शनिवार, 30 अगस्त 2014

डॉक्टर आयबलित - 1.02

अध्याय – 2

बन्दरिया चीची


एक दिन शाम को जब सारे जानवर सो रहे थे, डॉक्टर के दरवाज़े पर किसी ने टक्-टक् की.
 “कौन है?” डॉक्टर ने पूछा.
 “मैं हूँ,” एक हल्की आवाज़ ने जवाब दिया.
डॉक्टर ने दरवाज़ा खोला, और कमरे के भीतर आई एक बन्दरिया, बेहद गन्दी और दुबली. डॉक्टर ने उसे दीवान पर बैठाया और पूछा:
 “कहाँ दर्द हो रहा है?”
 “गर्दन में” उसने कहा और रोने लगी.
अब डॉक्टर ने देखा कि उसकी गर्दन में रस्सी बंधी है.
 “मैं उस दुष्ट स्ट्रीट-सिंगर के यहाँ से भाग आई,” बंदरिया ने कहा और फिर से रोने लगी. “स्ट्रीट-सिंगर मुझे मारता था, सताता और हर जगह अपने साथ रस्सी से घसीट कर ले जाता.”
डॉक्टर ने कैंची से रस्सी काट दी और बंदरिया की गर्दन पे ऐसी आश्चर्यजनक मलहम लगा दी कि गर्दन का दर्द फ़ौरन ग़ायब हो गया. फिर उसने बंदरिया को टब में नहलाया, खाने को दिया और कहा:
 “मेरे यहाँ रह जा. मैं नहीं चाहता कि कोई तेरा अपमान करे.”
बंदरिया बड़ी ख़ुश हुई. मगर, जब वह मेज़ पे बैठकर बड़े बड़े अखरोट खा रही थी, जो उसे डॉक्टर ने दिए थे, तो कमरे में वो दुष्ट स्ट्रीट-सिंगर घुसा.
 “बंदरिया मुझे दे दे!” वह चीख़ा. “ये बंदरिया मेरी है!”
 “नहीं दूँगा!” डॉक्टर ने कहा. “किसी हालत में नहीं दूँगा! मैं नहीं चाहता कि तू उसे सताए.”
गुस्से से पागल स्ट्रीट-सिंगर डॉक्टर की गर्दन पकड़ने के लिए बढ़ा.
मगर डॉक्टर ने उससे शांतिपूर्वक कहा:
“फ़ौरन यहाँ से दफ़ा हो जा! और अगर हाथा-पाई करेगा, तो मैं कुत्ते अव्वा को बुलाऊँगा, और वो तुझे काट लेगा.”
अव्वा भागते हुए कमरे में आया और गुर्राया:
 “ र् र् र् र् ...”
जानवरों की भाषा में इसका मतलब है:
 “भाग जा, वर्ना मैं काट लूंगा!”
स्ट्रीट-सिंगर डर गया और  
इधर-उधर देखे बिना भाग गया.
बंदरिया डॉक्टर के यहाँ रह गई. जानवरों को जल्दी ही उससे प्यार हो गया और उन्होंने उसका नाम रखा चीची. जानवरों की भाषा में ‘चीची’ का मतलब होता है ‘स्मार्ट’.
जैसे ही तान्या और वान्या ने उसे देखा, वो एक साथ चहके:
“आह, कितनी प्यारी है! कितनी आश्चर्यजनक है!”

और वे फ़ौरन उसके साथ खेलने लगे, मानो अपनी बेस्ट-फ्रेंड से खेल रहे हों. वो पकड़म-पकड़ाई, लुका-छिपी खेलने लगे, और फिर वे तीनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर समन्दर की ओर भागे, और वहाँ बंदरिया ने उन्हें बंदरों का ख़ुशनुमा डांस सिखाया, जिसे जानवरों की भाषा में कहते हैं ‘त्केल्ला’.

डॉक्टर आयबलित - 1.01

डॉक्टर आयबलित
लेखक: कर्नेइ चुकोव्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

भाग-1

बंदरों के देश की यात्रा

अध्याय – 1

डॉक्टर और उसके जानवर


एक था डॉक्टर. वह बड़ा दयालु था. उसका नाम था आयबलित. और उसकी एक दुष्ट बहन थी, जिसका नाम था वरवारा.

डॉक्टर को दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार था जानवरों से.

उसके कमरे में रहते थे ख़रगोश. उसकी अलमारी में रहती थी गिलहरी. बर्तनों की अलमारी में रहता था कौआ. दीवान पर रहती थी काँटों वाली साही. सन्दूक में रहते थे सफ़ेद चूहे. मगर अपने सभी जानवरों में आयबलित को सबसे ज़्यादा पसन्द थे बत्तख़ कीका, कुत्ता अव्वा, छोटा सा सुअर का पिल्ला ख्रू-ख्रू, तोता कारुदो और उल्लू बुम्बा.  

डॉक्टर की दुष्ट बहन वरवारा उस पर बहुत गुस्सा करती थी, कि उसके कमरे में इत्ते सारे जानवर हैं.
 “इन्हें फ़ौरन भगाओ,” वह चिल्लाई. “ये सिर्फ कमरा ही गन्दा करते हैं. ऐसे गलीज़ चीज़ों के साथ मुझे नहीं रहना है!”
 “नहीं, वरवारा, ये गलीज़ नहीं हैं!” डॉक्टर ने कहा. “मुझे बड़ी ख़ुशी है कि ये सब मेरे साथ रहते हैं.”

डॉक्टर के पास इलाज के लिए सब तरफ़ से बीमार चरवाहे, बीमार मछुआरे, लकड़हारे, किसान आते, वह हरेक को दवा देता, और हर मरीज़ फ़ौरन अच्छा हो जाता. अगर गाँव के किसी बच्चे के हाथ में चोट लगी हो या उसकी नाक खुजा रही हो, तो वह फ़ौरन भागकर आयबलित के पास आता – और, दस मिनट बाद देखो तो बच्चा ऐसे तन्दुरुस्त हो जाता जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं था, ख़ुश-ख़ुश, तोते कादूरो के साथ पकड़म-पकड़ाई खेलता नज़र आता, और बूम्बा उल्लू उसे सेब और फलों के टुकड़े खिलाता.

एक बार डॉक्टर  के पास बहुत दुखी घोड़ा आया. उसने हौले से डॉक्टर को बताया:
”लामा, वोनोय, फ़ीफ़ी, कूकू!”
डॉक्टर फ़ौरन समझ गया कि जानवर की भाषा में इसका क्या मतलब है.
 “मेरी आँखों में दर्द हो रहा है. प्लीज़, मुझे चश्मा दीजिए.”
डॉक्टर काफ़ी पहले ही जानवरों की भाषा में बोलना सीख गया था. उसने घोड़े से कहा:
 “कापूकी, कापूकी!”
जानवरों की भाषा में इसका मतलब हुआ:
 “बैठिए, प्लीज़.”
घोड़ा बैठ गया. डॉक्टर ने उसे चश्मा पहनाया, और उसकी आँखों का दर्द भाग गया.
 “चाका!” घोड़े ने कहा, उसने पूँछ हिलाई और रास्ते पे भाग गया.
 जानवरों की भाषा में “चाका” का मतलब होता है “थैन्क्यू.”

जल्दी ही सारे जानवरों को, जिनकी आँखें ख़राब थीं, डॉक्टर आयबलित की ओर से चश्मे मिल गए. घोड़े चश्मे में घूमने लगे, गायें – चश्मे में, कुत्ते और बिल्लियाँ – चश्मे में. बूढ़े कौए भी बिना चश्मे के अपने घोंसलों से नहीं उड़ते थे.

डॉक्टर के पास आने वाले जानवरों और पंछियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी.
कछुए आते, लोमड़ियाँ और बकरियाँ आतीं, सारस और बाज़ भी उड़ कर आते.

डॉक्टर आयबलित सबका इलाज करता, मगर पैसे किसी से भी न लेता, क्योंकि कछुओं और बाज़ों के पास पैसे कहाँ से आएँगे!

जल्दी ही जंगल में पेड़ों पर ये इश्तेहार चिपकाए गए:
खुल गया है अस्पताल
पंछियों और जानवरों के लिए.
 इलाज के लिए
फ़ौरन वहाँ आइए !!

इन इश्तेहारों को पड़ोस के बच्चों वान्या और तान्या ने चिपकाया था, जिनका कभी डॉक्टर ने लाल बुखार और चेचक का इलाज किया था. वे डॉक्टर को बेहद प्यार करते थे और ख़ुशी-ख़ुशी उसकी मदद करते थे.

डॉक्टर आयबलित

बच्चों,

आज हम तुम्हें एक बहुत भले और बहुत प्यारे डॉक्टर की कहानी सुनाने जा रहे हैं.

डॉक्टर का नाम था आयबलित.

वह इन्सानों का और जानवरों का इलाज करता था.

उसे जानवरों की भाषा भी आती थी.

जानते हो, आयबलित का मतलब क्या होता है?

रूसी भाषा में, जब किसी को दर्द होता है तो वो चिल्लाता है: ‘आय!आय!’ जैसे हिन्दी में हम चिल्लाते हैं ‘आ!आ!आ!’ अंग्रेज़ी में कहते हैं ‘आऊच!’

और ‘बलित’ का मतलब है: दर्द होता है’.

मतलब डॉक्टर के नाम का मतलब हुआ : “आ! दर्द होता है!”

तो, इसी प्यारे डॉक़्टर की कहानी हम पढ़ने जा रहे हैं!

इस कहानी को रूस के प्रसिद्ध लेखक कोर्नेय चुकोव्स्की ने ह्यू लॉफ्टिंग की प्रसिद्ध कहानी  'डॉक्टर डूलिटल' के आधार पर लिखा है.