2.
लेखक: अर्कादी गैदार
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
सफ़र की तैयारी
करते-करते एक सप्ताह बीत गया,
चुक और गेक ने भी समय बरबाद नहीं किया,
चुक ने किचन के चाकू से खंजर बनाया,
और गेक ने एक चिकनी डंडी ढूंढी,
उसमें एक कील ठोंकी, और इस तरह एक
भाला बन गया, इतना मज़बूत
कि अगर भालू की चमड़ी में किसी चीज़ से छेद किया जाए और फिर उसके दिल में यह भाला
घुसा दिया जाए, तो , बेशक, भालू फ़ौरन मर जाएगा.
आखिरकार सारे
काम पूरे हो गए. सामान पैक कर लिया गया. दरवाज़े के लिए दूसरा ताला बनाया गया, ताकि क्वार्टर में चोर न घुस आयें. अलमारी से
डबल रोटी के बचे-खुचे टुकडे,
मैदा और रवा झटक दिया गया, जिससे
चूहे न घुस आयें. और मम्मा अगले दिन वाली शाम की ट्रेन के टिकट खरीदने स्टेशन चली
गई.
मगर उसके जाने
के बाद चुक और गेक में झगड़ा हो गया.
आह, अगर वे जानते कि इस झगड़े का कितना बुरा परिणाम
होने वाला है, तो कम से कम
उस दिन तो वे झगड़ा नहीं करते!
मितव्ययी चुक
के पास एक चपटा धातु का डिब्बा था,
जिसमें वह चाय के पैकेट के चमकीले कागज़, चॉकलेट के रैपर्स, (अगर उन पर टैंक, हवाई जहाज़,
या रेड आर्मी का फ़ौजी होता), बाणों के लिए चिड़ियों के पंख, चाइनीज़ ट्रिक के लिए
घोड़े का बाल और अनेक प्रकार की ज़रुरत की चीज़ें, रखता था.
गेक के पास डिब्बा नहीं था.
और, वैसे भी गेक सीधा-सादा था,
मगर वह गाने गा सकता था.
और ठीक तभी, जब चुक छुपाने की जगह पर अपना बहुमूल्य डिब्बा
लेने गया, और गेक
कमरे में गाने गा रहा था, पोस्टमैन
ने आकर चुक को मम्मा के लिए टेलीग्राम दिया.
चुक ने टेलीग्राम को अपने
डिब्बे में छुपा दिया और यह पता करने के लिए गया कि गेक गाना क्यों नहीं गा रहा है, बल्कि चीख रहा है:
र-र्रे!
र-र्रे! हुर्रे!
ऐय! बेय!
तुर्रुमबेय!
चुक ने उत्सुकता से दरवाज़ा
थोड़ा सा खोला और उसने ऐसे ‘तुर्रुमबेय’ को देखा कि कड़वाहट के मारे उसके हाथ
थरथराने लगे.
कमरे के बीच में एक कुर्सी
थी, और उसकी पीठ पर भाले से
छेदा गया, चिथड़ा बन
गया अखबार टंगा था. और इसमें तो कोई ख़ास बात नहीं थी. मगर नासपीटा गेक, इस बात की
कल्पना करते हुए कि उसके सामने भालू का शव है, तैश से मम्मा के जूतों वाले पीले बॉक्स में तैश से भाला चुभाए जा
रहा था. मगर उस बॉक्स में चुक ने टीन का सिग्नल पाईप, अक्टूबर समारोह के तीन रंगीन बैज और पैसे – छियालीस कोपेक रखे थे, जिन्हें उसने गेक की तरह, कई तरह की बेवकूफियों पर खर्च नहीं किया था, बल्कि सफ़र के लिए बचा कर रखा था.
और छेदे गए बॉक्स को देखकर
चुक ने गेक के हाथ से भाला छीन लिया, घुटने पर रखकर उसके दो टुकड़े कर दिए और फर्श
पर फेंक दिया.
बाज़ की तरह गेक चुक पर झपटा
और उसके हाथों से धातु का डिब्बा छीन लिया. एक झटके में खिड़की की सिल के पास भागा
और खुले हुए वेंटिलेटर से बाहर फेंक दिया.
अपमानित चुक ज़ोर से बिलखने
लगा और “टेलिग्राम! टेलीग्राम!” चीखते हुए सिर्फ एक ही कोट में,
बिना दस्तानों और कैप के दरवाज़े बाहर भागा.
यह महसूस करके कि कुछ गड़बड़
हो गई है, गेक चुक
के पीछे लपका.
मगर वे बेकार ही में धातु के
डिब्बे को ढूँढते रहे, जिसमें
अभी तक किसी के भी द्वारा नहीं पढ़ा गया टेलीग्राम था.
या तो वह बर्फ के टीले के
नीचे दब गया और अब बर्फ में गहरे दबा पडा है, या फिर पगडंडी पर गिर गया और वहाँ से गुज़रते हुए किसी ने उसे उठा
लिया है, मगर, बात ये थी
कि अपनी दौलत और न खोले गए टेलीग्राम के साथ डिब्बा हमेशा के लिए खो गया है.
घर वापस आकर चुक और गेक बड़ी
देर तक खामोश रहे. उन्होंने सुलह कर ली थी,
क्योंकि वे जानते थे, कि मम्मा उन दोनों पर ही गुस्सा करेगी. मगर चूंकि चुक गेक
से पूरे एक साल बड़ा था, तो उसे
ज़्यादा देर तक घबराहट नहीं हुई,
उसने सोच लिया:
“गेक, अगर हम मम्मा से
टेलीग्राम के बारे में कुछ भी न कहें तो?
सोचो – टेलीग्राम! हमें तो बिना टेलीग्राम के भी अच्छा लगता है.”
“झूठ नहीं बोलना चाहिए,” गेक ने गहरी सांस ली. “ झूठ बोलने पर मम्मा और ज़्यादा गुस्सा करती है.”
“मगर हम झूठ नहीं बोलेंगे!”
चुक खुशी से चहका. “अगर वह पूछेगी कि टेलीग्राम कहाँ है, - तो हम बता देंगे. अगर नहीं पूछेगी, हम पहले से ही
क्यों कूदें? हम कोई बेवकूफ तो नहीं हैं.”
“ठीक है,” गेक सहमत हो गया. “अगर झूठ बोलने की ज़रुरत नहीं है, तो ऐसा ही करेंगे. ये तूने अच्छा सोचा, चुक.”
और जैसे ही उन्होंने ये
फैसला किया, मम्मा वापस आई. वह खुश थी कि ट्रेन में अच्छी टिकट्स
मिल गई थीं, मगर फिर भी वह फ़ौरन समझ गई कि उसके प्यारे बच्चो के चहरे उतरे हुए हैं, और आंखें रोई हुई लग रही हैं.
“जवाब दो, नागरिकों,” उसने बर्फ झटकते हुए पूछा, “ मेरी गैरहाज़िरी में किस बात पर झगड़ा हुआ था?”
“झगड़ा नहीं हुआ था,” चुक ने इनकार किया.
“नहीं हुआ था,” गेक ने ज़ोर देकर कहा. “हम सिर्फ झगड़ा करना चाहते थे, मगर हमने फ़ौरन इरादा बदल दिया.”
“मुझे ये ख़याल अच्छा लगा,” मम्मा ने कहा.
उसने कपडे बदले, दीवान पर बैठी और उन्हें मज़बूत हरे-हरे टिकट्स दिखाए: एक टिकट बड़ा था, और दो छोटे थे. उन्होंने जल्दी से खाना खा लिया, और
फिर सब हलचल बंद हो गई, लाईट बंद हो गई और वे सब सो गए.
और टेलीग्राम के बारे में
मम्मा को कुछ भी मालूम नहीं था, इसलिए उसने उनसे कुछ भी नहीं पूछा.
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