शनिवार, 30 अगस्त 2014

डॉक्टर आयबलित - 1.01

डॉक्टर आयबलित
लेखक: कर्नेइ चुकोव्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

भाग-1

बंदरों के देश की यात्रा

अध्याय – 1

डॉक्टर और उसके जानवर


एक था डॉक्टर. वह बड़ा दयालु था. उसका नाम था आयबलित. और उसकी एक दुष्ट बहन थी, जिसका नाम था वरवारा.

डॉक्टर को दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार था जानवरों से.

उसके कमरे में रहते थे ख़रगोश. उसकी अलमारी में रहती थी गिलहरी. बर्तनों की अलमारी में रहता था कौआ. दीवान पर रहती थी काँटों वाली साही. सन्दूक में रहते थे सफ़ेद चूहे. मगर अपने सभी जानवरों में आयबलित को सबसे ज़्यादा पसन्द थे बत्तख़ कीका, कुत्ता अव्वा, छोटा सा सुअर का पिल्ला ख्रू-ख्रू, तोता कारुदो और उल्लू बुम्बा.  

डॉक्टर की दुष्ट बहन वरवारा उस पर बहुत गुस्सा करती थी, कि उसके कमरे में इत्ते सारे जानवर हैं.
 “इन्हें फ़ौरन भगाओ,” वह चिल्लाई. “ये सिर्फ कमरा ही गन्दा करते हैं. ऐसे गलीज़ चीज़ों के साथ मुझे नहीं रहना है!”
 “नहीं, वरवारा, ये गलीज़ नहीं हैं!” डॉक्टर ने कहा. “मुझे बड़ी ख़ुशी है कि ये सब मेरे साथ रहते हैं.”

डॉक्टर के पास इलाज के लिए सब तरफ़ से बीमार चरवाहे, बीमार मछुआरे, लकड़हारे, किसान आते, वह हरेक को दवा देता, और हर मरीज़ फ़ौरन अच्छा हो जाता. अगर गाँव के किसी बच्चे के हाथ में चोट लगी हो या उसकी नाक खुजा रही हो, तो वह फ़ौरन भागकर आयबलित के पास आता – और, दस मिनट बाद देखो तो बच्चा ऐसे तन्दुरुस्त हो जाता जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं था, ख़ुश-ख़ुश, तोते कादूरो के साथ पकड़म-पकड़ाई खेलता नज़र आता, और बूम्बा उल्लू उसे सेब और फलों के टुकड़े खिलाता.

एक बार डॉक्टर  के पास बहुत दुखी घोड़ा आया. उसने हौले से डॉक्टर को बताया:
”लामा, वोनोय, फ़ीफ़ी, कूकू!”
डॉक्टर फ़ौरन समझ गया कि जानवर की भाषा में इसका क्या मतलब है.
 “मेरी आँखों में दर्द हो रहा है. प्लीज़, मुझे चश्मा दीजिए.”
डॉक्टर काफ़ी पहले ही जानवरों की भाषा में बोलना सीख गया था. उसने घोड़े से कहा:
 “कापूकी, कापूकी!”
जानवरों की भाषा में इसका मतलब हुआ:
 “बैठिए, प्लीज़.”
घोड़ा बैठ गया. डॉक्टर ने उसे चश्मा पहनाया, और उसकी आँखों का दर्द भाग गया.
 “चाका!” घोड़े ने कहा, उसने पूँछ हिलाई और रास्ते पे भाग गया.
 जानवरों की भाषा में “चाका” का मतलब होता है “थैन्क्यू.”

जल्दी ही सारे जानवरों को, जिनकी आँखें ख़राब थीं, डॉक्टर आयबलित की ओर से चश्मे मिल गए. घोड़े चश्मे में घूमने लगे, गायें – चश्मे में, कुत्ते और बिल्लियाँ – चश्मे में. बूढ़े कौए भी बिना चश्मे के अपने घोंसलों से नहीं उड़ते थे.

डॉक्टर के पास आने वाले जानवरों और पंछियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी.
कछुए आते, लोमड़ियाँ और बकरियाँ आतीं, सारस और बाज़ भी उड़ कर आते.

डॉक्टर आयबलित सबका इलाज करता, मगर पैसे किसी से भी न लेता, क्योंकि कछुओं और बाज़ों के पास पैसे कहाँ से आएँगे!

जल्दी ही जंगल में पेड़ों पर ये इश्तेहार चिपकाए गए:
खुल गया है अस्पताल
पंछियों और जानवरों के लिए.
 इलाज के लिए
फ़ौरन वहाँ आइए !!

इन इश्तेहारों को पड़ोस के बच्चों वान्या और तान्या ने चिपकाया था, जिनका कभी डॉक्टर ने लाल बुखार और चेचक का इलाज किया था. वे डॉक्टर को बेहद प्यार करते थे और ख़ुशी-ख़ुशी उसकी मदद करते थे.

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