रविवार, 8 अक्टूबर 2023

Chuk & Gek - 14

 

 

14

 

एकोर्डियन वाले अंकल उसका साथ दे रहे थे, और उसने सबके लिए गाना गाया. कौन सा – ये तो मुझे अब याद नहीं है. इतना याद है, कि ये बहुत अच्छा गाना था, क्योंकि उसे सुनते हुए सारे लोग शांत हो गए थे. और जब गेक रुका, ताकि सांस ले सके, तो सुनाई से रहा था कि कैसे मोमबत्तियां चटचटा रही हैं, और खिड़की के पीछे हवा गरज रही है.

और जब गेक ने गाना ख़त्म कि या तो सब लोग शोर मचाने लगे, चिल्लाने लगे, गेक को हाथों में उठाकर उसे उछालने लगे. मगर मम्मा ने फ़ौरन गेक को उनसे छुडा लिया, क्योंकि वह डर रही थी कि मस्ती में उसे गर्म छत से न टकरा दें.

“अब बैठिये,” घड़ी देखते हुए पापा ने कहा. “अब सबसे महत्वपूर्ण बात होने वाली है. उन्होंने रेडियो चालू किया. सब बैठ गए और खामोश हो गए. पहले तो खामोशी थी. मगर फिर शोर , हो-हल्ला, बीप-बीप सुनाई दी. फिर कहीं कुछ खटखट हुई, फुसफुसाहट हुई और कहीं दूर से सुरीली आवाज़ सुनाई दी.

छोटी और बड़ी घंटियाँ इस तरह बज रही थीं:

त्रि-लील्-लीली-डॉन !

त्रि-लील्-लीली-डॉन !

 

चुक और गेक ने एक दूसरे को देखा. वे समझ गए कि ये क्या है. ये दूर-बहुत दूर मॉस्को में स्पास्काया टॉवर पर क्रेमलिन की सुनहरी घड़ी घंटे बजा रही थी.

और ये गूँज – नए साल से पहले – इस समय लोग सुन रहे थे – शहरों में, और पहाड़ों में, स्टेपी में, तायगा में, नीले समुन्दर में.

और, बेशक, बख्तरबंद ट्रेन का संजीदा कमांडर भी, वही, जो बिना थके दुश्मनों पर हमला करने के लिए वरशिलोव की कमांड की प्रतीक्षा कर रहा था, यह धुन सुन रहा था.

और तब सब लोग उठ गए, एक दूसरे को नए साल की बधाइयां देने लगे और सबके लिए खुशहाली की कामना करने लगे.

खुशी क्या है – ये हर कोई अपने-अपने तरीके से समझ रहा था. मगर सभी लोग एक साथ ये जानते थे और समझते थे, कि ईमानदारी से जीना चाहिए, खूब मेहनत करना चाहिए और शिद्दत से प्यार करना चाहिए और इस महान, खुशहाल धरती की हिफाज़त करना चाहिए, जिसे सोवियत देश कहते हैं.   

     

Chuk & Gek - 13

 

13

लेखक: अर्कादी गैदार 

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 

 

दिन में साफ़ सफाई की, दाढी बनाई, नहाए.

और शाम को सबके लिए क्रिसमस ट्री की पार्टी थी, और सबने एक साथ मिलकर नए साल का स्वागत किया.

जब मेज़ सज गई तो लैम्प बुझा दिए गए और मोमबत्तियां जलाई गईं. मगर चूंकि चुक और गेक को छोड़कर बाकी सब लोग बड़े थे, तो वे , बेशक, नहीं जानते थे कि अब क्या किया जाए.

ये तो अच्छी बात थी कि एक आदमी के पास एकोर्डियन था और वह मस्ती भरी नृत्य की धुन बजाने लगा. तब सब उछल पड़े, और सबका मन डांस करने के लिए मचल उठा. और सबने बहुत खूबसूरती से डांस किया, ख़ास कर तब, जब मम्मा को डांस के लिए बुलाया गया.


मगर पापा को तो डांस करना आता नहीं था. वे बहुत भारी बदन के, अच्छे दिल के इंसान थे, और जब वे बिना डांस के फर्श पर चलते, अलमारी में सारे बर्तन झनझनाने लगते.

उन्होंने चुक और गेक को घुटनों पर बिठा लिया और वे जोर जोर से सबके लिए तालियाँ बजाने लगे.

फिर डांस ख़त्म हुआ, और लोगों ने फरमाइश की कि गेक कोई गाना गाये. गेक ने नखरे नहीं दिखाए. वह जानता था कि वह गाने गा सकता है, और उसे इस बात पर गर्व था.

 

 

शनिवार, 7 अक्टूबर 2023

Chuk & Gek - 12

  

12


अब खुशी का माहौल छा गया. अगली सुबह वाचमैन ने वह कमरा खोला, जहाँ उनके पापा रहते थे. उसने भट्टी खूब गरमाई और उनका सामान ले आया. कमरा बड़ा था, खूब रोशनी आ रही थी, मगर सब चीज़ें बेतरतीबी से बिखरी पड़ी थीं.

मम्मा फौरन कमरे को ठीक करने में लग गई. पूरे दिन वह चीज़ों को सही जगह पर रखती रही, घिसती रही, धोती रही, साफ़ करती रही.

और जब शाम को वाचमैन ईंधन का गट्ठा लाया, तो, कमरे के बदले हुए रूप और सफाई को देखकर वह रुक गया और दरवाज़े के भीतर नहीं घुसा.

मगर कुत्ता स्मेली भीतर आ गया.

वह सीधे अभी-अभी धुले फर्श पर चलकर गेक के पास गया और उसके शरीर में अपनी ठंडी नाक गड़ाई : जैसे, कह रहा हो, बेवकूफ, तुझे मैंने ढूंढा था, और इसके लिए तू मुझे खाने के लिए दे.

मम्मा खुश हो गई और उसने स्मेली को सॉसेज का एक टुकड़ा दिया. तब वाचमैन भुनभुनाया और बोला कि अगर तायगा में कुत्तों को सॉसेज खिलाया गया तो मैगपाई को हंसी आयेगी.

मम्मा ने उसके लिए भी आधा टुकड़ा काटा. उसने कहा, “धन्यवाद” और चला गया, किसी बात पर अचरज करते हुए और सिर हिलाते हुए.

ये तय किया गया कि अगले दिन नए साल के लिए क्रिसमस ट्री सजायेंगे.

कैसी-कैसी चीज़ों से उन्होंने खिलौने बनाए!

उन्होंने पुरानी पत्रिकाओं से रंगीन तस्वीरें काटीं. चिंधियों औए रुई से गुडिया और जानवर बनाए. पापा की दराज़ से पूरा टिशू पेपर निकाला और हरे-भरे फूलों का ढेर लगा दिया.

नकचढ़ा और उदास चौकीदार भी, जब ईंधन लेकर आया, तो बड़ी देर तक दरवाज़े पर रुककर उनकी नई नई तरकीबों पर अचरज करने लगा. वह उनके लिए चाय के पैकेट की चांदी की चमकदार पन्नी और मोम का एक बड़ा टुकड़ा लाया, जो जूतों के काम के बाद उसके पास बच गया था.

ये तो ग़ज़ब हो गया! और अब खिलौनों की फैक्ट्री मोमबत्तियों के कारखाने में बदल गई. मोमबत्तियां बेढब, असमान थीं. मगर वे वैसी ही प्रखरता से जल रही थीं, जैसे खरीदी हुई, सजीधजी मोमबत्तियां जलती हैं.

अब सवाल था क्रिसमस ट्री का. मम्मा ने वाचमैन से कुल्हाड़ी मांगी, मगर उसने इस पर कोई  जवाब भी नहीं दिया, और स्की पर सवार होकर जंगल में चला गया.

आधे घंटे बाद वह वापस लौटा.

ठीक है. चलो, चाहे खिलौने इतने ख़ूबसूरत न हों, चाहे चीथड़ों से सिले खरगोश बिल्लियों की तरह लग रहे हों, चाहे सारी गुड़ियों का चेहरा एक जैसा हो – सीधी नाक और तिरछी आंखों वाला, और चाहे क्रिसमस ट्री के चमकीले कागज़ में लिपटे हुए शंकु, नाज़ुक और कांच के खिलौनों जैसे न चमक रहे हों, मगर ऐसी क्रिसमस ट्री तो मॉस्को में किसी के भी यहाँ नहीं थी. ये थी तायगा की असली खूबसूरती – ऊँची, घनी, सीधी और जिसकी टहनियां सिरों पर सितारों जैसी बिखर रही थीं.     

देखते-देखते इस काम में चार दिन पलक झपकते बीत गए. और आई नए साल की पूर्व संध्या. सुबह से ही चुक और गेक को घर भेजना मुश्किल हो गया था. नीली पड़ गई नाक लिए वे बर्फ में खड़े हो जाते, इस उम्मीद में कि अभी-अभी जंगल से पापा और उनके सभी लोग बाहर आयेंगे.

मगर वाचमैन, जो स्नानगृह गरम कर रहा था, उनसे बोला कि वे बेकार ही में बर्फ में सर्दी न खा जाएँ. क्योंकि पूरी टीम सिर्फ खाने के समय तक ही वापस लौटेगी.

और, सचमुच, जैसे ही वे मेज़ पर बैठे, वाचमैन ने खिड़की खटखटाई. किसी तरह गरम कपडे पहनकर, तीनों बाहर पोर्च में आये.

“अब देखो,” वाचमैन ने कहा, “वे अभी उस पहाड़ की ढलान पर दिखाई देंगे, जो बड़ी चोटी के दाहिनी और है, फिर वे वापस तायगा में चले जायेंगे, और तब आधे घंटे बाद सब घर में होंगे.”

और वैसा ही हुआ. पहले कुत्तों की टीम बाहर उछली, जो स्लेजों से लदी हुई गाडी खींच रही थी, और उसके पीछे तेज़ी से भागते हुए स्की-सवार लपके. पहाड़ों की विशालता की तुलना में वे हास्यास्पद ढंग से बेहद छोटे नज़र आ रहे थे, हालांकि यहाँ से उनके हाथ, पैर और सिर साफ़ नज़र आ रहे थे.

वे खुली ढलान पर नज़र आये और जंगल में गायब हो गए.

ठीक आधे घंटे बाद कुत्तों का भौंकना, शोर, चरमराहट, चीखें सुनाई दीं.

घर को महसूस करते हुए, भूखे कुत्ते तेज़ी से जंगल से बाहर लपके. और उनके पीछे, बिना रुके, ढलान पर नौ स्की-सवार बाहर आये. और, पोर्च में मम्मा को, चुक को और गेक को देखकर, उन्होंने भागते हुए ही स्की के डंडे उठाये और जोर से चिल्लाए: “हुर्रे!”

तब गेक अपने आप को रोक न सका, वह पोर्च से उछला और, नमदे के जूतों से बर्फ पर दनदन करते हुए ऊंचे, बढ़ी हुई दाढ़ी वाले आदमी के पास भागा, जो सबसे आगे भाग रहा था और सबसे ऊँची आवाज़ में “हुर्रे!” चिल्ला रहा था.

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

Chuk & Gek - 11

  

 

11 


चौथे दिन सुबह मम्मा को खुद ही लकडियाँ तोड़नी पडीं. खरगोश तो कब का ख़त्म हो गया था, और उसकी हड्डियां मैगपाई उठा ले गए थे. खाने के लिए उन्होंने सिर्फ तेल और प्याज डालकर दलिया बनाया. ब्रेड भी ख़तम हो रही थी, मगर मम्मा ने आटा ढूंढा और केक बना लिया.

ऐसे खाने के बाद गेक उदास हो गया, और मम्मा को ऐसा लगा कि उसे बुखार हो गया है. 

मम्मा ने उसे घर में बैठने के लिए कहा और चुक को गरम कपडे पहना कर बाल्टियां, और स्लेज लेकर वे बाहर निकले, ताकि पानी लायें, और साथ ही जंगल के किनारे से टहनियां लायें, जिससे सुबह भट्टी गरमाना आसान रहेगा.

गेक अकेला रह गया. उसने बहुत देर इंतज़ार किया. उसे बोरियत होने लगी, वह कुछ सोचने लगा.

...और मम्मा और चुक को देर हो गई. घर वापस लौटते हुए स्लेज उलट गई, बाल्टियां गिर गईं, और दुबारा झरने पर जाना पडा. फिर पता चला कि जंगल के किनारे पर चुक अपने गरम दस्ताने भूल आया है, और, आधे रास्ते से वापस लौटना पडा. जब तक दस्ताने ढूंढे, कुछ-कुछ करते रहे, शाम हो गई.

जब वे घर पहुंचे, गेक कॉटेज में नहीं था, पहले उन्होंने सोचा, कि गेक भेड़ की खाल वाले ओवरकोटों के पीछे छुप गया है. मगर, वो वहाँ नहीं था.

तब चुक चालाकी से मुस्कुराया और मम्मा से फ़ुसफ़ुसाकर बोला, कि गेक, बेशक, भट्टी के नीचे छुप गया है.

मम्मा को गुस्सा आ गया, और उसने गेक को हुक्म दिया कि बाहर आये. गेक ने कोई जवाब नहीं दिया.

तब चुक ने लंबा चिमटा लिया और उसे भट्टी के नीचे घुमाने लगा, मगर भट्टी के नीचे गेक नहीं था.

मम्मा परेशान हो गई, उसने दीवार के पास वाली खूंटी की ओर देखा. खूंटी पर न तो गेक का छोटा फ़र कोट था, ना ही उसकी टोपी.

मम्मा आँगन में आई, कॉटेज का चक्कर लगाया. दालान में आई, लालटेन जलाई. अँधेरे स्टोर रूम में देखा, ईंधन वाले शेड में देखा...

उसने गेक को आवाज़ दी, उस पर गुस्सा किया, उसे मनाया, मगर किसी ने भी जवाब नहीं दिया. बर्फ़ के ढेरों पर तेज़ी से अन्धेरा छा रहा था.

तब मम्मा झोंपड़ी में लपकी, उसने दीवार से बन्दूक खींची, कारतूस लिए, लालटेन पकड़ी और चुक को चिल्लाकर यह हुक्म देकर कि वह अपनी जगह से हिलने की हिम्मत न करे, वह भागकर आँगन में गई.

पिछले चार दिनों में काफ़ी पैरों के निशान कुचले गए थे.

मम्मा नहीं जानती थी कि गेक को कहाँ ढूंढे, मगर वह रास्ते की ओर भागी, क्योंकि उसे यकीन नहीं था कि गेक अकेला जंगल में जाने की हिम्मत करेगा.

रास्ते पर कोई नहीं था.

उसने बन्दूक में कारतूस भरी और चला दी. ध्यान से सुनती रही, और बार-बार गोलियां चलाती रही.

अचानक बिलकुल पास से जवाबी फ़ायर हुआ. कोई भागता हुआ उसकी सहायता के लिए आया.

वह भी मिलने के लिए भागना चाहती थी, मगर उसके फ़ेल्ट बूट बर्फ के ढेर में फंस गए. लालटेन बर्फ पर गिर गई, कांच टूट गया, और रोशनी बुझ गई.

वाचमैन के पोर्च से चुक की तेज़ चीख़ सुनाई दी.

ये, गोलियों की आवाज़ सुनकर चुक ने फैसला कर लिया, कि जो भेड़िये गेक को खा गए हैं, उन्होंने मम्मा पर हमला कर दिया है.

मम्मा ने लालटेन फेंक दी और, तेज़-तेज़ सांस लेते हुए घर की ओर भागी. उसने चुक को कॉटेज के भीतर धकेला, बंदूक कोने में फेंक दी और, डोंगे से बर्फ जैसा ठंडा पानी पी गई.

पोर्च के पास शोर होने लगा और खटखटाने की आवाज़ आई. दरवाज़ा पूरा खुल गया. कॉटेज में भागता हुआ कुत्ता आया, और उसके पीछे भाप में लिपटा वाचमैन आया.

“क्या मुसीबत हो गई? कैसी गोलीबारी है?” उसने बगैर अभिवादन किये और बगैर गरम कपडे उतारे पूछा.

“बच्चा खो गया,” मम्मा ने कहा. उसकी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी और वह आगे एक भी शब्द न कह सकी.

“ठहरो, रोओ नहीं.” वाचमैन गुर्राया. “कब खो गया? क्या बहुत देर हुई? थोड़ी देर पहले? ...वापस, स्मेली!” उसने चिल्लाकर कुत्ते से कहा. “बताइये भी, या मैं वापस जाऊँ?

“एक घंटा पहले,” मम्मा ने जवाब दिया. “हम पानी लाने गए थे. वापस आकर देखा तो वो नहीं है. उसने गर्म कपडे पहने और कहीं...”

“खैर, एक घंटे में ज़्यादा दूर नहीं जा सकता, और गर्म कपड़ों में फ़ौरन जम नहीं जाएगा...मेरे पास, स्मेली! ले, सूंघ! ”

वाचमैन ने खूंटी से हुड खींचा और कुत्ते की नाक के पास गेक के गलोश सरकाए.

कुत्ते ने ध्यान से चीज़ों को सूंघा और समझदार आंखों से मालिक की तरफ देखा.

“मेरे पीछे!” दरवाज़ा खोलकर वाचमैन ने कहा. “चल, ढूंढ, स्मेली!”

कुत्ते ने अपनी पूंछ हिलाई और अपनी जगह पर खड़ा रहा,

“आगे बढ़!” वाचमैन ने सख्ती से दुहराया. “ढूंढ, स्मेली, ढूंढ!”

कुत्ते ने बेचैनी से नाक घुमाई, एक पैर से दूसरे पैर पर आया और हिला नहीं.

“ये क्या हरकत है?” वाचमैन को गुस्सा आ गया. और, दुबारा कुत्ते की नाक के नीचे गेक का हुड और गलोश लाकर उसने पट्टे से उसे खीचा.

मगर स्मेली वाचमैन के पीछे नहीं गया; वह गोल गोल घूमा, वापस मुडा और कॉटेज के दरवाजे के सामने वाले कोने की तरफ़ गया.

यहाँ वह लकड़ी के बड़े संदूक के पास रुका, अपने रोएंदार पंजे से उसके ढक्कन को खुरचने लगा और, मालिक की ओर मुड़कर, तीन बार जोर से और अलसाई हुई आवाज़ में भौंका.

तब वाचमैन ने बेचैन मम्मा के हाथ में बन्दूक थमाई, और पास जाकर संदूक का ढक्कन खोला.

संदूक में, हर तरह के चीथड़ों, भेड़ की खालों और थैलों के ढेर पर अपने कोट से ढंका और सिर के नीचे टोपी रखे, शांत, गहरी नींद में गेक सो रहा था.

जब उसे बाहर खींच कर जगाया गया, तो, अपनी उनींदी आंखों को फडफडाते हुए, वह समझ ही नहीं पाया कि उसके चारों और ये शोर और ये तूफानी खुशी किसलिए है. मम्मा उसे चूम रही थी और रो रही थी. चेक उसके हाथ-पैर खीच रहा था, उछल रहा था और चीख रहा था:

“एय-ल्या! एय-ली-ल्या!...”

झबरा कुत्ता स्मेली, जिसका मुँह चुक ने चूमा था, परेशानी से मुड़ा और, कुछ भी न समझ पाते हुए, हसरत से मेज़ पर पड़े हुए ब्रेड के तुकडे को देखते हुए हौले से अपनी भूरी पूंछ हिलाने लगा.  

शायद, जब मम्मा और चुक पानी लाने के लिए गए थे, तो बोरियत के कारण गेक ने शरारत करने की सोची. उसने अपना कोट और टोपी ली और संदूक के भीतर घुस गया. उसने सोचा कि जब वे वापस आकर उसे ढूंढेंगे, तो वह संदूक के भीतर से भयानक आवाज़ में चिल्लाएगा.

मगर चूंकि मम्मा और चुक को बहुत देर हो गई, तो संदूक में पड़े-पड़े उसकी आंख लग गई.

वाचमैन अचानक उठा, और उसने मेज़ के पास आकर एक भारी चाभी और मुड़ा-तुड़ा नीला लिफाफा रख दिया.

“ये लीजिये,” उसने कहा. “ये आपके लिए कमरे की और स्टोर रूम की चाभी है और सुपरवाईज़र सिर्योगिन का ख़त है. वह अपने लोगों के साथ चार दिन बाद, नए साल तक, यहाँ पहुँच जाएगा.”

तो, वह वहाँ गया था, ये खूसट, गंवार बूढा! कहा था, कि शिकार पर जा रहा हूँ, मगर स्की पर सवार होकर दूर स्थित अलकराश गया था.

लिफ़ाफ़ा बिना खोले, मम्मा उठी और कृतज्ञतापूर्वक बूढ़े के कंधे पर हाथ रखा.

उसने कोई जवाब नहीं दिया और गेक पर भुनभुनाने लगा कि उसने संदूक में स्की का डिब्बा गिरा दिया था, साथ ही मम्मा पर भी क्योंकि उसने लालटेन का कांच तोड़ दिया था. वह बड़ी देर तक जिद्दीपन से भुनभुनाता रहा, मगर अब कोई भी इस भले बूढ़े से नहीं डर रहा था. इस पूरी शाम मम्मा गेक के पास से नहीं हिली और ज़रा-ज़रा सी बात पर उसका हाथ पकड़ती रही, जैसे डर रही हो, कि वह कहीं फिर से गायब न हो जाए. और उसकी इतनी फ़िक्र करती रही कि चुक बुरा मान गया, उसे अफ़सोस भी हुआ कि वह भी क्यों नहीं संदूक में घुस गया.

मंगलवार, 3 अक्टूबर 2023

Chuk & Gek - 10

 

 

10

दो दिन बीत गए, तीसरा आ गया, मगर वाचमैन जंगल से नहीं लौटा, और उस छोटे-से, बर्फ से ढंके घर को भय ने घेर लिया.

खासकर शाम को और रात में बहुत डर लगता था. वे दालान, दरवाज़े पक्के बंद कर लेते और, ताकि रोशनी से जानवरों को आकर्षित न करें, खिड़कियों को कम्बल से पूरी तरह ढांक देते, हाँलाकि इससे बिल्कुल विपरीत करना चाहिए था, क्योंकि जानवर – इन्सान नहीं है और वह आग से डरता है. भट्टी के पाईप के ऊपर, जैसा कि स्वाभाविक था, हवा शोर मचा रही थी, और जब बर्फीला तूफ़ान दीवारों और खिड़कियों पर नुकीले बर्फ के टुकड़ों की मार करता, तो सबको ऐसा लगता, मानो बाहर से कोई धकेल रहा है और खुरच रहा है.

वे भट्टी के ऊपर सोने के लिए चढ़ गये, और वहाँ मम्मा ने उन्हें कई सारी कहानियां और परीकथाएँ सुनाईं. आखिरकार वह ऊंघने लगी.

“चुक,” गेक ने पूछा, “अलग अलग कहानियों और परीकथाओं में जादूगर क्यों होते हैं? और, यदि वे असली ज़िंदगी में भी होते तो क्या होता?

“और जादूगरनियाँ और चुड़ैलें भी होतीं, तो?” चुक ने पूछा.

“अरे नहीं,” गेक ने तैश से हाथ हिलाए, “चुड़ैलों की ज़रुरत नहीं है. उनका क्या फ़ायदा है? हम जादूगर से कहते कि वह उड़कर पापा के पास जाए और उनसे कहे, कि हम कब के आ चुके हैं.”

“और वह किस पर बैठकर उड़ता, गेक?

“अरे, किस पर...हाथ हिलाते हुए जाता या किसी और तरह से. वो खुद ही जानता है.”

“आजकल हाथों को हिलाने से ठंड लगती है,” चुक ने कहा. “मेरे पास देख, कैसे हाथमोज़े और दस्ताने हैं, मगर फिर भी, जब मैं लट्ठा घसीट रहा था, तो मेरी उंगलियाँ पूरी तरह जम गईं थीं.”      

“नहीं, तुम बताओ, चुक, फिर भी अच्छा ही होता ना?

“मैं नहीं जानता,” चुक हिचकिचाया. “याद है, हमारे कम्पाऊंड में, नीचे बेसमेंट में, जहाँ मीश्का क्र्यूकव रहता है, कोई अपाहिज आदमी रहता था. कभी वह गोल ब्रेड बेचता, कभी उसके पास हर तरह की औरतें, बूढ़ियाँ आतीं, और वह उन्हें भविष्य बताता, किसका जीवन सुखी होगा और किसका दुःख भरा.”

“क्या वह सही बताता था?

“मुझे नहीं पता. मुझे सिर्फ इतना मालूम है कि बाद में पुलिस आई, उसे पकड़ कर ले गई और उसके क्वार्टर से काफ़ी सारा औरों का माल ले गई.”

“अच्छा, तो, वह जादूगर नहीं, बल्कि बदमाश था. तू क्या सोचता है?

“बेशक, बदमाश था,” चुक ने सहमति दर्शाई. “और, मैं ये सोचता हूँ, कि सभी जादूगर बदमाश होते हैं. अच्छा, बता, उसे काम करने की क्या ज़रुरत है, जबकि वह हर छेद में घुस सकता है? उतना ही लो, जितने की ज़रुरत हो...अच्छा है, कि तुम सो जाओ, गेक, वैसे भी मैं तुमसे अब बातें नहीं करूंगा.”

“क्यों?

“क्योंकि तुम हर बेवकूफी वाली बात करते हो, और रात को तुम्हें उसके सपने आते हैं, तुम कुहनियों से और घुटनों से मारने लगते हो. क्या ख़याल है, क्या कल तुमने मेरे पेट में अच्छी तरह मुक्का मारा था? चल, मैं भी तुझ पर मुक्के बरसाता हूँ...”

रविवार, 1 अक्टूबर 2023

Chuk & GEk - 9

                                                                                 


सुबह, पौ फटते ही, वाचमैन ने अपनी थैली उठाई, बन्दूक ली, कुत्ते को साथ में लिया, स्की पर चढ़ा और जंगल में चला गया. अब सब कुछ खुद ही करना था. तीनों मिलकर पानी लाने गए. खड़ी चट्टान वाली पहाडी के पीछे बर्फ के बीच झरना था. पानी से घनी भाप निकल रही थी, जैसे चाय की केतली से निकलती है, मगर जब चुक ने धार के नीचे उँगली रखी, तो पता चला कि पानी तो खुद बर्फ से भी ज़्यादा ठंडा है.

फिर वे ईंधन के लिए लकडियाँ घसीटते हुए लाये. मम्मा को रूसी भट्टी जलाना नहीं आता था, इसलिए लकडियाँ बड़ी देर तक नहीं जलीं. मगर जब वे जल उठीं, तो लौ इतनी गरम थी, कि सामने वाली दीवार की खिड़की पर जमी बर्फ फ़ौरन पिघल गई. और अब कांच से जंगल की सारी किनार पेड़ों समेत दिखाई दे रही थी जिस पर मैगपाई फुदक रहे थे, और नीले पहाड़ों की चोटियाँ भी नज़र आ रही थीं.

मम्मा को मुर्गियां छीलना तो आता था, मगर खरगोश को छीलने की नौबत अब तक नहीं आई थी, और उसने इस काम में इतना समय लगाया, कि उतने में बैल या गाय को भी खाल निकालकर काटना संभव था.

गेक को यह खाल निकालने का काम बिल्कुल पसंद नहीं आया, मगर चुक ने खुशी-खुशी मम्मा की मदद की, और इसके लिए उसे खरगोश की पूंछ इनाम में मिली, इतनी हल्की और रोएंदार कि अगर उसे भट्टी से फेंको, तो वह आराम से पैराशूट की तरह तैरते हुए फर्श पर गिर जाती.

खाने के बाद वे तीनों घूमने के लिए निकले.

चुक मम्मा को मना रहा था कि वह साथ में बदूक ले ले, या कम से कम बन्दूक की गोलियां ही रख ले, मगर मम्मा ने बन्दूक नहीं ली.

बल्कि, उसने जानबूझकर बन्दूक को एक ऊंचे हुक से टांग दिया, फिर स्टूल पर चढ़ गई, बन्दूक की गोलियों को शेल्फ के सबसे ऊपर वाले खाने पर घुसा दिया और चुक को चेतावनी दी, कि अगर उसने एक भी कारतूस को हाथ लगाया, तो फिर कभी अच्छी ज़िंदगी की उम्मीद न रखे.

चुक का चेहरा लाल हो गया और वह फ़ौरन वहाँ से दूर हो गया, क्योंकि उसकी जेब में एक कारतूस पहले से ही पड़ा था.

आश्चर्यजनक थी यह सैर! वे एक के पीछे एक, संकरे रास्ते से झरने की ओर चले. उनके ऊपर ठंडा, नीला आसमान चमक रहा था; परी कथाओं के महलों और टॉवर्स की तरह, नीले पहाड़ों की नुकीली चट्टानें आसमान को छू रही थीं, बर्फीली खामोशी में उत्सुक मैगपाई तीखी आवाज़ में चहचहा रहे थे. देवदार की घनी शाखाओं के बीच भूरी, फुर्तीली गिलहरियाँ फुदक रही थीं. पेड़ों के नीचे, नरम, सफ़ेद बर्फ पर अनजाने जानवरों और पंछियों के पैरों के विचित्र निशान थे.  

तायगा में कुछ कराहा, गुनगुनाया, और टूट गया. हो सकता है कि टहनियों को तोड़ते हुए पेड़ की चोटी से जमी हुई बर्फ का पहाड़ गिर पडा हो.

पहले, जब गेक मॉस्को में रहता था, तो उसे ऐसा लगता था, कि पूरी धरती बस मॉस्को से ही बनी है, मतलब, रास्तों से, बिल्डिंगों से, ट्रामों से और बसों से.

मगर अब तो उसे ऐसा लग रहा था, कि सारी धरती ऊंचे, ऊंघते हुए जंगल से बनी है.

और वैसे, अगर गेक के ऊपर सूरज चमक रहा होता, तो उसे यकीन हो जाता कि पूरी धरती पर न कहीं बारिश है, ना बादल.

और अगर वह खुश होता, तो वह सोचता, कि दुनिया में सभी अच्छे हैं, और खुश है.