अध्याय – 2
बन्दरिया चीची
एक दिन शाम को जब सारे जानवर सो रहे थे,
डॉक्टर के दरवाज़े पर किसी ने टक्-टक् की.
“कौन
है?” डॉक्टर ने पूछा.
“मैं
हूँ,” एक हल्की आवाज़ ने जवाब दिया.
डॉक्टर ने दरवाज़ा खोला, और कमरे के भीतर
आई एक बन्दरिया, बेहद गन्दी और दुबली. डॉक्टर ने उसे दीवान पर बैठाया और पूछा:
“कहाँ
दर्द हो रहा है?”
“गर्दन
में” उसने कहा और रोने लगी.
अब डॉक्टर ने देखा कि उसकी गर्दन में
रस्सी बंधी है.
“मैं
उस दुष्ट स्ट्रीट-सिंगर के यहाँ से भाग आई,” बंदरिया ने कहा और फिर से रोने लगी. “स्ट्रीट-सिंगर
मुझे मारता था, सताता और हर जगह अपने साथ रस्सी से घसीट कर ले जाता.”
डॉक्टर ने कैंची से रस्सी काट दी और
बंदरिया की गर्दन पे ऐसी आश्चर्यजनक मलहम लगा दी कि गर्दन का दर्द फ़ौरन ग़ायब हो
गया. फिर उसने बंदरिया को टब में नहलाया, खाने को दिया और कहा:
“मेरे
यहाँ रह जा. मैं नहीं चाहता कि कोई तेरा अपमान करे.”
बंदरिया बड़ी ख़ुश हुई. मगर, जब वह मेज़ पे
बैठकर बड़े बड़े अखरोट खा रही थी, जो उसे डॉक्टर ने दिए थे, तो कमरे में वो दुष्ट
स्ट्रीट-सिंगर घुसा.
“बंदरिया
मुझे दे दे!” वह चीख़ा. “ये बंदरिया मेरी है!”
“नहीं
दूँगा!” डॉक्टर ने कहा. “किसी हालत में नहीं दूँगा! मैं नहीं चाहता कि तू उसे
सताए.”
गुस्से से पागल स्ट्रीट-सिंगर डॉक्टर की
गर्दन पकड़ने के लिए बढ़ा.
मगर डॉक्टर ने उससे शांतिपूर्वक कहा:
“फ़ौरन यहाँ से दफ़ा हो जा! और अगर हाथा-पाई
करेगा, तो मैं कुत्ते अव्वा को बुलाऊँगा, और वो तुझे काट लेगा.”
अव्वा भागते हुए कमरे में आया और गुर्राया:
“
र् र् र् र् ...”
जानवरों की भाषा में इसका मतलब है:
“भाग
जा, वर्ना मैं काट लूंगा!”
स्ट्रीट-सिंगर डर गया और
इधर-उधर देखे बिना भाग गया.
बंदरिया डॉक्टर के यहाँ रह गई. जानवरों को
जल्दी ही उससे प्यार हो गया और उन्होंने उसका नाम रखा चीची. जानवरों की भाषा में ‘चीची’
का मतलब होता है ‘स्मार्ट’.
जैसे ही तान्या और वान्या ने उसे देखा, वो
एक साथ चहके:
“आह, कितनी प्यारी है! कितनी आश्चर्यजनक
है!”
और वे फ़ौरन उसके साथ खेलने लगे, मानो अपनी
बेस्ट-फ्रेंड से खेल रहे हों. वो पकड़म-पकड़ाई, लुका-छिपी खेलने लगे, और फिर वे
तीनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर समन्दर की ओर भागे, और वहाँ बंदरिया ने उन्हें बंदरों
का ख़ुशनुमा डांस सिखाया, जिसे जानवरों की भाषा में कहते हैं ‘त्केल्ला’.