3.
लेखक : अर्कादी गैदार
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
अगले दिन वे चल पड़े. मगर चूंकि ट्रेन रात में बड़ी
देर से छूटती थी, तो
निकलते हुए काली खिड़कियों के पार चुक और गेक कोई दिलचस्प नज़ारा नहीं देख पाए.
रात में गेक की नींद खुल गई. छत का बल्ब बुझा
दिया गया था, मगर
गेक के चारों ओर की हर चीज़ नीले प्रकाश से चमक रही थी: टिशू पेपर से ढंकी छोटी-सी
मेज़ पर थरथराता हुआ गिलास, और
पीला संतरा, जो अब
कुछ हरा लग रहा था, और
मम्मा का चेहरा, जो
हिलते-डुलतेहुए गहरी नींद में सो रही थी. बर्फ का डिज़ाइन बनी खिड़की के पार गेक ने चाँद को
देखा, इत्ता
बड़ा चाँद, जैसा
मॉस्को में नहीं होता. और तब उसने सोचा कि ट्रेन ऊंचे पहाड़ों से गुज़र रही है, जहाँ से चाँद
नज़दीक है.
उसने मम्मा को हिलाया और पीने के लिए पानी माँगा.
मगर उसने एक कारण से पानी नहीं दिया, बल्कि उससे संतरा छीलकर एक फांक खाने को कहा.
गेक को संतरे की फांक छीलना बड़ा अपमानजनक लग रहा
था, मगर अब सोने
का मन नहीं था. उसने चुक को धक्का दिया – शायद जाग जाए. चुक गुस्से से फुरफुराया
मगर उठा नहीं.
तब गेक ने जूते पहने, दरवाज़ा थोड़ा
सा खोला और कॉरीडोर में निकल आया.
कम्पार्टमेंट का कॉरीडोर लंबा और तंग था.
उसकी बाहर वाली दीवार पर फोल्डिंग बेंचें बनी हुई थीं, जिन पर से यदि नीचे उतरो, तो वे अपने आप बंद हो जाती थीं. यहीं, कॉरीडोर में दस और दरवाज़े खुलते थे. सभी दरवाज़े चमक
रहे थे, लाल,
पीले-सुनहरे हैंडल वाले.
गेक एक बेंच पर बैठा, फिर दूसरी पर, तीसरी पर
और इस तरह करीब-करीब कंपार्टमेंट के अंत तक पहुँच गया. मगर तभी लालटेन लिए कंडक्टर
आया और उसने गेक को डांटा, कि लोग सो
रहे हैं, और वह बेंचें भड़भड़ा रहा है.
कंडक्टर चला गया, और गेक जल्दी-जल्दी अपने कुपे की ओर चला. उसने मुश्किल
से दरवाज़ा खोला. सावधानी से, ताकि
मम्मा न जाग जाए, फिर उसने दरवाज़ा बंद किया और नरम बिस्तर पर चढ़ गया.
और, चूंकि
मोटा चुक पूरा पसर कर पडा था, तो गेक ने
मुट्ठी से उसे धकेला, जिससे वह सरक जाए.
मगर तभी एक भयानक बात हुई: भूरे बालों और
गोल सिर वाले चुक के बदले गेक की ओर देख रहा था किसी अंकल का मूँछोंवाला, गुस्सैल
चेहरा, जो कठोरता से पूछ रहा था:
“ये कौन धक्का दे रहा है?’
सभी बर्थों से डरे हुए मुसाफिर उछले, बल्ब जला, और ये
देखकर कि वह अपने नहीं, बल्कि
किसी और कुपे में घुस गया है, गेक जोर
से रोने लगा.
मगर सभी लोग फ़ौरन समझ गए कि बात क्या है और
हंसने लगे. मूंछों वाले अंकल ने पतलून पहनी, फ़ौजी
जैकेट पहना और गेक को उसकी जगह पर ले गया.
गेक अपने कंबल के नीचे घुस गया और शांत हो
गया. कम्पार्टमेंट हिल रहा था, हवा शोर
मचा रही थी.
अभूतपूर्व विशाल चाँद फिर से थरथराते हुए
गिलास, सफ़ेद टिश्यू पेपर पर पड़े नारंगी संतरे और मम्मा के चहरे को नीली रोशनी से
चमका रहा था, जो सपने में किसी बात पर मुस्कुरा रही थी और इस बात से
बिलकुल बेखबर थी कि उसके बेटे पर कैसी मुसीबत आई थी.
आखिर में गेक भी सो गया.
...और गेक को सपना आया अजीब
जैसे पूरा कम्पार्टमेंट हो उठा सजीव,
जैसे आवाज़ें सुनाई दे रही हों,
एक पहिये से दूसरे पहिये तक
भागते हैं कम्पार्टमेंट्स - लम्बी कतार में-
और बतियाते हैं इंजिन से.
पहला:
आगे बढ़ो,
कॉम्रेड! रास्ता है लंबा
सामने तुम्हारे अंधेरे में दबा।
दूसरा:
चमको प्रखरता से, लालटेनों
सुबह की लाली तक!
तीसरा:
जलो, आग! पाईप, सीटी!
घूमो पहियों,
पूरब की ओर!
चौथा;
तब पूरी करेंगे बातचीत,
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