ही वाले हैं. तब वो इतने भयानक तरीक़े से चीख़े कि पूरा घर भाग कर उनके पास आ गया.

छोटे डैडी खाँस रहे थे, उनका दम घुट रहा था, मुँह में तेज़ जलन हो रही थी. उनकी तबियत बहुत बिगड़ गई, और कोई भी समझ नहीं पाया कि हुआ क्या था.
 “ये बीमार हो गया!” दादी चिल्लाई.
 “ये नाटक कर रहा है!” दादाजी चिल्लाए.
मगर डैडी की चीख़ सुनकर उनकी आया आई और वह फ़ौरन सब समझ गई.
 “इसने वोद्का पी ली है,” आया ने कहा. “सुराही में तो वोद्का है!”
 वोद्का की बात सुनकर सब लोग फिर चिल्लाने लगे.
 “डॉक़्टर को बुलाओ!” दादी चीख़ी.
 “चाबुक मारूँगा!” दादाजी चिल्लाए.
 “इसे कुछ खाने को दीजिए!” आया चिल्लाई.

छोटे डैडी ने ब्रेड-बटर खाया और हौले से वोद्का के बारे में बोले:
 “वो, शायद, बहुत फ़ायदेमन्द है.”

मगर छोटे डैडी की तबियत और ज़्यादा बिगड़ गई, वो फ़र्श पर बैठ गए. उनका सिर घूमने लगा.

छोटे डैडी को आगे की कोई बात याद नहीं है. मगर उन्हें बताया गया कि वो पूरा दिन सोते रहे थे. शाम को छोटे डैडी की तबियत कुछ ठीक हुई. और, जब मेहमान आये और वे वोद्का पीने लगे, तो छोटे डैडी ने अपने छोटे से पलंग से उनकी ओर देखा.

उन्हें मेहमानों पर बहुत दया आई. उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि अब उनकी तबियत बिगड़ेगी. एक मेहमान से तो उन्होंने कहा भी:
 “ये गन्दी चीज़ मत पियो!”
मगर मेहमान सिर्फ मुस्कुरा दिया.

सुबह छोटे डैडी बिल्कुल ठीक हो गए. मगर उन्होंने फिर कभी उस सुराही से पानी नहीं पिया. आज भी जब वो वोद्का की ओर देखते हैं, तो उन्हें बड़ा अटपटा लगता है.

डैडी अक्सर ये बात बताते हैं. और हमेशा कहते हैं:


”उस दिन से मैंने पीना छोड़ दिया!”

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

Jab Daddy Chhote the - 08

8

जब डैडी बात-बात पे बुरा मान जाते थे

 
जब डैडी छोटे थे, तो बात-बात में बुरा मान जाया करते थे. वो एक साथ सब से गुस्सा हो जाते और हरेक से अलग-अलग कारण से भी गुस्सा हो जाते थे. जब उनसे कोई कहता: “ये तू इतना कम क्यों खा रहा है?” – वो फ़ौरन बुरा मान जाते. जब उनसे कहते: “तू इतना ज़्यादा क्यों खा रहा है?” तब भी वो गुस्सा हो जाते.

वो दादी पे गुस्सा हो जाते, क्योंकि डैडी उनसे कुछ कहना चाह रहे होते, मगर दादी व्यस्त रहती और उनकी बात सुन नहीं पाती. वो दादाजी से इसलिए गुस्सा हो जाते कि दादाजी उनसे कुछ कहना चाहते, मगर डैडी ख़ुद ही किसी बात में व्यस्त रहते और उनकी बात न सुन पाते.

जब मम्मी-डैडी किसी से मिलने जा रहे होते या फिर थियेटर जा रहे होते, तो छोटे डैडी बुरा मान जाते और रोने लगते. वो ज़िद करते कि मम्मी-डैडी पूरे समय घर पर ही बैठे रहें. मगर, जब डैडी ख़ुद सर्कस जाना चाहते तो और भी ज़ोर-ज़ोर से रोते. उन्हें इस बात का बुरा लगता कि उन्हें घर में ही बैठे रहने को मजबूर किया जाता है.

अपने छोटे भाई वीत्या पर, जो उस समय बेहद छोटा था, डैडी इसलिए गुस्सा हो जाते क्योंकि वीत्या उनसे बात करना नहीं चाहता था. अंकल वीत्या सिर्फ मुस्कुराते रहते और अपने पैर का अंगूठा चूसा करते. वो इतने छोटे थे कि सिर्फ ‘बा-बा...’ ही कह पाते थे. मगर डैडी फिर भी अंकल वीत्या पे गुस्सा हो जाते.    

अगर आण्टी उनसे मिलने आती, तो वो आण्टी पे गुस्सा हो जाते. अगर अंकल मिलने आते, तो अंकल पे गुस्सा हो जाते. अगर अंकल और आण्टी साथ-साथ आते, तो वो दोनों पे गुस्सा हो जाते. कभी उन्हें लगता कि आण्टी उन पर हँस रही है. कभी ऐसा लगता कि अंकल उनसे बात करना नहीं चाहते. या फिर कोई और बहाना ढूँढ़ लेते. न जाने क्यों छोटे डैडी अपने आप को दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति समझते थे.

अगर वो कुछ कहना चाहते हों, तो सबको चुप रहना चाहिए. अगर डैडी को चुप रहना हो, तो किसी को भी उनसे बात नहीं करनी चाहिए.

अगर वो बिल्ली की तरह म्याँऊ-म्याँऊ करना चाहते हों, या कुत्ते की तरह भौ-भौ करना चाहें, सुअर की तरह ‘ख्रू-ख्रू’ करना चाहें, मुर्गे की तरह कुकडू-कूँ करना चाहे या गाय की तरह रंभाना चाहें तो सबको अपना-अपना काम छोड़कर सुनना चाहिए कि वो कितनी अच्छी तरह से ये कर रहे हैं. छोटे डैडी इस बारे में बिल्कुल नहीं सोचते थे कि दूसरे लोग, चाहे छोटे हों या बड़े, किसी भी बात में उनसे कम नहीं हैं. और अगर उनसे बहस की जाती, या उन पर कोई फ़िकरा कसा जाता, तो वो फ़ौरन बुरा मान जाते. ये सब बहुत घिनौना था. छोटे डैडी अपने होंठ फुला लेते, गुस्सैल नज़रों से देखते और वहाँ से चले जाते.

वो पूरे समय किसी न किसी पे मुँह फुलाए रहते, किसी न किसी से झगड़ते ही रहते, सब से गुस्सा ही रहते. सुबह से शाम तक उन्हें बस, मनाना ही पड़ता था, शांत करना पड़ता था, समझौता करवाना पड़ता था. जैसे ही वो सुबह आँखें खोलते, सूरज पे गुस्सा हो जाते क्योंकि उसने उन्हें उठा दिया था. फिर वो शाम तक सबसे रूठे रहते, और जब सो जाते, तो सपने में भी होंठ फुलाए रहते, किसी न किसी पर गुस्सा होते रहते.

मगर सबसे बुरी बात तब होती, जब डैडी दूसरे बच्चों के साथ खेल रहे होते थे. वो मांग करते कि सिर्फ उनकी पसन्द के खेल ही खेले जाएँ. वो कुछ बच्चों के साथ खेलना चाहते और कुछ के साथ नहीं खेलना चाहते. जब वो बहस करते, तो वो हमेशा ये दिखाने की कोशिश करते कि वो ही सही हैं. वो दूसरों पर हँस सकते थे, मगर उन पर कोई नहीं हँस सकता था. इससे सारे बच्चे ‘बोर’ हो गए. तो क्या हुआ: छोटे डैडी पर सब लोग हँसने लगे – घर में भी और बाहर भी. घर में उनसे पूछते:

“चाय पिएगा? बस, मुँह मत फ़ुलाना!”
“चल, घूमने चलते हैं, बस, मुँह मत फुलाना!”
“तू अभी गुस्सा हुआ या नहीं?”
“जल्दी से बुरा मान जा, वर्ना, हमारे पास टाईम नहीं है!”
ये सब सुनते ही छोटे डैडी फ़ौरन गुस्सा हो जाते.

बाहर तो सारे बच्चे बस, उन्हें चिढ़ाते ही रहते. वे कहते:
 “कोई आए, मुँह फुलाए?” और डैडी फ़ौरन मुँह फुला लेते.
“देखो, मैं अभी उसे उँगली दिखाऊँगा, और वो गुस्सा हो जाएगा!”

वे डैडी को उँगली दिखाते. वो फ़ौरन रूठ जाते. और सब हँसने लगते. डैडी को इस तरह चिढ़ाना लड़कों को बहुत अच्छा लगता था. वे तो उन्हें पूरी तरह परेशान ही कर देते, मगर एक बड़े लड़के को उन पर दया आ गई. उसने कहा:

 “सुन, तू बुरा मानना छोड़ दे. तो सब तुझसे दूर रहेंगे.”

डैडी ने उसकी बात मान ली. अब वो कम बुरा मानते, और बच्चे उन्हें कम चिढ़ाते. मगर फिर भी, उन्हें रूठने की इतनी आदत पड़ गई थी, कि सिर्फ स्कूल में ही उसे सुधारा गया. और वह भी पूरी तरह से नहीं. यह गन्दी आदत डैडी को पढ़ने में, काम करने में, दोस्त बनाने में परेशान करती थी. वो लोग जो डैडी को बचपन से जानते थे, अब तक डैडी को चिढ़ाते हैं. मगर अब डैडी उन पर बिल्कुल गुस्सा नहीं होते. ज़रा भी गुस्सा नहीं होते. अब तो डैडी पहले के मुक़ाबले में काफ़ी कम बुरा मानते हैं.